भारतीय समाज में किसी भी परिवार में 3 काम बेहद जरूरी हैं। पहला अपना घर बनाना, दूसरा शादी होना और तीसरा सबसे महत्वपूर्ण काम है बच्चा पैदा करना। अगर किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में ये 3 काम नहीं किए हैं, तो समाज उसके जीवन को निरर्थक मानता है।
खासतौर पर महिलाओं के लिए शादी और बच्चा होना, उनके लिए कैरेक्टर सर्टिफिकेट का काम करता है। बेशक खुद लड़की को अपनी शादी और बच्चे की चिंता हो न हो, मगर घर-परिवार, रिश्तेदार, दोस्त, मोहल्ले की अंटियां फिक्र में घुल जाते हैं और लड़की के जीवन को 'प्रेशर कुकर' बना देते हैं।
भारत में पहले लड़कियों की शादी की बेस्ट उम्र 18-20 मानी जाती है। अब आधुनिकता के चलते यह संख्या बढ़कर 25-30 हो गई है। मगर 25 की उम्र पार करते ही घरवाले लड़की पर शादी का दबाव बनाने लग जाते हैं। वहीं एक बार शादी हो जाए तो सास-ससुर लड़की पर घर को वारिस देने का प्रेशर डालते हैं।
ऐसा लगता है मानों लड़की का जन्म ही इस मकसद से होता है कि एक दिन उसकी शादी होगी और फिर वह दूसरे के घर के वंश को आगे बढ़ाएगी। अपनी मर्जी, इच्छाएं और ख्वाब तो जैसे उनके होते ही नहीं है।
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आप में से बहुत से लोग इस बात से इत्तेफाक रखते होंगे कि अब वक्त बदल चुका है और वक्त के साथ लोगों की लाइफस्टाइल में भी बदलाव आया है। आज के वक्त में लड़का हो या लड़की, दोनों ही खुद को अच्छी तरह से सेटल करना चाहते हैं और फिर कोई जिम्मेदारी अपने सिर पर लेते हैं। शादी करना और बच्चा पैदा करना महिला और पुरुष दोनों की बराबरी से जिम्मेदारियों में इजाफा करता है। बावजूद इसके समाज में आज भी कुछ लोग इस धारणा को समर्थन देते हैं कि शादी और बच्चा वक्त पर होना जरूरी है।
कुछ दिन पहले ही देश के उत्तराखंड राज्य से बेहद चौकाने वाली खबर आई। खबर के मुताबिक एक पिता ने अपने बेटे-बहू पर मानसिक उत्पीड़न का केस करते हुए कहा कि या तो बेटा-बहू उन्हें साल भर में वारिस दें या फिर 5 करोड़ रुपए दें। दरअसल, बेटा-बहू की शादी को 6 वर्ष हो गए हैं और उन्हें कोई संतान नहीं है। ऐसे में पिता का कहना यह है कि उन्होंने बेटे की परवरिश पर बहुत पैसा खर्च किया है, इसलिए यह उनका अधिकार है कि वह बेटा-बहू से कुछ भी डिमांड कर सकते हैं।
बच्चा पैदा करने का दबाव डालना है मानसिक उत्पीड़न
बड़ी हैरत की बात है, बच्चा पैदा करना किसी भी दम्पति के लिए बहुत ही निजी बात है। परवरिश का हिसाब और वारिस की चाहत के नाम पर घर के बड़े-बुजुर्ग अपने बेटे-बहू पर इस बात का यदि दबाव बनाते हैं, तो यह भी एक अपराध है। सुप्रीम कोर्ट की वकील कमलेश जैन कहती हैं, 'भारतीय कानून में सभी को स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। निजता भी मौलिक अधिकार का हिस्सा है, इसलिए कोई भी नागरिक अपनी निजता के हनन की स्थिति में याचिका दायर कर न्याय की मांग कर सकता है।'
इतना ही नहीं, बच्चा पैदा करने का दबाव बनाना भी एक तरह का मानसिक उत्पीड़न है। फिर वह महिला पर हो या पुरुषों पर। हालांकि, अब तक ऐसा कोई केस नहीं आया जहां ससुराल वालों ने बेटे पर भी बच्चा पैदा करने का दबाव बनाया हो। बच्चा न होने का जिम्मेदार सदियों से केवल महिलाओं को ही ठहराया गया है। ऐसे में महिलाएं कानून का सहारा ले सकती हैं। बच्चा पैदा करना है या नहीं यह केवल दम्पति का ही निर्णय होना चाहिए, इसमें हस्तक्षेप करने वाली उनकी निजता का उल्लंघन करता है, जिसकी उसे सजा भी दिलाई जा सकती है।
क्यों जरूरी है वंश आगे बढ़ाना?
हिंदू परिवार में वंश को आगे बढ़ाने के लिए एक उत्तराधिकारी का होना बेहद जरूरी माना गया है। ऐसे में महिलाओं पर यह भी प्रेशर रहता है कि वह लड़के को ही जन्म दें। जबकि आज के युग में लड़का हो या लड़की दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं और दोनों ही हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं। फिर भी वंश और वारिस के नाम पर कई परिवारों में आज भी महिलाओं को बच्चा पैदा करने वाली मशीन बना दिया जाता है। क्रूरता की हद तब पार हो जाती है,जब बार-बार लड़की के जन्म लेने पर महिला की कोख को दोषी करार दिया जाता है कि वह लड़का पैदा नहीं कर सकती है। हालांकि, उत्तराखंड वाले केस में पिता ने बेटा-बहू से पोता या पोती किसी को भी जन्म देने की डिमांड की है। मगर इसकी समय सीमा भी निर्धारित की है।
दरअसल, वंश और वारिस की जरूरत लोगों को इसलिए पड़ती है ताकि अपना कमाया हुआ धन-संपत्ति वह किसी अपने के नाम कर सकें। इससे भी अव्वल, बच्चे और पोते-पोती की चाहत लोगों को इसलिए भी होती है ताकि वह उनके बुढ़ापे की लाठी बन सके। यहां चाहत रखना गलत नहीं है, मगर उसे थोपना अपराध है।
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महिलाएं न लें स्ट्रेस
कभी कंसर्न के चलते तो कभी महज गॉसिप करने के लिए अक्सर लोग महिलाओं को बातों-बातों में ताने मारते हैं। जैसे- 'शादी को इतना वक्त बीत गया है बच्चा नहीं हुआ', 'क्या पति से कोई प्रॉब्लम है', 'कहीं तुम्हारे अंदर ही तो कमी नहीं, जो बच्चा नहीं पैदा कर पा रही हो'। लोगों के ये सवाल बेशक बहुत पेनफुल होते हैं, मगर अगर आप अपनी प्रायोरिटी सेट कर लें, तो आपको स्ट्रेस नहीं होगा।
फैमिली प्लानिंग एक पर्सनल इश्यू है और किसी के भी कहने या प्रेशर में आकर आपको कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। बेशक घरवाले इस बात पर जोर दे रहे हों कि बच्चा कर लो पाल हम लेंगे, यदि आप तैयार नहीं हैं एक नई जिम्मेदारी के लिए तो सोच समझकर निर्णय लें।
क्या केवल बच्चा पैदा करना ही महिला को बनाता है 'संपूर्ण'?
यह बात आपने कई बार सुनी होगी कि एक महिला तब ही संपूर्ण मानी जाती है, जब वह बच्चे को जन्म देती है। जो महिलाएं बच्चा नहीं पैदा कर पाती हैं उन्हें समाज में 'बांझ' कह कर पुकारा जाता है। मगर यह सारी पुराने वक्त की बातें थी। आज के समय में वही महिला संपूर्ण कहलाती है, जो मल्टीटास्किंग होती है। केवल घर के काम, बच्चों का पालन-पोषण और पति पर निर्भरता महिलाओं को उनके जीवन जीने के अधिकार का वहन करने से पीछे ढकेलते हैं। ऐसा नहीं है कि शादी न करें या बच्चा न करें। सब करें मगर इसके लिए सही वक्त आप तय करें।
इतिहास और सेलिब्रिटी हैं उदाहरण
बॉलीवुड में कितनी सारी एक्ट्रेस हैं, जिन्होंने शादी नहीं की, शादी की तो बच्चा नहीं किया, किसी को देर से बच्चा हुआ, किसी ने बच्चा गोद लिया, तो किसी ने बिना शादी के ही बच्चा गोद ले लिया। यहां तक कि कुछ एक्ट्रेसेस ऐसी भी हैं, जिन्होंने बच्चे के लिए सेरोगेसी (सेरोगेसी के जरिए मां- बाप बने हैं ये सेलेब्स) माध्यम का सहयोग लिया।
अगर इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के भी अपनी कोई संतान नहीं थी, उन्होंने एक पुत्र को गोद लिया था, मगर आज भी उनके नाम की मिसाल दी जाती है। इतिहास में और भी कई ऐसी महान महिलाएं हुई, जिन्होंने शादी नहीं की। ऐसे में शादी करना या बच्चा पैदा करना, पूरी तरह से किसी भी महिला या पुरुष का अपना निर्णय होता है। किसी भी लिहाज से किसी व्यक्ति के निजी जीवन में दखल देने का अधिकार किसी को नहीं है।
इस तरह कहा जा सकता है कि बेटा-बहू बच्चे पैदा करेंगे या नहीं, करेंगे तो कब करेंगे। इस पर हुक्म देने का अधिकार माता-पिता को भी नहीं है, वह केवल अपनी इच्छा जाहिर कर सकते हैं, जिसमें आदेश का भाव भी नहीं होना चाहिए। आप भी बताएं कि इस बात से आप कितना इत्तेफाक रखते हैं और आपके विचार क्या हैं।
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