साधु-संतों की दुनिया बहुत रहस्यमयी मानी जाती है। विशेष तौर पर नागा साधुओं के रहन-सहन से लेकर उनकी पूजा तक से जुड़े कई रहस्य हैं जिन्हें भेद पाना असंभव हैं क्योंकि नागा साधु किसी भी आम मनुष्य को अपने आसपास भटकने तक नहीं देते हैं, लेकिन सिर्फ नागा साधु ही नहीं है जिनकी दुनिया रहस्यमयी है बल्कि अघोरियों का संसार भी रहस्य से जुड़ा हुआ है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि अघोरियों के पूजा के दौरान वो ऐसे काम करते हैं जो न सिर्फ रहस्य से परिपूर्ण हैं बल्कि हैरान कर देने वाले भी हैं। आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
अघोरियों के पास मनुष्य का कपाल यानी की खोपड़ी होती है जिससे बर्तन के तौर पर इस्तेमाल कर वह इसमें अपना भोजन पाते हैं, लेकिन पूजा में भी अघोरियों द्वारा इस कपाल का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक तरह से अनुचित है लेकिन अघोरियों के लिए सांसारिक नियम मान्य नहीं होते हैं।
किसी अघोरी द्वारा जब कपाल को पूजा में सम्मिलित किया जाता है तो सबसे पहले माता काली के मंत्रों का जाप करते हुए उस कपाल को मिट्टी से शुद्ध किया जाता है। हिन्दू धर्म में यह बताया गया है कि अघोरियों की पूजा भले ही तंत्र साधना के अंतर्गत आती हो लेकिन वह पूजा शिव-शक्ति की ही करते हैं।
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शास्त्रों में यह वर्णित है की कभी भी कोई भी अघोरी दिन में साधना करता हुआ नहीं दिखाई देगा। अघोरी की साधना हमेशा मध्य रात्री से शुरू होती है क्योंकि अघोरी तंत्र-मंत्र करके जिन नकारात्मक ऊर्जाओं को अपने वश में करने का प्रयास करता है वह रात के समय ही जागृत होती हैं।
ऐसा माना जाता है कि एक सच्चा अघोरी अपने तंत्र-मंत्र की साधना से किसी का जीवन बना भी सकता है और किसी का जीवन भयंकर तौर पर बिगाड़ भी सकता है। इसलिए कभी भी किसी भी अघोरी के संपर्क में न आएं। वहीं, तंत्र साधना के उलटे पड़ने पर अघोरी की मृत्यु भी हो सकती है।
अघोरियों के लिए यह विशेष विधान है कि वह पूजा के पहले और पूजा के बाद दोनों समय में भोजन को चिता पर पका कर ही खा सकते हैं। अघोरियों को दक्षिणा लेना मना होता है। दक्षिणा तो दूर इन्हें किसी भी सांसारिक मनुष्य से कुछ भी लेने की मनाही होती है, नहीं तो इनकी मृत्यु तय है।
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अघोरी भगवान शिव के भैरव अवतारों की पूजा करते हैं, लें भैरव अवतार की पूजा से इन्हें समस्त तांत्रिक शक्तियां प्राप्त नहीं होती हैं। इसलिए इनके लिए यह आवश्यक है कि हर एक भैरव के साथ मां काली की पूजा भी की जाए। मां काली की पूजा के बाद ही इन्हें तंत्र विद्या में महारत मिलती है।
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