भारत में महिलाओं के अधिकार क्या हैं? नहीं-नहीं कन्फ्यूज ना हों, मैं प्रॉपर्टी राइट्स की बात कर रही हूं। असल मायने में प्रॉपर्टी राइट्स को लेकर बहुत ज्यादा कन्फ्यूजन होता है। लोग ये नहीं समझते कि वाकई में महिलाओं के क्या अधिकार हैं। मैं आपको बता दूं कि भारतीय संविधान के मुताबिक प्रॉपर्टी के मामले में महिलाओं को बहुत सारी सुविधाएं मिलती हैं। प्रॉपर्टी के मामले में कई बार लोग आपको सही मार्गदर्शन भी नहीं दे पाते हैं। तो चलिए आज बताते हैं आपके अधिकारों से जुड़ी कुछ खास बातें।
हमने इस आर्टिकल के लिए सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट शिवी पांडे सिन्हा से बात की। इसी के साथ, नई दिल्ली की लॉ प्रैक्टिशनरश्रुति पांडे की रिसर्च 'PROPERTY RIGHTS OF INDIAN WOMEN' से प्वाइंटर्स लिए। उनकी रिसर्च ऑनलाइन उपलब्ध है।
कौन से तीन अधिकार महिलाओं से छीने नहीं जा सकते हैं?
प्रॉपर्टी के मामले में वैसे तो बहुत सारे अधिकार हैं, लेकिन तीन ऐसे भी हैं जिन्हें किसी भी हालत में छीना नहीं जा सकता है। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश कर रहा है, तो उसपर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
पहला अधिकार
महिला द्वारा खरीदी गई प्रॉपर्टी को किसी भी तरह से कोई छीन नहीं सकता है। अगर प्रॉपर्टी महिला के नाम पर है, तो उसपर उसी का अधिकार होगा।
दूसरा अधिकार
महिला को अपने घर से बाहर नहीं निकाला जा सकता है। अगर वो शादी करके किसी घर में गई है, तो ससुराल वालों को उसे रखना ही होगा। उसे शेल्टर का अधिकार है और ससुराल वाले उसे घर से नहीं निकाल सकते हैं।
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तीसरा अधिकार
महिला का अपने पति या पिता की प्रॉपर्टी पर अधिकार होता है। अगर उसे विरासत में कोई प्रॉपर्टी मिली है, तो उसे कोई छीन नहीं सकता। हालांकि, इनहेरिटेंस को लेकर अलग-अलग धर्मों के अलग नियम हैं।
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धर्मों के हिसाब से महिलाओं को मिलने वाले प्रॉपर्टी राइट्स
भारत में कई धर्म हैं और सभी के अलग-अलग नियम। प्रॉपर्टी को लेकर भी ऐसा ही है। यही कारण है कि अगर किसी महिला की शादी किसी अन्य धार्मिक कोड से होती है, तो प्रॉपर्टी राइट्स भी बदल जाते हैं।
मुस्लिम राइट्स
बेटियों के लिए-
मुस्लिम लॉ के मुताबिक बेटियों को बेटे की तरह ही प्रॉपर्टी का अधिकार होता है। अगर किसी का एक बेटा और एक बेटी है तो उन दोनों में आधी प्रॉपर्टी का 50-50% हिस्सा बटेगा। बाकी आधी प्रॉपर्टी में पत्नी और माता-पिता का अधिकार हो सकता है।
पत्नी के लिए-
पति की प्रॉपर्टी पर सभी पत्नियों का समान अधिकार होता है। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में ये कहा गया था कि मुस्लिम पति को अपनी पत्नी को इतना गुजारा भत्ता देना होगा जिससे उसका काम चल जाए।
महिलाओं को प्रॉपर्टी, पैसे और जो कुछ भी मेहर में दिया गया था वो सब कुछ पति को इद्दत पीरियड में ही देना होता है। इद्दत की अवधि पूरी होने के बाद महिला को कानूनी रूप से दूसरी शादी करने का अधिकार होता है।
अगर महिला को बच्चा है, तो पत्नी को पति की प्रॉपर्टी का उसका 1/8 हिस्सा मिल सकता है, बाकी हिस्सा बच्चों के नाम पर होता है। अगर बच्चे नहीं हैं, तो उसे 1/4 हिस्सा मिलेगा। अगर एक से ज्यादा पत्नियां हैं, तो उसे 1/16वां हिस्सा मिलेगा। ये मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के तहत होता है। अगर किसी मुस्लिम महिला के माता-पिता का निधन हो गया है, तो वो लीगल वारिस बन सकती है।
मां के लिए-
बेटे या बेटी की प्रॉपर्टी की बात है, तो महिला को उसके बच्चों से मेंटेनेंस मिलने का अधिकार है। अगर बेटे या बेटी की मौत हो गई है, तो महिला को 1/6वां हिस्सा मिलेगा। बाकी हिस्सा अन्य लीगल वारिसों के बीच बांटा जाएगा। अगर उसकी खुद की खरीदी हुई प्रॉपर्टी है, तो वो मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से ही लीगल वारिस के बीच बांटी जाएगी।
ईसाई राइट्स
बेटी के लिए-
यहां बेटियों को बराबरी का अधिकार दिया जाता है। जितने बच्चे होंगे उन्हें पिता की प्रॉपर्टी में बराबरी का हिस्सा मिलेगा। शादी के पहले तो बेटियों को माता-पिता से मेंटेनेंस और शेल्टर का अधिकार है, लेकिन शादी के बाद नहीं। अगर उसने खुद कोई प्रॉपर्टी ली है या उसे गिफ्ट मिली है तो उसपर उसका पूरा अधिकार होगा।
पत्नी के लिए-
महिला को शादी के बाद मेंटेनेंस का अधिकार होता है। अगर पति ऐसा नहीं कर पाता है, तो पत्नी उससे तलाक भी ले सकती है। पति की मौत के बाद उसे 1/3 प्रॉपर्टी मिलती है। बाकी उसके बच्चों के साथ बराबरी में बांट दी जाती है। अगर बच्चे नहीं हैं, तो ये लीगल वारिस को दी जाएगी जिसमें माता-पिता भी शामिल हो सकते हैं। अगर दूसरा कोई नहीं है, तो सारी प्रॉपर्टी पत्नी को ही दी जाएगी।
पत्नी को ईसाई लॉ के मुताबिक पति की प्रॉपर्टी से कम से कम 5000 रुपये इन्हेरीट करने का अधिकार है। अगर प्रॉपर्टी इससे ज्यादा मूल्य की है, तो उसे ज्यादा शेयर मिल सकता है।
मां के लिए-
ईसाई लॉ के हिसाब से मां को बच्चों से मेंटेनेंस लेने का कोई अधिकार नहीं है। अगर कोई बच्चा बिना शादी किए मर जाता है, तो ऐसे मामलों में मां को बच्चों की प्रॉपर्टी का 1/4 हिस्सा मिल सकता है। बाकी प्रॉपर्टी भाई-बहनों या अन्य लीगल वारिस में बांटी जाती है। अगर कोई और लीगल वारिस नहीं है, तो मां को ही पूरी प्रॉपर्टी मिलती है।
ईसाई धर्म मेंभारतीय सक्सेशन एक्ट (Indian Succession Act, 1925) लागू होता है। ऐसे ही नियम पारसी और यहूदी परिवारों के लिए फॉलो होते हैं।
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हिंदू राइट्स
बेटी के लिए-
हिंदू सक्सेशन (अमेंडमेंट) एक्ट, 2005 ने प्रॉपर्टी के मामले में किसी भी तरह का जेंडर डिस्क्रिमिनेशन हटा दिया है। इसका मतलब हिंदुओं में जितने अधिकार बेटे के होते हैं उतने ही अधिकार बेटी के भी होते हैं। अगर बेटी की शादी हो गई है, तो उसे मेंटेनेंस का अधिकार नहीं है, ना ही माता-पिता से शेल्टर का अधिकार है, लेकिन अगर उसका तलाक हो जाता है, उसे छोड़ दिया जाता है, उसका पति मर जाता है, तो उसे अधिकार होगा।
इनहेरिटेंस, गिफ्ट और स्वयं खरीदी हुई प्रॉपर्टी पर बेटी का अधिकार हमेशा रहेगा।
पत्नी के लिए-
हिंदू लॉ पत्नी को भी बराबर का अधिकार देता है। उसे ससुराल में रहने का पूरा अधिकार है और अगर बटवारा होता है, तो उसे ससुराल में पति की प्रॉपर्टी पर बराबरी का अधिकार मिल सकता है। जैसे किसी घर में 3 बच्चे हैं और बंटवारे के बाद हर बच्चे को 1/4 हिस्सा मिला है, तो पति के साथ-साथ पत्नी का भी उस हिस्से पर बराबरी का अधिकार हो सकता है। अगर पति की मृत्यु हो गई है, तो पत्नी को पूरी प्रॉपर्टी का अधिकार होगा।
मां के लिए-
बच्चे जो कमा सकते हैं उन्हें हिंदू लॉ के हिसाब से अपनी मां को मेंटेनेंस देना होगा। मां को हिंदू लॉ में क्लास 1 एयर (heir) माना गया है। अगर मां विधवा है, तो भी उसका बेटों जितना ही बराबरी का अधिकार होगा। उसके द्वारा अगर कोई प्रॉपर्टी खरीदी गई है, तो उसे वो गिफ्ट कर सकती है, दान दे सकती है या किसी और के नाम कर सकती है। अगर उसकी मौत होती है, तो बच्चों को उसकी प्रॉपर्टी में बराबरी से अधिकार मिलेगा।
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