ओशो अपने आध्यात्मिक विचारों के लिए दुनियाभर में लोकप्रिय रहे। उनके विचार हर लिहाज से मौलिक थे। वह हमेशा नए रास्तों पर चलें और उन्होंने वो किया, जो दुनिया में कोई और सोच भी नहीं सकता था। उन्होंने जिंदगीऔर उसे जीने को लेकर भी कई विचार दिए। जाहिर सी बात है, उन्होंने महिलाओं के विषय में भी काफी कुछ कहा। आइए जानें उनके कुछ ऐसे विचारों के बारे में, जिन्हें जानकर आपका नजरिया बदल जाएगा-
महिलाएं अक्सर बड़े-बड़े मुद्दों पर बहस नहीं करती हैं, वो सीधे अपना फैसला सुना देती हैं। अपने फैसले के लिए वे तर्क नहीं देतीं। बहस करना महिलाओं की फितरत में नहीं होता, क्योंकि यह उन्हें रास नहीं आता। दरअसल महिलाएं बहुत बारीकी से किसी विषय पर सोचती रहती हैं और काफी सोचने के बाद ही किसी फैसले पर पहुंचती हैं। लेकिन उनकी इन्ट्यूशन उन्हें सीधे ही किसी चीज के लिए हां या नहीं करने के लिए प्रेरित करती है। वे बहुत जल्द भांप लेती हैं कि किसी काम को किस तरह से करने पर वह सही होगा या उसमें किस तरह की परेशानी आ सकती है।
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महिलाओं को कराटे, अकीडो, जूडो जैसी खुद को मजबूत बनाने वाली टेकनीक्स सीखनी चाहिए। हालांकि ये फेमिनिन टेकनीक्स हैं, लेकिन ये महिलाओं को काफी स्ट्रॉन्ग बना देती हैं। महिलाओं की कद-काठी पुरुषों के जैसी नहीं होती, वे कुदरती तौर पर पुरुषों के जितनी मजबूत नहीं होतीं, लेकिन उनके पास अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने के बहुत से तरीके होते हैं।
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पिछले 3000 सालों में 5000 से ज्यादा लड़ाइयां लड़ी गई होंगी। ये लड़ाइयां पुरुषों के दिमाग की उपज होती हैं। इसीलिए मैं चाहता हूं कि मातृसत्तात्मक समाज हो, क्योंकि महिलाएं मूल रूप से आक्रामक नहीं होतीं। वे प्यार देना जानती हैं, वे दूसरों के लिए इमोशनल होती हैं। हालांकि इसका उनकी शारीरिक संरचना से कोई मतलब नहीं होता। पुरुष भी सोच से महिलाओं जैसे हो सकते हैं। महिलाएं अपनी सोच से इतनी ज्यादा शक्तिशाली होती हैं कि वे पुरुषों के विचार बदलने का भी सामर्थ्य रखती हैं।
महिलाएं पुरुषों से लंबे समय तक जीती हैं, लगभग पांच साल ज्यादा। इसीलिए आपको दुनियाभर में विधवाओं की संख्या ज्यादा नजर आती है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम बीमार पड़ती हैं। महिलाएं ज्यादा सहनशील होती हैं, वे अपनी स्थितियों को बहुत जल्दी स्वीकार करती हैं। यह ताकत उनमें आती कहा से हैं, दरअसल उनमें पुरुषों के मुकाबले स्वीकार्यता कहीं ज्यादा होती है।
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महिला होने का अर्थ है धैर्यवान होना, किसी हड़बड़ी या जल्दबाजी में नहीं होना और सबसे बड़ी चीज, महिला होने का मतलब है प्रेम से भरा होना। महिलाएं इस मामले में पुरुषों से पूरी तरह अलहदा हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाएं कहीं ज्यादा गुणवान हैं।
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महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम बीमार पड़ती हैं, कम आत्महत्या करती हैं, हालांकि आत्महत्या के बारे में बोलती ज्यादा हैं। महिलाएं ज्यादा से ज्यादा नींद की गोलियां लेती हैं। इसकी तुलना में पुरुष दोगुनी संख्या में सुसाइड करते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उनका स्टेमिना ज्यादा होता है।
दुनिया में आधी आबादी महिलाओं की है, अगर इन महिलाओं को अपने टैलेंट को आगे बढ़ाने का मौका मिले तो यह दुनिया और भी ज्यादा खूबसूरत हो सकती है। महिला और पुरुष में किसी तरह का मुकाबला नही हैं, महिलाएं अपनी जगह हैं और पुरुष अपनी जगह। इनमें फर्क तो हैं, लेकिन इनमें से ना कोई बेहतर है, ना कोई कमतर। उनका अलग होना ही उनकी खूबसूरती है। ऐसे में महिलाओं को अपनी खूबियों पर फोकस करते हुए आगे बढ़ने पर फोकस करना चाहिए।
महिलाएं पूरी तरह से अलग होता है। वे प्रेम चाहती हैं। महिलाओं को थोड़ा समय लगता है आनंद की स्थिति में आने में, उन्हें पति का साथ होना बहुत अच्छा लगता है। वे चाहती हैं कि उन पर प्यार की बरसात हो, जिसमें वे पूरी तरह से डूब जाएं।
सदियों से महिलाएं कष्ट झेल रही हैं क्योंकि उन्होंने जो कुछ भी चाहा, पुरुष उन्हें नहीं दे सके। पुरुष दैहिक सुख के लिए उनके साथ रहे हैं, वस्तु की तरह उनका इस्तेमाल होता आया है, जिसके बाद पुरुष के लिए उनका महत्व कम हो जाता है। महिलाओं को यह चीज बहुत खराब लगती है और इसी वजह से वे दुखी होती हैं। उनके मन में डर होता है। फिजिकल इंटिमेसी के बाद महिलाएं दुखी होती हैं, क्योंकि उन्हें कुछ हासिल नहीं होता। उनके प्यार के पैमाने पुरुषों से कहीं ऊंचे होते हैं।
इन दिनों प्रियंका चोपड़ा की फिल्म की चर्चा जोरों पर है, जो ओशो की जिंदगी पर आधारित होगी। इस फिल्म में वह मां आनंद शीला के किरदार में नजर आएंगी, जो भगवान रजनीश की प्रेमिका और दायां हाथ कही जाती हैं। इस फिल्म को निर्देशक Barry Levinson बना रहे हैं।
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