कुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, जहां लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करने और धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए एकत्र होते हैं। इस विशाल मेले में पंडों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वे श्रद्धालुओं को धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा विधियों और मंत्रों के बारे में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जिससे श्रद्धालु सही तरीके से पूजा पाठ कर सकें और पुण्य अर्जित कर सकें। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। आपको बता दें, प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले में पंडों को विशेष रूप से 'तीर्थराज' और 'प्रयागवाल' के नाम से जाना जाता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से इस लेख में प्रयागवाल के बारे में जानते हैं।
महाकुंभ में प्रयागवाल कौन होते हैं?
प्रयागराज की धार्मिक परंपराओं में प्रयागवालों का अहम योगदान रहा है। सदियों से ये तीर्थ गुरु के रूप में पूजे जाते रहे हैं और धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करते आए हैं। एक समूह के रूप में रहने के कारण इन्हें प्रयागवाल कहा गया। ये उच्च कोटि के ब्राह्मण हैं, जिनमें सरयूपारी और कान्यकुब्ज दोनों शामिल हैं। इतना ही नहीं, प्रयागराज के पंडों के पास देश-विदेश में रहने वाले भारतीयों के पूरे परिवार का 500 साल पुराना रिकॉर्ड है। वे जानते हैं कि कौन किसका यजमान है और कहां से आया है। ये पंडे बहुत पुराने समय से ही प्रयागराज आने वाले लोगों का रिकॉर्ड रखते आए हैं।
आपको बता दें, इस साल का महाकुंभ मेला प्रयागराज में मनाया जा रहा है. यह धार्मिक आयोजन 13 जनवरी, 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी, 2025 तक चलेगा. इस दौरान देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान करने के लिए आएंगे. हिंदू धर्म के अनुसार, इस पवित्र नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि प्रयागराज को कुंभ मेले का प्रमुख स्थल माना जाता है।
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ग्रंथों के अनुसार, प्रयागराज में अस्थिदान और पिंडदान का विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि इन संस्कारों को पूरा करने से हमारे पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है। प्रयागराज की पवित्र भूमि पर किए गए ये संस्कार और अधिक फलदायी होते हैं। प्रयागराज में रहने वाले प्रयागवाल ही इन संस्कारों को संपन्न कराते हैं। महाकुंभ और माघ मेले में आने वाले तीर्थयात्रियों के रहने की सारी व्यवस्था प्रयागवाल करते हैं।
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प्रयागवाल को कैसे पहचानें?
प्रयागवाल अपना निशान या झंडा एक ऊंचे बांस पर लगाते हैं ताकि तीर्थयात्री उन्हें आसानी से पहचान सकें। प्रयागवाल के झंडे तीर्थयात्रियों के लिए एक मार्गदर्शक के समान हैं।
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Image Credit- HerZindagi
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