गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के एक महान कवि और संत थे। उन्हें भगवान राम के परम भक्त के तौर पर जाना जाता है। उनकी रचनाएं, खासकर 'रामचरितमानस', हिंदी साहित्य का एक अमूल्य रत्न है। उनके दोहे जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर गहरा रौशनी डालते हैं। इनमें भक्ति, ज्ञान, कर्म और जीवन के मूल्यों के बारे में अमूल्य विचार दिए गए हैं। तुलसीदास जी ने अपने दोहों और चौपाइयों में भगवान राम के प्रति गहरा भक्ति भाव व्यक्त किया है। तुलसीदास जी के दोहे इतने प्रासंगिक हैं कि आज भी हम उनकी बातों से प्रेरणा ले सकते हैं।
तुलसीदास जयंती हिंदू धर्म के एक महान संत और कवि गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सातमी तिथि को मनाया जाता है। यानी 31 जुलाई 2025 को तुलसीदास जी की 528 वीं जयंती मनाई जाएगी।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर।
बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर।।
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
दुष्ट संग जनि रीझिए, भलेहु भयौ सयान।
तुलसी मीठे मुखन को, योंहिं फीका जान।।
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी।
तुलसी रामायण में भक्ति भाव को समझने के लिए,
श्रद्धा और विश्वास की आवश्यकता है,
भक्ति के बिना जीवन सूना है।
श्री रामचंद्र कृपालु भज मन,
हरन भव भय दारुणम्।
राम नाम का मरम है यही,
जपत जात सकल कलिमाही,
भक्ति के बिना जीवन व्यर्थ है।
कोहत न मोर पिय को मिलिया,
दुख-दरद को काहू न दीज।
तुलसी के दोहे जीवन को सुधारते हैं,
भक्ति और श्रद्धा को बढ़ाते हैं,
जीवन को सकारात्मक बनाते हैं।
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राम नाम का मरम है यही,
जपत जात सकल कलिमाही।
तुलसी के दोहे जीवन के लिए मार्गदर्शक हैं,
भक्ति और ज्ञान को बढ़ाते हैं,
जीवन को सफल बनाते हैं।
तुलसी भाई सदा रहे, भरत की भक्ति समाय।
राम सखा लखन भी, पावन प्रेम निभाय।।
राम ह्रदय बसत सदा, दीनबंधु रघुनाथ।
करुणा की गाथा बसी, तुलसी के यह नाथ।।
राम नाम का जप करो, भवसागर से तरो।
तुलसी का यह मंत्र है, दुखियों को आधार।।
जो नर राम नाम ले, संकट सब मिट जाय।
सीता के प्रिय राम है, भव से मुक्ति दिलाय।।
तुलसी इस संसार में, भांति-भांति के लोग।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग।।
मीठे वचन सुनाय के, सुख पावे सब लोग।
कठोर वचन से बचिए, यही जीवन का योग।।
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धीरज धरम मित्र अरु, नारी आपतकाल।
तुलसी परखिए चारि, सदा राखिए याद।।
धीरज से सब सुख मिले, धर्म से हो उद्धार।
मित्र और नारी सच्चे हों, संकट से करे पार।।
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