हिंदू धर्म में प्रत्येक व्रत त्योहार का अलग महत्व है। हिन्दुओं के एक सबसे प्रमुख त्योहारों में से है होली का त्योहार। इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है और होली के ठीक आठ दिन बाद यानी कि अष्टमी तिथि को भी विशेष रूप से मनाया जाता है। इसे शीतला अष्टमी के नाम से जाना जाता है। शीतला अष्टमी में मुख्य रूप से शीतला माता का पूजन किया जाता है और उन्हें बासी भोजन का भोग अर्पित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शीतला माता को बासी भोजन ही पसंद है और इस अष्टमी तिथि को बासोड़ा अष्टमी भी कहा जाता है।
शीतला अष्टमी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ती है इस दिन शीतला माता को मीठे चावलों का भोग भी लगाया जाता है। मीठे चावल गुड़ या गन्ने के रस से तैयार किये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की विधि विधान से पूजा करने और उनकी पसंद का भोग अर्पित करने से उनकी कृपा भक्त जनों पर बनी रहती है। आइए ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें इस साल कब मनाई जाएगी शीतला अष्टमी और इसका क्या महत्व है।
शीतला अष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
शीतला अष्टमी हर साल होली के आठवें दिन मनाई जाती है। यह चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ती है। इस साल शीतला अष्टमी यानी बासोड़ा अष्टमी 25 मार्च, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी।
- चैत्र मास की अष्टमी तिथि आरंभ - 25 मार्च, शुक्रवार सुबह 2 बजकर 39 मिनट पर
- चैत्र मास की अष्टमी तिथि समापन- 26 मार्च, शनिवार सुबह 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी
- 25 मार्च सुबह 6 बजकर 8 मिनट से 6 बजकर 41 मिनट तक शीतला माता की पूजा का शुभ मुहूर्त है।
इस प्रकार इसी शुभ मुहूर्त में शीतला माता की पूजा का शुभ संयोग 25 मार्च को ही बन रहा है इसलिए इसी दिन शीतला अष्टमी मनाई जाएगी।
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शीतला अष्टमी में लगाया जाता है बासी खाने का भोग
ऐसा माना जाता है कि शीतला माता को शीतल यानी ठंडा भोजन ही पसंद है इसलिए भक्त जन सप्तमी तिथि की रात में ही भोजन बनाकर रख देते हैं और उसी भोजन को अगले दिन सुबह अष्टमी तिथि के दिन शीतला माता को अर्पित करते हैं। पूरे दिन उसी बासी भोजन का उपभोग किया जाता है इसलिए इस दिन बासी भोजन खाने और भोग में चढ़ाने के कारण इस तिथि को बासोड़ा अष्टमी भी कहा जाता है।
शीतला अष्टमी का महत्व
शीतला अष्टमी का हिंदुओं में विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन महिलाएं भोजन नहीं पकाती हैं बल्कि एक दिन पहले बने हुए भोजन को घर के सभी लोगों के साथ ग्रहण करती हैं। घर के सभी सदस्यों के साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करने से लोगों के बीच सौहार्द्र बढ़ता है और सुख समृद्धि आती है। मान्यता है कि शीतला माता लोगों को कई बीमारियों से बचाती हैं। मान्यता यह भी है कि शीतला माता की पूजा करने से चेचक, खसरा जैसी बीमारियां नहीं होती हैं। इसके अलावा घर में यदि किसी को चेचक निकल आये तो शीतला माता का पूजन करने से जल्द ही इस बीमारी से छुटकारा मिल जाता है।
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शीतला अष्टमी पूजा विधि
- शीतला अष्टमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और साफ़ वस्त्र धारण करें।
- शीतला माता के पूजन के लिए मंदिर जाएं और शीतला माता को रोली लगाएं।
- रोली लगाने के बाद शीतला माता को फूल, वस्त्र, धूप, दीप, दक्षिणा अर्पित करें।
- शीतला माता को बासी भोजन चढ़ाएं और मीठे चावल का भोग लगाएं।
- शीतला माता को दही, रबड़ी, अक्षत (पूजा में अक्षत चढ़ाना शुभ क्यों माना जाता है)आदि चीजों का भी भोग लगाया जाता है।
- पूजा के दौरान शीतला स्त्रोत का पाठ करें और घर के सदस्यों के अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करें।
- पूजा के बाद शीतला माता को भोग लगाकर स्वयं भी भोग ग्रहण करें।
कैसा होता है शीतला माता का स्वरूप
शीतला माता का स्वरूप उनके नाम की ही तरह अत्यंत शीतल होता है। शीतला माता गधे की सवारी करती हैं। आमतौर पर शीतला माता की मूर्ति हर एक मंदिर में स्थापित होती है और विधि विधान के साथ पूजा की जाती है। शीतला माता के हाथों में कलश, (नवरात्रि में कलश स्थापना से पहले करें ये काम) झाड़ू और सूप होता है। शीतला माता में रोगों को दूर करने की शक्ति होती है। माता के हाथ में झाडू होने का मतलब लोगों को सफाई के प्रति सचेत करना होता है। ऐसा माना जाता है कि उनके कलश में सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है। शीतला माता की श्रद्धा पूर्वक उपासना से सभी रोग और पाप मुक्त हो जाते हैं। मुख्य रूप से शीतला माता की पूजा उन स्त्रियों को अवश्य करनी चाहिए जिनकी कोई संतान हो।
शीतला अष्टमी के दिन माता की पूजा और उन्हें भोग लगाने का विशेष महत्व है इसलिए घर की सुख समृद्धि के लिए शीतला माता का पूजन जरूर करें। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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