NCRB (National Crime Records Bureau) के आंकड़े बताते हैं कि निर्भया मामले के 11 साल बाद भी महिलाओं के खिलाफ बलात्कार के मामले कम नहीं हुए हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है और समाज में मौजूद लैंगिक असमानता और महिलाओं के प्रति हिंसा को उजागर करती है।
NCRB रिपोर्ट के हिसाब से महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले
NCRB के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में महिलाओं के खिलाफ दर्ज किए गए बलात्कार के मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। 2022 में 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जो हर घंटे लगभग 51 एफआईआर के बराबर है, 2021 में 4,28,278 से गंभीर स्तर पर हुए वृद्धि को उजागर करता है। एक प्रति लाख आबादी पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर 66.4 प्रतिशत है, जबकि ऐसे मामलों में आरोप लगाने के बाद एफआईआर दायर किया गया है। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि ये आंकड़े केवल दर्ज किए गए मामलों का प्रतिनिधित्व करते हैं और वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है।
दिल्ली शहर में महिलाओं के खिलाफ अपराध में सबसे अधिक वृद्धि हुई है, वहीं राज्य स्तर पर उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं, जहां दिल्ली में साल 2022 में 14,247 मामले दर्ज किए गए थे। दरअसल, पूरे देश में 19 बड़े शहरों में से दिल्ली लगातार महिलाओं के खिलाफ तीन बार से अपराध के मामले में सबसे आगे है।
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रेप और POCSO के मामले उत्तर प्रदेश राज्य सबसे ऊपर
उत्तर प्रदेश में रेप और POCSO के मामले सबसे ज्यादा सामने आए हैं, जहां 2022 में 14,247 मामलों के साथ, दिल्ली में देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की हाईएस्ट रेट 144.4 दर्ज की गई, जो देश की औसत दर 66.4 से कहीं अधिक है। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी में ऐसे मामले 2021 में 14,277 और 2020 में 10,093 थे।
उत्तर प्रदेश (65,743) ने 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में सबसे अधिक एफआईआर दर्ज की, इसके बाद महाराष्ट्र (45,331), राजस्थान (45,058), पश्चिम बंगाल (34,738), और मध्य प्रदेश (32,765) का स्थान रहा।
निर्भया मामले के बाद महिला सुरक्षा के लिए कई कानूनों और नीतियों को लागू किया गया है, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका प्रभावी कार्यान्वयन अभी भी एक चुनौती है। हमें समाज में मौजूद लैंगिक रूढ़िवादिता और महिलाओं के खिलाफ हिंसा की इस संस्कृति को बदलने के लिए लगातार प्रयास करने की जरूरत है। ऐसा एक्सपर्ट्स का मानना है।
क्या था निर्भया मामला
निर्भया केस, जिसे 2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामला भी कहा जाता है, भारत के इतिहास में एक बेहद ही जघन्य और दुखद घटना थी। 16 दिसम्बर 2012 की रात दिल्ली में एक चलती बस में एक 23 वर्षीय महिला पर 6 लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार और क्रूरतापूर्वक हमला किया गया था। इस अमानवीय कृत्य से महिला की हालत बेहद गंभीर हो गई और 13 दिनों के बाद सिंगापुर के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया।
निर्भया केस ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। राष्ट्रीय स्तर पर भारी विरोध प्रदर्शन हुए और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सवाल उठने लगे। इस घटना के बाद सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए कई सख्त कानून बनाए, जिनमें निर्भया कानून भी शामिल है।
निर्भया केस आज भी हमें याद दिलाता है कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हमें कितना संवेदनशील और सजग रहने की जरूरत है। यह घटना हमें समाज में फैले हुए लैंगिक असमानता और महिलाओं के प्रति हिंसा के खिलाफ लड़ने के लिए बहुत बड़ा उदाहरण है।
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असुरक्षा को लेकर क्या है लोगों के अनुभव:
सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन की प्रोग्राम मैनेजर, सुमन भारती के मुताबिक हमारे समाज में स्त्री शक्ति को बढ़ावा देने की बातें तो होती रहती हैं,पर क्या हम इसे सिर्फ बोलचाल के लिए ही हम इस्तेमाल करते हैं या फिर मानसिकता में भी अमल करते हैं? यह एक अहम सवाल है कि शहर बड़ा हो या छोटा, हमें ये समझना होगा कि समाज का निर्माण कैसे हो रहा है। हम इसमें स्त्री के लिए बराबरी और सम्मान की स्थिति को कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं। समाज में स्त्री के प्रति यह दृष्टिकोण बदलना हम सभी की जिम्मेदारी है। इसके लिए हमें शिक्षा के क्षेत्र में और भी प्रयास करना होगा ताकि सिर्फ स्त्री ही नहीं बल्कि समाज का हर वर्ग संवेदनशील बन सके।
पटना उच्च न्यायालय की वकील और पूर्व गांधी फेलो सिद्धांतिका वत्स का मानना है कि इन रिपोर्टों के माध्यम से महिला सुरक्षा की वर्तमान स्थिति का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। लेकिन महिलाओं को कभी भी अपने असुरक्षित होने के तर्क के समर्थन करने वाली रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, वे कभी भी अपने साथ हुए ऐसे मामलों को नहीं भूल पातीं। मेरा मानना है कि शहरों से खबरें आसानी से रिपोर्ट की जाती हैं, लेकिन गांवों में अपराध दर भी कोई कम नहीं है।
यह घटनाएं घर से सड़क, स्कूल, कॉलेज और कार्यस्थल तक सभी जगह हो सकते हैं। जब तक मानसिक विकास नहीं होगा कानून स्थिति को संभालने में सक्षम नहीं हो सकता है। हमने ऐसे कई छात्राओं से बातचीत किया है, जिन्हें यह भी नहीं पता कि वे इतने जघन्य अपराध की शिकार हो चुकी हैं। अब समय आ गया है कि स्कूली पाठ्यक्रम में इन विषयों को अनिवार्य तौर पर शामिल किया जाए। एक घटना को संबोधित करते हुए सिद्धांतिका बताती हैं कि जब दुर्गा पूजा के अष्टमी के दिन महिला सुरक्षित नहीं है, तो हमें मानसिक समस्या की गंभीरता को समझ लेनी चाहिए और इसके लिए मजबूत कदम उठाने चाहिए।
पीरामल फाउंडेशन फॉर एजुकेशन लीडरशिप की प्रोग्राम लीडर प्रियंका कुमारी कहती हैं कि इतनी चुस्त कानून व्यवस्था होने के बावजूद भी रेप जैसे मामलों का सामने आना हमारे समाज के लिए एक कलंक है। हमारा समाज सुरक्षित तब बनेगा, जब रेप जैसी अपराध पर पूर्ण विराम लगाया जा सके। लोगों के मन में ऐसी आपराधिक घटनाओं का भय ना होना और साल दर साल बढ़ती संख्या से प्रतीत होती है। समाज को जागरूक करने के लिए कानून को सख्त कदम उठाने की जरूरत है, ताकि महिलाएं और उनका परिवार चिंता मुक्त इस समाज में जी सके और महिला को इस डर से किसी भी मौके को त्यागना न पड़े।
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