होली का त्योहार हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हिन्दू पंचांग के अनुसार रंग खेलने वाली होली के एक दिन पहले यानी कि पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन में पूरे विधि विधान से पूजन किया जाता है और इस दिन घर की सभी बालाओं को होलिका माता की अग्नि में प्रवाहित कर दिया जाता है जिससे घर में शांति बनी रहे। दरअसल होलिका दहन की प्रथा प्राचीन समय से चली आ रही है और इसकी कथा भक्त प्रह्लाद से जुड़ी हुई है।
होली का त्योहार हर साल फाल्गुन महीने के पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है इसके अगले दिन प्रतिप्रदा को रंग खेला जाता है। आइए Life Coach और Astrologer, Sheetal Shaparia जी से जानें इस साल कब मनाया जाएगा होली का त्योहार, होलिका दहन की तिथि और पूजा की सही विधि।
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शीतल जी बताती हैं कि होलिका दहन की तैयारी कई दिनों पहले से होने लगती है। ऐसी मान्यता है कि लोग होलिका दहन के पूजन के दौरान घर की सभी बलाओं को होलिका की अग्नि के साथ घर से दूर करने की प्रार्थना करते हैं। जिस स्थान पर होलिका दहन किया जाता है उस जगह पर लकड़ियां, गोबर के उपले, गेहूं की बालियां जैसी सामग्रियों को एकत्रित किया जाता है और शुभ मुहूर्त में होलिका दहन करके होलिका की परिक्रमा की जाती है। होलिका की पूजा के लिए जानें सही विधि -
ऐसा माना जाता है कि होलिका की अग्नि में डाली गई लकड़ियों में यज्ञ के तीनों लक्षण- ‘द्रव्य, देवता और त्याग' से ओतप्रोत सम्मिलित होते हैं। होलिका की अग्नि को अत्यंत पवित्र अग्नि माना जाता है और इसके चारों और परिक्रमा करते हुए अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। होलिका की अग्नि में मन के भीतर छाए अहंकार, अज्ञान व दुष्कर्म का त्याग करके सत्कर्मों का रक्षा कवच पहना जाता है और भक्त प्रहलाद की ही तरह भक्ति में लीन रहते हुए जन कल्याण की प्रार्थना की जाती है।
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होलिका की कथा मुख्य रूप से भगवान् विष्णु के नरसिंह अवतार और भक्त प्रह्लाद से जुड़ी है। इसकी कथा के अनुसार विष्णु भक्त प्रह्लाद का जन्म एक असुर परिवार में हुआ था, लेकिन वे भगवान विष्णु(भगवान विष्णु को इन मंत्रों से करें प्रसन्न) के अनन्य भक्त थे। उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी। लेकिन भक्त प्रह्लाद किसी भी बात की चिंता किये बिना दिन-रात विष्णु भक्ति में लीन रहते थे। यह बात हिरण्यकश्यप को कदापि पसंद नहीं थी और वो प्रह्लाद को अनेकों प्रकार की प्रतारणाएं देते थे। हिरण्यकश्यप ने कई बार भक्त प्रह्लाद को मारने की कोशिश भी की लेकिन विष्णु से के प्रभाव से वह नाकाम रहे। तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से भक्त प्रह्लाद को मारने की बात की। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका के पास एक ऐसा वस्त्र था जो अग्नि में जल नहीं सकता था इसलिए होलिका वही वस्त्र धारण करके प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि के बीचों -बीच बैठ गयी। प्रहलाद की विष्णु भक्ति के फलस्वरूप होलिका जल कर भस्म हो गयी गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे। इसी कथा को ध्यान में रखकर होलिका दहन की प्रथा शुरू हुई जो अभी तक चली आ रही है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है।
दरअसल होली के दिन रंग खेलने वाली कथाओं में बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से होलिका दहन और प्रहलाद की कथा तो है ही लेकिन एक और कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में राधा के संग होली खेलने की भी कथाएं भी शामिल हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण राधा के गांव बरसाने जाकर राधा और सभी गोपियों के संग होली खेलते थे। इसके बाद बरसाने वाले अगले दिन नंदगांव आकर होली का उत्सव मनाते थे। इसी परंपरा के चलते आज भी बरसाने और नंद गांव में रंग गुलाल के साथ लट्ठमार होली खेली जाती है। यही नहीं रंगों का जश्न पूरे देश में बड़ी धूम- धाम से मनाया जाता है।
वास्तव में होली एक दूसरे पर प्रेम भाव दिखाने के साथ सभी रिश्तों को नजदीक लाने का पर्व है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
Image Credit: wallpapercave com and freepik
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