LGBTQIA+ कम्यूनिटी के लोगों में आत्मविश्वास की कमी की वजह बनता है लोगों का बर्ताव: भावना बर्मी

LGBTQIA+ कम्यूनिटी के लोगों की हेल्थ और उनसे जुड़े मिथ्स के बारे में, तनीषा आरके, संज्ञा प्रोजेक्ट की को-फाउंडर और सेक्स एजुकेटर व डॉक्टर भावना बर्मी, क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट से हर जिंदगी ने बात की।

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जब भी हम LGBTQIA+ कम्यूनिटी के बारे में बात करते हैं तो इसमें कई मिथ्स सामने आते हैं। सबसे अजीब बात यह है कि LGBTQIA+ कम्यूनिटी के लोगों के बारे में यह धारणा है कि ये किसी बीमारी या डिसऑर्डर से ग्रसित हैं तबकि ऐसा नहीं है। जून को हम प्राइड मंथ के तौर पर मनाते हैं लेकिन अभी भी इस कम्यूनिटी के लोगों से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं, जिन पर खुलकर बात होना जरूरी है। इस बारे में हमने सेक्स एजुकेटर और संज्ञा प्रोजेक्ट की को-फाउंडर, तनीषा आरके और क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट, भावना बर्मी से बात की। आइए इस बातचीत से जुड़े कुछ खास पहलू आप तक पहुंचाते हैं।

मेंटल हेल्थ पर बात है जरूरी

डॉक्टर बर्मी ने इस बारे में कहा कि अगर कोई भी व्यक्ति LGBTQIA+ कम्यूनिटी से ताल्लुक रखता है तो इसे अधिकतर लोग बीमारी या मेंटल डिसऑर्डर के तौर पर देखते हैं। डॉक्टर बर्मी के पास कई ऐसे पेशेंट्स आते हैं, जिनका कॉन्फिडेंस और पर्सनालिटी उनके अपनों के व्यवहार की वजह से पूरी तरह हिल गई। उनके अपने ही उनके अस्तित्व को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं थे। जिसकी वजह से उन्हें लोगों को स्वीकार करने में, भरोसा करने में मुश्किल आने लगी। उनमें अकेले रहने की आदत विकसित होने लगी। लंबे समय तक इन मुश्किलों से लड़ते हुए ऐसे लोग डिप्रेशन के शिकार होने लगते हैं।

क्वीयर लोगों की मेंटल हेल्थ के लिए खास टिप्स

क्वीयर लोगों के मेंटल और इमोशनल ट्रॉमा पर बात करते हुए डॉक्टर बर्मी ने बताया कि ये लोग सोसाइटी के रिजेक्शन और दकियानूसी बर्ताव की वजह से बहुत कुछ झेलते हैं। कुछ खास टिप्स भी उन्होंने क्वीयर लोगों के लिए शेयर किए।

  • खुद से प्यार करना सीखें। अपनी परवाह करें और जिन चीजों से आपको खुशी मिले, उन्हें जरूर करें।
  • आपकी कम्यूनिटी से ताल्लुक रखने वाले और लोगों के साथ जुड़ें। जिन लोगों ने आपकी तरह की चैलेंज को फेस किया है, उनसे बात कर के आपको अच्छा महसूस होगा।
  • अपनी पहचान को न छुपाए बल्कि उस पर गर्व करें।
  • अगर आपको जरूरत महसूस हो रही है, तो जजमेंट से डरे बिना प्रोफेशनल हेल्प लें। इसे कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी ताकत बनाएं।

LGBTQIA+ लोगों को मिलनी चाहिए पहचान

सेक्स एजुकेटर और संज्ञा प्रोजेक्ट की को-फाउंडर, तनीषा ने भी हमारे साथ जुड़कर इस बारे में बात की। उन्होंने कहा कि क्वीयर होना पूरी तरह से नॉर्मल है। उन्होंने कहा कि आप किस चीज की तरफ अट्रैक्ट हो रहे हैं, यह आपके हाथ में नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि यह प्रोसेस धीमा है लेकिन पहले की तुलना में लोगों ने अब LGBTQIA+ के लोगों को स्वीकारना शुरू किया है। जैसे ही तनीषा हमारे साथ जुड़ीं, उन्होंने साझा किया कि क्वीयर होना सामान्य बात है। जबकि हमारे समाज का मानना है कि किसी व्यक्ति का यौन रुझान सिर्फ इसलिए अलग होगा क्योंकि उसे बुरा अनुभव हुआ था, लेकिन ऐसा नहीं होता है। यौन शिक्षक ने कहा, "आप जिसकी ओर आकर्षित होते हैं, उसकी मदद नहीं कर सकते।"

डॉ बर्मी ने भी इस बारे में कहा, "हर किसी को अपने जीवन में प्राथमिकता तय करने का अधिकार है, और इसका सम्मान किया जाना चाहिए। कुछ लोग मेरे पास आकर अपने बच्चे के लिए दवाई लिखने को कहते हैं क्योंकि उनका बच्चा LGBTQIA+ कम्यूनिटी से ताल्लुक रखता है। मैं अक्सर उन लोगों से पूछती हूं कि जब आपको अपनी सेक्सुअल पहचान पता चली थी, तो क्या आपने कोई दवाई खाई थी?"

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सेफ सेक्स पर भी जरूरी है बात

लोग अक्सर LGBTQIA+ कम्यूनिटी के ऊपर इस बात की जिम्मेदारी डालते हैं कि वे सोसाइटी में एचआईवी-एड्स फैला रहे हैं। डॉक्टर बर्मी ने साफतौर पर इस बात का खंडन करते हुए कहा कि इंफेक्शन केवल बॉडी फ्लूइड्स के एक्सचेंज से फैलता है। इस बातचीत के दौरान, रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट पर भी चर्चा की। जिसमें अमेरिका में गे और बाइसेक्सुअल लोगों के इंफेक्शन से ग्रसित होने का एक विषम नम्बर सामने आया हालांकि इस तरह का डाटा भारत में सामने आना मुश्किल है। इसके पीछे वजह है कि क्वीयर लोग अभी भी यहां खुलकर जीवन नहीं जी पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सेक्सुअल एक्टिविटीज के लिए उन्हें असुरक्षित तरीकों का सहारा लेना पड़ सकता है।

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तनीषा ने यह भी साफ किया कि पुराने वक्त में इन स्टडीज में सेक्स वर्क्स और गे के रूप में या एनल सेक्स करने वाले लोगों की बात की गई है। इनमें से ज्यादातर लोगों के पास कंडोम और सस्ती हेल्थकेयर से जुड़ी चीजों के बारे में सीमित पहुंच थी। जिस वजह ले उन्हें सेफ सेक्स करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। यहां तक कि इस तरह के एक्टिविटीज करने में उनके लिए चोट लगने का डर भी बना रहता था।

उन्होंने कहा लेकिन अगर हम आज के समय की बात करें तो आज भी इन लोगों में सेक्स से जुड़े मुद्दों पर बात नहीं की जा रही है। यही वजह है कि LGBTQIA+ समुदाय से जुड़े लोग सेक्स से जुड़ी परेशानियां झेल रहे हैं या फिर बिना किसी प्रोटेक्शन के सेक्स कर रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि एचआईवी, व्यक्ति की पहचान के आधार पर नहीं होता है। किसी एक कम्यूनिटी को दोषी ठहराना इस बात को दिखाता है कि हेल्थकेयर की सबसे ज्यादा जरूरत किसे है। यह इस बात को नहीं दिखाता है कि उनकी वजह से एचआईवी फैल रहा है। एचआईवी का खतरा सभी को है। इसलिए सेक्स करते वक्त कंडोम का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए।

अब भी जुड़े हैं कई मिथ्स

डॉक्टर बर्मी ने कहा कि ज्यादातर लोगों को ऐसा लगता है कि जिन लोगों को मेंटल हेल्थ से जुड़ी कोई परेशानी है, वे एक अच्छी सेक्स लाइफ नहीं जी सकते हैं,यह गलत है। उन्होंने कहा कि किसी की सेक्स लाइफ में समस्याएं साइकोलॉजिकल हो सकती हैं, और थेरेपी दोनों मामलों में मदद कर सकती है। उनके द्वारा सुने गए सबसे बेतुके मिथकों में से एक यह था कि क्वीर समुदाय के लोगों को कुछ खास तरीकों से पहचाना जा सकता है, और किसी की सेक्सुअल प्रेफरेंस या लैंगिक पहचान को दवा के साथ 'ठीक' किया जा सकता है।

तनीषा ने एक जरूरी मुद्दे का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोग मान लेते हैं कि अगर कोई व्यक्ति क्वीयर है तो वह एंग्जायटी और डिप्रेशन का शिकार होगा। लेकिन वे ये नहीं समझ पाते कि LGBTQIA+ लोगों के साथ उनका बर्ताव ही इसकी असल वजह है।

उन्होंने यह भी कहा कि क्योंकि कई पेरेंट्स ये मानते हैं कि एक क्वीयर होना एक बीमारी है, इसलिए वे अपने बच्चों को कन्वर्जन थेरेपी के लिए भेजते हैं। उन्होंने कहा, "यह काम नहीं करता है क्योंकि आप स्ट्रेट व्यक्ति को समलैंगिक या समलैंगिक व्यक्ति को स्ट्रेट नहीं बना सकते।" तनीषा ने यह भी बताया कि अपने बच्चे की सेक्सुअल पहचान को सही करने में कई बच्चों की जान तक चली गई है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर लोग क्वीयर कम्यूनिटी की मेंटल हेल्थ के बारे में चिंता जाहिर करते हैं, तो उन्हें सबसे पहले अपने अंदर झांककर देखना चाहिए कि वे कैसे उनकी लाइफ को और डार्क बना रहे हैं।

तनीषा ने इस बात पर भी बात की कि बहुत से लोग किसी को देखकर ही उसके प्रोनाउन और जेंडर की पहचान तय कर लेते हैं। जिसकी वजह से यह एक व्यक्ति, खासकर ट्रांसजेंडर लोगों को ऐसी सिचुएशन में ला देता है जहां उन्हें अपनी मेडिकल और इंटेमिसी से जुड़ी जानकारी शेयर करनी होती है। जबकि हो सकता है वह व्यक्ति इसके लिए कम्फर्टेबल न हो और अपनी पहचान जाहिर न करना चाहता हो।

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