दिल्ली को दिलवालों का शहर कहा जाता है। ये वो शहर है जो देश की राजधानी है और यहां आपको दुनिया भर के लोग मिल जाएंगे। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हर तरह के लोग यहां मौजूद रहते हैं और इसी के साथ यहां हर तरह के क्राइम भी होते हैं। दिल्ली निर्भया कांड को लेकर भी फेमस है और इसे राष्ट्रीय शर्म की बात ही कहेंगे कि उसके 10 साल बाद भी अब तक स्थितियों में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। हाल ही में दिल्ली में एक स्कूल छात्रा पर एसिड अटैक हुआ है।
दिल्ली शहर ऐसा है जो सबको बाहें फैला कर खुद में शामिल कर लेता है, लेकिन क्या ऊपरी चकाचौंध के बीच हमारी जिंदगी वैसी ही है जैसी होनी चाहिए? मैं दिल्ली में पिछले 6 सालों से रह रही हूं और आज आपसे ये बात करने जा रही हूं कि क्या मैं दिल्ली में सुरक्षित महसूस करती हूं?
दिल्ली-एनसीआर में नौकरी करना और यहां अपनी जिंदगी जीना आसान नहीं है। रोज़ की भागदौड़ के बीच आप खुद को कहीं खोया हुआ महसूस करती हैं। एक बात जिसके बारे में मुझे पता है वो ये कि इस जगह पर एक डर है। भले ही उस डर को हम मज़ाक में ही ले जाएं और कहें कि 'भई ये तो दिल्ली है यहां रात को सिर पर कफन बांध कर निकला जाता है।' पर दिल्ली एनसीआर में मैं रात ढलने के बाद सुरक्षित महसूस नहीं करती हूं।
दिल में कहीं ना कहीं एक याद आती है कि इस जगह निर्भया ने अपना दम तोड़ा था और अपने दिमाग से मैं ये नहीं निकाल पाती हूं।
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सबसे पहले मैं ये बता दूं कि हमेशा डर लगे ऐसा नहीं होता है, लेकिन कुछ खास स्थितियां होती हैं जहां अकेले जाने में मुझे दहशत महसूस होती है।
ये डर किसी घटना के होने का है और सुरक्षा का है। अगर रात में 10 बजे मुझे मेट्रो स्टेशन का वॉशरूम इस्तेमाल करना है तो डरते हुए जाना होता है क्योंकि अधिकतर वो किसी कोने में होते हैं और मैं घर पहुंचने तक इंतज़ार करना बेहतर मानती हूं। इतना ही नहीं रास्ते में ईव टीजिंग और भद्दे कमेंट्स सुनने की तो जैसे आदत सी हो गई है जो दिन दहाड़े भी होते हैं तो शाम तक का इंतज़ार क्या ही किया जाए।
दिल्ली में मेरे जैसी कई लड़िकयां हैं जो शायद ये डर महसूस करती होंगी। भले ही कोई खुलकर ये कहे कि वो बहुत ही ज्यादा बेहतर स्थिति में है, वो बहुत बोल्ड है, लेकिन कहीं न कहीं ये डर है। यूएन का एक सर्वे बताता है कि दिल्ली में 95 प्रतिशत महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं और पब्लिक प्लेस में जाने में भी डरती हैं।
फोर्टिस की काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर निष्ठा से मैंने इसके बारे में बात की। डॉक्टर निष्ठा का कहना है कि महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ किसी एक जगह के लिए ही है। मुझे लगता है कि सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि दुनिया के लगभग हर हिस्से में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर सोचने की जरूरत है। निर्भया कांड के बाद लोगों ने महिला सुरक्षा को लेकर बहुत सी बातें की, लेकिन इसे लेकर कोई एक कुछ करे इससे कुछ नहीं होगा। महिला सुरक्षा पर बतौर समाज हमें काम करने की जरूरत है।
हमें पहले ये समझने की जरूरत है कि ऐसी कौन सी जगहें हैं, ऐसे कौन से एरियाज हैं, ऐसी कौन सी स्थितियां हैं जहां पर वुमन सेफ्टी कॉम्प्रोमाइज हो जाती है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट इसमें से एक हो सकता है। दिल्ली में ये माना जाता है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुरक्षित नहीं है। ऐसे में कितने पुलिस वाले वहां मौजूद हैं, कितनी सुरक्षा वहां है ये सब कुछ हमारा परसेप्शन बदलती हैं। हमारे सामने न्यूज आती है कि किसी लड़की के साथ कोई मामला हुआ है, लेकिन उसके बाद क्या प्रोसीडिंग चल रही है, किस तरह की सजा दोषियों को दी जा रही है, आखिर आगे हो क्या रहा है इसके बारे में हमें नहीं पता होता और ये एक कारण हो सकता है डर का।
हमें बस एक इन्फॉर्मेशन दी जाती है कि इस इलाके में ये चीज़ हो गई है और ऐसे में एक डर का माहौल पैदा होता है। उसके आगे क्या चल रहा है वो हमें समझ नहीं आता और फिर क्राइम ज्यादा बड़ा हो जाता है। यही कारण है कि लड़कियों में डर का माहौल पैदा होता है।
सबसे पहले ये समझने की जरूरत है कि आखिर महिलाओं के खिलाफ क्राइम होते क्यों हैं? उसका सीधा सा कारण जो मेरी समझ में आता है वो ये कि लोगों को लगता है कि वो बच जाएंगे। हमें बतौर समाज कहीं ना कहीं खुद को बदलने की जरूरत है और साथ ही साथ एजुकेशन सिस्टम को ना सिर्फ वुमन सेफ्टी बल्कि ह्यूमन सेफ्टी की ओर ले जाने की जरूरत है।
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डॉक्टर निष्ठा का कहना है कि अगर आप डर महसूस करती हैं तो आपको कहीं ना कहीं अपनी सराउंडिंग को बदलने की जरूरत है। ये डर आपके दिमाग पर हावी हो सकता है और आपको इस बात को एक्सेप्ट करना होगा कि दुनिया में हर तरह के लोग होते हैं और हर तरह की घटनाएं भी हो सकती हैं। आपको ऐसी चीजें करनी है जिससे आप सुरक्षित महसूस कर सकें। अगर आपको डर लगता है तो अपने साथ कुछ सेफ्टी डिवाइस लेकर चलें। अगर आपको लगता है कि आप खतरे की स्थिति में हैं तो आप मदद मांगें। अपने मन में सारी चीजें दबाकर रखना सही नहीं है।
एक बात तो डॉक्टर निष्ठा ने बिल्कुल सही कही कि ये सिर्फ दिल्ली की समस्या नहीं है। ये पूरे भारत की समस्या है। लड़कियां यहां सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं और लगभग हर जगह पर हमें इस तरह की बातें सुनने को मिलती हैं। अगर कोई अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट आती है तो पता चलता है कि महिला सुरक्षा के मामले में भारत बहुत पीछे है।
सड़क पर छोड़िए यहां तो महिलाएं घर पर भी सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। क्या आपका भी ये मानना है? अपनी राय हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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