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LGBTQ+ कम्यूनिटी से जुड़ी असल परेशानियों से दूर रहते हैं प्राइंड मंथ पर बने ब्रांड एड्स: प्रार्थना प्रसाद

हर जिंदगी के साथ बातचीत के दौरान, प्रार्थना प्रसाद ने LGBTQ+ कम्यूनिटी के बारे में खुलकर बात की। ब्रांड कैंपेन्स हों या फिर जेंडर न्यूट्रल फैशन, उन्होंने हर मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखी।
Editorial
Updated:- 2023-06-28, 17:40 IST

LGBTQ+ यानी लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोग। आज के वक्त में भी LGBTQ+ कम्यूनिटी को कई संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें वे अधिकार नहीं मिल पाते हैं, जिन पर उनका पूरा हक है। हालांकि, जून के महीने को प्राइड मंथ के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन LGBTQ+ कम्यूनिटी के साथ होने वाला भेदभाव साफ तौर पर दिखाई देता है। हर जिंदगी प्राइड मंथ में LGBTQ+ कम्यूनिटी से जुड़े हर मुद्दे पर बेबाकी से बात कर रहा है। हमने वीडियो क्रिएटर और कॉस्मोपॉलिटन की LGBTQ+ वॉइस ऑफ द ईयर प्रार्थना प्रसाद (shorthairedbrownqueer)से बात की। किस तरह LGBTQ+ कम्यूनिटी के इर्द-गिर्द बुने गए ब्रांड एड्स, प्राइड मंथ की बात तो करते हैं लेकिन LGBTQ+ के लोगों की असल परेशानियों से दूर रहते हैं और क्या कुछ है, जो आज भी परेशानी की जड़ बना हुआ है। आइए उन्ही से जानते हैं।

ब्रांड कैंपेन्स पर रखी अपनी राय

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प्रार्थना प्रसाद ने खुलकर LGBTQ+ से जुड़े मुद्दों पर बात की। उन्होंने कहा, 'जून आते ही सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए कई ब्रांड्स इस तरह की कैंपेन करते हैं। लेकिन यह सिर्फ ऊपरी होता है। ये लोग परेशानियों की जड़ में नहीं जाना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को लेकर इतना कुछ हुआ लेकिन किसी ब्रांड ने इस मुद्दे पर बात नहीं की, ये ब्रांड्स बस जून आते ही मार्केटिंग की प्लानिंग करते हैं और उसके लिए प्राइंड मंथ को बीच में लाते हैं। सिर्फ सतही तौर पर ब्रांड्स अपनी मार्केटिंग के लिए हमारी कहानियों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन असल में कम्यूनिटी से जुड़ने की कोशिश नहीं करते हैं।'

असल मुद्दों पर ध्यान देना है जरूरी

प्रार्थना प्रसाद ने इस बारे में बात करते हुए कहा, हमारा समाज अभी भी रूढ़िवादी है और यही वजह है कि LGBTQ+ समुदाय इतना संघर्ष कर रहा है। चाहे बात शिक्षा की हो, मूल अधिकारों की हो, रोजगार की हो, हेल्थकेयर की हो, अभी भी LGBTQ+ के लोगों को उनकी बेसिक जरूरतों को पूरा करने की सुविधाएं भी नहीं मिल पाई हैं। उन्होंने कहा, 'हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।' उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया, 'ब्रांड्स सिर्फ अपना मुनाफा कमाना चाहते हैं। वे असल मुद्दे पर नहीं जाना चाहते हैं क्योंकि इससे उन्हें मुनाफा नहीं मिलेगा। बल्कि ये उनके लिए विवादित हो जाएगा। अक्सर ब्रांड्स इस बात को लेकर अपना प्रमोशन करते हैं कि वे कम से कम इस बारे में कुछ तो बात कर रहे हैं लेकिन सच यह है कि अगर असल मुद्दे पर बात नहीं की जाएगी तो इस सब का कोई फायदा नहीं है।

जेंडर-न्यूट्रल फैशन पर भी रखी राय

प्रार्थना ने हर जिंदगी से बातचीत के दौरान जेंडर-न्यूट्रल फैशन पर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि यह उनके लिए सुविधाजनक है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अभी भी कपड़ों के कई ब्रांड्स, महिलाओं और पुरुषों के कपड़ों को लेकर रूढ़िवादी सोच रखते हैं जो कि गलत है। उन्होंने कहा, 'अगर बात मर्दों की कमीज की करें तो यह मुलायम होगी। लेकिन महिलाओं के ज्यादातर कपड़े असुविधाजनक होते हैं। पेंट में जेब नहीं होती हैं या बहुत छोटी होती हैं, जिनमें आप एक मोबाइल भी नहीं रख सकते हैं। वहीं हर स्टोर का साइज गाइड भी अलग होता है।' इन ब्रांड्स के पास ऑप्शन्स की कमी होती है क्योंकि न्यूट्रल फैशन के बारे में इनकी सोच अभी भी खुली नहीं है।

 

 

 

 

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स्वीकार करने की है जरूरत

प्रार्थना ने यह भी कहा कि आज के समय में भी महिलाओं को क्या पहनना चाहिए, किस तरह पहनना चाहिए, इसे लेकर कई सलाह दी जाती हैं। वहीं पुरुषों के लिए भी अलग नॉर्म्स हैं। उनकी मानें तो हमारे समाज को अभी भी काफी कुछ स्वीकार करने की जरूरत है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा, 'शहरी क्षेत्रों में महिलाएं उन कपड़ों को पहन सकती हैं जो पारंपरिक तौर पर पुरुषों के लिए बनाए गए हैं वहीं गांव में आज भी महिलाएं ट्रेडिशनली वहीं पहनती हैं जो महिलाओं के लिए तय किया गया है।' अपनी बातचीत को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह भी कहा कि महिलाएं कई जगह भले ही पुरुषों की तरह कपड़े पहन सकती हैं लेकिन अगर पुरुष, महिलाओं के जैसे कपड़े पहन लें तो उन्हें ताने सुनने पड़ सकते हैं।

 

 

 

 

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अपने बचपन पर भी की बात

प्रार्थना ने कहा कि मैं कम उम्र में ही अपनी पहचान को समझने लगी थी इसलिए मुझे भरे हुए क्लासरूम में अलग सा महसूस होता था। ऐसे बच्चों के साथ पेरेंट्स को लगता है कि वे उन्हे मार-पीट कर उन्हें बदल सकते हैं लेकिन यह संभव नहीं है। उन्होंने कहा, 'मेरे पेरेंट्स चाहते थे कि मैं फ्रॉक पहनूं, बाल बढ़ाऊं लेकिन मुझे ये सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। मैं अपने भाई की तरह कपड़े पहनना चाहती थी। मैं बचपन से ही अपनी पसंद और नापसंद समझ गई थी। मुझे बताया गया कि मुझे क्या पहनना चाहिएष कैसे बात करनी चाहिए, कैसे बैठना चाहिए और किस तरह के बच्चों के साथ नहीं खेलना चाहिए, क्योंकि मैं लड़की थी और कोई भी सवाल करने पर मुझे यही जवाब मिलता कि मुझे ये सब करना पड़ेगा क्योंकि मैं लड़की हूं।' (ट्रांसजेंडर्स में कैसे होता है सेक्स चेंज ऑपरेशन?)

प्रार्थना ने ये भी बताया कि हाईस्कूल तक उन्हें ये समझ में आने लगा था कि वह लड़कियों को पसंद करती थी। उन्होंने इंटरनेट पर इस सब के बारे में खोज की और उन्हें लेस्बियन के बारे में पता चला। वह सबसे पहले अपने परिवार और करीबी दोस्तों के पास गईं। प्रार्थना ने शेयर किया कि अगर ऐसे समय पर किसी व्यक्ति को सहारा न मिले, तो यह जिंदगी और मौत जैसी सिचुएशन हो सकती है।

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यूं मनाया अपनी आजादी का जश्न

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सितंबर 2018 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने आईपीसी 377 को रद्द कर दिया, जो सेम सेक्स वाले दो लोगों के बीच सहमति से बने रिश्ते को अपराध मानती थी। उस समय प्रार्थना अपने कॉलेज के तीसरे वर्ष में थी। वह इस मौके को सेलिब्रेट करना चाहती थीं। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाईं क्योंकि कोई उनकी पहचान के बारे में नहीं जानता था। उन्होंने अपने एक सफेद कुर्ते को अपने हाथों से रेनबो कलर्स से प्रिंट किया। जब वह अपने कॉलेज में एक कार्यक्रम में भाग लेने पहुंचीं, तो लोग उनके बारे में अजीब बातें कर रहे थे, उन्हें अजीब तरीके से देख रहे थे लेकिन उन्होंने इस सब पर ध्यान न देकर आगे बढ़ने का सोचा और खुद को स्वीकारा।

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Image Courtesy: Instagram/Prarthana Prasad

 

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