आजाद भारत की एक ऐसी तस्वीर जो शायद हमें सोचने पर मजबूर करती है, कि हर एक क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकारों का दावा करने वाला हमारा देश क्या शिक्षा में भी समान अधिकार देता है? क्या हमारे देश की हर एक बेटी शिक्षित है? क्या वास्तव में हम बेटियों को बेटों के समान ही अधिकार देते हैं? क्या हमेशा से ही बेटियों के हुनर को समझा जाता रहा है और उन्हें शिक्षा में समान अधिकार मिलता रहा है? सवाल बहुत से हैं और जवाब खोजने की प्रक्रिया अभी तक जारी है।
भले ही आज़ादी से लेकर अभी तक, हमने हर एक क्षेत्र की तरह शिक्षा में भी जेंडर गैप को ख़त्म करने का लंबा सफर तय किया हो, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि हमारे देश की बेटियां अभी भी दाखिले से लेकर शिक्षा हासिल करने तक, प्राइमरी स्कूल से लेकर हायर एजुकेशन तक लड़कों की तुलना में पीछे हैं।
आजाद देश की आजाद नारी आज भी शिक्षा के लिए अपनी आजादी ढूंढ रही है। आइए यहां विस्तार से जानें पुरुषों और महिलाओं के लिए शिक्षा की समानता को लेकर क्या कहते हैं आंकड़े। क्या सच में हमारे देश की नारी आजाद है या अभी भी आजादी लेने की होड़ बाकी है? हरजिंदगी की खास मुहिम 'आजाद भारत आजाद नारी' में हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
संविधान में बताए शिक्षा के समान अधिकार की सच्चाई क्या है
जब हम अपने संविधान की बात करते हैं तो यह पुरुषों और महिलाओं दोनों को जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार प्रदान करता है, जिसमें शिक्षा का अधिकार भी शामिल है। हालांकि हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
अगर आंकड़ों की मानें तो लड़कियों को कई बार शिक्षा का अधिकार नहीं दिया जाता है या कुछ मामलों में बुनियादी शिक्षा ही दी जाती है। ये आंकड़े हमारे देश के प्रति 1000 पुरुषों पर 943 महिलाओं के विषम लिंगानुपात की गवाही देती हैं। ऐसे में भला हम भारत की प्रगति की उम्मीद कैसे कर सकते हैं।
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संविधान के अनुसार क्या है शिक्षा का अधिकार
संविधान के 86 में संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा 21(A) के अनुसार 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा अनिवार्य होगी। इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया गया जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ। साल 2009 में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) में कहा गया कि न्यूनतम शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक बच्चे का अधिकार है। देश में बालिका शिक्षा आज परिवारों, समुदायों और समाज के लिए एक धुरी है।
लड़कियों की शिक्षा में निवेश समुदायों, देशों और पूरी दुनिया को बदल सकता है। जो लड़कियां शिक्षित होने में सक्षम हैं उन्हें शिक्षा लेने का पूरा अधिकार है। वो अपनी आजीविका कमा सकती हैं और अपने परिवार की देखभाल कर सकती हैं। इस तरह उच्च शिक्षा से वो एक जिम्मेदार महिला बन सकती हैं और अपने परिवार के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकती हैं।
साल 2018 से 2022 तक स्कूलों में दाखिला लेने वाले कुछ छात्र- छात्राएं
अगर हम आंकड़ों की बात करें तो साल 2018-19 में प्री प्राइमरी में दाखिला लेने वाले कुल छात्रों की संख्या 1. 2 करोड़ थी जो साल 2019 -2020 में बढ़कर 1.4 हो गई वहीं साल 2021 -2022 में इसमें थोड़ी गिरावट देखी गई और यह संख्या 0.95 रह गई। वहीं जब हम प्राइमरी शिक्षा की बात करें तो यह साल 2018-19 में 12.8 से बढ़कर साल 2021-22 में 12.18 करोड़ हो गई।
सेकेंडरी में साल 2018 -19 में 6.4 से 2021 -22 में 6.68 हो गई। ऐसे ही जब बात हायर एजुकेशन की आती है तब भी यह आंकड़े 2.6 से बढ़कर 2.86 हो गई। UDISE की रिपोर्ट के अनुसार स्कूलों में 2020-21 की तुलना में 2021-22 में 0.76% की वृद्धि हुई है।
हालांकि ये आंकड़े शिक्षा के क्षेत्र में हमारे द्वारा की गई प्रगति को दिखाते हैं, लेकिन अब जब हम अपनी आज़ादी के 77 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं और हर जगह उन्नति कर रहे हैं एक सवाल यह भी होता है कि क्या विकासशील भारत को विकसित देश की श्रेणी में लाने के लिए ये उन्नति काफी है?
साल 2018 से 2022 तक स्कूलों में दाखिला लेने वाले लड़कों की संख्या
अगर हम पिछले एक साल की बात करें तो 2021-22 में स्कूली शिक्षा के प्राथमिक से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक कुल नामांकन 25.57 करोड़ से थोड़ा अधिक था। जिसमें केवल लड़कों का नामांकन 13.28 करोड़ था और लड़कियों का नामांकन 12.28 करोड़ था।
हालांकि इस आंकड़े में 2020-21 की तुलना में 19 लाख से अधिक की वृद्धि थी, लेकिन लड़कियों की संख्या लड़कों से अभी भी कम है। साल 2018 में स्कूली शिक्षा में हायर सेकेंडरी में दाखिला लेने वाले कुल लड़के 1.3 से बढ़कर साल 2021 -22 में 1.5 करोड़ हो गई।
साल 2018 से 2022 तक स्कूलों में दाखिला लेने वाली लड़कियों की संख्या
जहां एक तरफ साल 2018-19 में प्राइमरी में दाखिला लेने वाले लड़कों की संख्या 6.3 करोड़ थी वहीं इसी साल लड़कियों की संख्या 5.8 करोड़ थी। ऐसे ही यदि हम हायर सेकेंडरी की बात करें तो साल 2021 -22 में लड़के 1.5 करोड़ थे जबकि लड़कियां 1. 4 करोड़ थीं।
शिक्षा में समानता का अधिकार बताने वाले देश के आंकड़े वास्तव में कुछ और ही बयान करते हैं और जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति समाज की प्रगति का संकेत देती है, वहीं लड़कियों की लड़कों तुलना में कम संख्या हमारे समाज पर प्रश्न चिह्न भी लगाती है? वासतव में शायद आजाद देश की नारी शिक्षा के लिए अभी भी पूरी तरह से आजाद नहीं है।
शिक्षण क्षेत्र में महिलाएं आगे फिर शिक्षा में असमानता क्यों?
जब हम आंकड़ों की बात करते हैं तो दाखिला लेने वाले छात्र-छात्राओं में जहां समानता नहीं है, वहीं शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा देने वाली टीचर्स की संख्या पुरुष शिक्षकों से ज्यादा है। जहां स्कूलों में साल 2018-19 में 47.1 लाख महिला शिक्षक थीं वहीं साल 2021-22 में ये आंकड़ा बढ़कर 48.77 लाख हो गया।
हालांकि, 2018-19 में 47.2 लाख पुरुष शिक्षक थे जिनकी संख्या 2021-22 में घटकर 46.3 लाख हो गई। स्कूली शिक्षण में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में अधिक है। हालांकि उच्च प्राथमिक स्तर से आगे, पुरुष शिक्षकों की संख्या अभी भी महिलाओं से अधिक है। सवाल यह उठता है कि क्या समाज को शिक्षा देने वाली महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने में भी पुरुषों की बराबरी का अधिकार नहीं होना चाहिए?
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देश के लिए बेटियों की शिक्षा का महत्व
जैसे-जैसे हमारा देश प्रगति कर रहा है हम अपनी आर्थिक स्थिति का विकास करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में देश के लिए बालिका शिक्षा की भूमिका और भी बड़ी होती जा रही है।
चूंकि देश में सक्रिय कार्यबल में आधी महिलाएं हैं, इसलिए उन्हें शिक्षा न दिलाना देश की आर्थिक प्रगति के लिए अच्छा नहीं है। लड़कियों की शिक्षा से अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और असमानता कम होती है। यह अधिक स्थिर, लचीले समाजों में योगदान देता है जो सभी व्यक्तियों को उनकी क्षमता को पूरा करने और उनके सपनों को साकार करने के लिए कई अवसर देने में सक्षम हैं।
बेटियों को शिक्षा लेने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है
लड़कियों के लिए पर्याप्त स्कूल और वहां तक आसानी से उनकी पहुंच के अलावा शिक्षा को बढ़ाने और सुचारु रूप से चलाने से पहले कई प्रमुख तत्वों को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है।
मुख्य रूप से कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जो लड़कियों की शिक्षा प्राप्ति में प्रश्न चिह्न लगाती हैं। इसमें से उनकी सुरक्षा सर्वोपरि है। अक्सर माता-पिता इस बात से डरते हैं कि उनकी बेटियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए कितनी दूरी तय करनी पड़ेगी और उनकी सुरक्षा रहेगी या नहीं। खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां न तो सड़कें हैं और न ही परिवहन वहां आज भी ये एक बड़ा सवाल है। यह एक ऐसी चुनौती है जो लड़कियों को शिक्षा से रोकने पर मजबूर करती है।
बेटियों की शिक्षा के लिए माता-पिता का जागरूक होना जरूरी
बेटियों के लिए घरेलू कामकाज के बोझ के बिना पढ़ने की आजादी होना जरूरी है। इसके लिए माता-पिता की समझदारी जरूरी है। एक बार जब माता-पिता यह समझ जाएंगे कि उनकी बेटियों के लिए शिक्षा की भूमिका उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि उनके बेटों के लिए, तो उन्हें घर के कामों में मदद की उम्मीद किए बिना लड़की को पढ़ते हुए आगे बढ़ने की आजादी मिल सकेगी।
माता-पिता को इस बात के लिए जागरूक होने की ज़रूरत है कि बेटियों के लिए शिक्षा के लाभ क्या हैं। एक बार जब हम माता पिता को ये समझाने में सफल हो जाएंगे कि बेटियों के लिए शिक्षा कितनी जरूरी है, तब आजाद भारत की अलग तस्वीर नजर आएगी।
वास्तव में देश की बेटी तभी आजाद हो पाएगी जब हम आजादी का सही मतलब समझ पाएंगे और उन्हें शिक्षा की समानता दिला पाएंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
Images: Freepik .com
Information Sources-
https://www.education.gov.in/
https://www.right-to-education.org
https://www.education.gov.in/sites/upload_files/mhrd/files/statistics-new/UDISE%2B2020_21_Booklet.pdf
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