हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत की विशेष महिमा बताई गई है। पुराणों के अनुसार इस व्रत में पूरे श्रद्धा भाव से भगवान शिव का पूजन करना सभी मनोकामनाओं की पूर्ती का मार्ग है। मान्यता है कि इस दिन शिव जी समेत माता पार्वती का पूजन समस्त कष्टों से मुक्ति दिलाता है। प्रत्येक महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत मनाया जाता है। एक महीने में दो बार प्रदोष व्रत होता है पहला कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को। इस प्रकार एक महीने में दो बार प्रदोष व्रत होता है और पूरे साल में 24 प्रदोष व्रत होते हैं जिनका अपना अलग ही महत्व है।
यदि प्रदोष व्रत सोमवार के दिन होता है तो इसे सोम प्रदोष कहा जाता है, यदि बुधवार के दिन होता है तो भौम प्रदोष और गुरूवार और शनिवार के दिन होने वाले प्रदोष व्रत को क्रमशः गुरु और शनि प्रदोष कहा जाता है। इन सभी व्रतों में सावन के महीने में पड़ने वाले दोनों ही प्रदोष व्रतों का विशेष महत्त्व है क्योंकि सावन का पूर्ण महीना भगवान् शिव को समर्पित होता है। आइए विश्व के जाने माने ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें सावन के महीने में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले दूसरे प्रदोष व्रत की तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्त्व।
सावन के दूसरे प्रदोष व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
- इस साल सावन के महीने में शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि 19 अगस्त की रात्रि से शुरू होकर 20 अगस्त को रात 08 बजकर 50 मिनट तक रहेगी।
- उदया तिथि के अनुसार प्रदोष व्रत 20 अगस्त को है और प्रदोष काल भी इसी दिन प्राप्त हो रहा है इसलिए इसी दिन प्रदोष व्रत रखा जाएगा।
- प्रदोष व्रत के दिन आयुष्मान तथा सौभाग्य योग लग रहा है। ये दोनों ही योग मनवांछित फल प्राप्त करने के लिए उत्तम हैं।
- आयुष्मान योग 20 अगस्त को दिन में 03 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। इसके बाद सौभाग्य योग लग जाएगा।
- प्रदोष काल सूर्यास्त के 45 मिनट पहले से 45 मिनट बाद तक माना जाता है और इसी समय शिव पूजन लाभकारी होता है।
सावन के प्रदोष व्रत का महत्व
सावन का पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस पूरे महीने में शिव जी का पूजन कई तरीकों से किया जाता है। इस महीने में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है क्योंकि यह व्रत पूर्ण रूप से शिव जी को समर्पित होता है। सावन का दूसरा प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन है इसलिए इसे शुक्र प्रदोष कहा जाएगा। इस दिन शिव जी का माता पार्वती समेत पूजन करने से कई जन्मों के शुभ फलों की प्राप्ति होती है। चूंकिआइए इस लेख में जाने माने ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें सावन के महीने में कब पड़ेगा दूसरा प्रदोष का व्रत और इसका क्या महत्त्व है।इस व्रत को पूरे मनोयोग से करने से धन-संपदा की प्राप्ति के योग बनते हैं। यही नहीं जो अविवाहित लड़कियां अच्छे पति की कामना में यह व्रत रखती हैं उनकी भी इच्छाओं की पूर्ती होती है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले माताओं को संतान प्राप्ति होती है और संतान की सेहत को ठीक बनाए रखने के लिए भी यह व्रत विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
कैसे करें प्रदोष व्रत में पूजन
- पुराणों के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का मां गौरा के साथ पूजन करने का विधान है।
- यदि आप प्रदोष व्रत करते हैं तो इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान ध्यान से मुक्त होकर भगवान शिव का पूजन करें।
- पूरे दिन फलाहार का पालन करते हुए व्रत करें और प्रदोष काल में फिर से शिव पूजन करें।
- पूजन के लिए एक साफ़ चौकी पर साफ़ वस्त्र बिछाएं और शिव परिवार की मूर्ति या शिवलिंग चौकी पर रखें।
- भगवान शिव और माता पार्वती को जलाभिषेक कराएं या शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
- शिव जी या शिव लिंग पर चन्दन से तिलक लगाएं और माता पार्वती को सिन्दूर से सजाएं।
- शिव जी को धूप, दीप तथा सफ़ेद फूल अर्पित करें। बेलपत्र, भांग और धतूरा अर्पित करें।
- पूजन के दौरान प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें। शिव जी की आरती करें और भोग अर्पित करें।
इस प्रकार प्रदोष काल में शिव पूजन करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलने के साथ सभी मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है।
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Image Credit: freepik, wallpapercave.com
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