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हिंदू धर्म के मुख्य अवसर पितृ पक्ष का हो चुका है आरंभ, तर्पण के साथ पिंडदान की विधि और उपाय तक यहां लें पूरी जानकारी

पितृ पक्ष का समय पूर्वजों और वंशजों के बीच सामंजस्य बनाने का बहुत महत्वपूर्ण समय माना जाता है। इस पवित्र अवधि को लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं और उनका जवाब वो गूगल ट्रेंड्स में ढूंढ़ रहे हैं। आइए आपको बताते हैं श्राद्ध से जुड़ी कुछ बातें।
Editorial
Updated:- 2024-09-24, 14:14 IST

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। मान्यता है कि भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन माह की अमावस्या तिथि तक का समय हमारे पूर्वजों को समर्पित होता है और इस दौरान वो पृथ्वी पर आते हैं।

पितृ पक्ष के सोलह दिन पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रमुख होते हैं। इस पवित्र अवधि में श्राद्ध कर्म, तर्पण और पिंडदान जैसे कई अनुष्ठान किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यदि हम अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म करते हैं और उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करते हैं तो घर में कभी पितृ दोष नहीं होता है।

यही नहीं अगर आपको पूर्वजों की तिथि ज्ञात न हो तब भी आप उनका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या के दिन कर सकते हैं, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सके।

pitru paksha in google trends

किसी भी पर्व की ही तरह पितृ पक्ष भी इन दिनों गूगल पर बहुत ट्रेंड कर रहा है और लोग इसकी तिथि, तर्पण विधि के साथ इस दौरान श्राद्ध की सही विधि के बारे में भी जानना चाहते हैं।

गूगल ट्रेंड्स में पूछे गए सवालों के जवाब जानने और पितृ पक्ष के महत्व को अच्छी तरह से समझने के लिए हमने ध्यान आश्रम के अश्विनी गुरुजी से बात की। आइए आपको भी बताते हैं इसके बारे में विस्तार से।

पितृ पक्ष 2024 श्राद्ध की तिथियां

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इस साल पितृ पक्ष का आरंभ 17 सितंबर, भाद्रपद पूर्णिमा से हो चुका है। पूरे सोलह दिन श्राद्ध पक्ष का समय जो हमारे पूर्वजों को समर्पित होता है, इसका समापन 2 अक्टूबर, आश्विन माह सर्वपितृ अमावस्या के साथ हो जाएगा। इस पूरी अवधि में हम सभी अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध और तर्पण करते हैं, जिससे घर में सदैव खुशहाली बनी रहती है। जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध भी किया जाता है। इस साल पितृ पक्ष की तिथियों के बारे में यहां जानें-

  • पूर्णिमा का श्राद्ध- 17 सितंबर, मंगलवार, जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की पूर्णिमा तिथि को हुई है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
  • प्रतिपदा का श्राद्ध - 18 सितंबर, बुधवार,  जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की प्रतिपदा तिथि को हुई है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
  • द्वितीया का श्राद्ध - 19 सितंबर, गुरुवार, जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की द्वितीया तिथि को हुई है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
  • तृतीया का श्राद्ध - 20 सितंबर, शुक्रवार, जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की तृतीया तिथि को हुई है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
  • चतुर्थी का श्राद्ध - 21 सितंबर, शनिवार, यदि पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने की चतुर्थी तिथि को हुई है तो उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
  • पंचमी का श्राद्ध - 22 सितंबर, रविवार , यदि पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने की पंचमी तिथि को हुई है तो उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है।
  • षष्ठी का श्राद्ध - 23 सितंबर, सोमवार,  जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की षष्ठी तिथि को हुई है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाएगा।
  • सप्तमी का श्राद्ध - 23 सितंबर, मंगलवार , जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की सप्तमी तिथि को हुई है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाएगा।
  • अष्टमी का श्राद्ध - 24 सितंबर, बुधवार, जिन पितरों की मृत्यु किसी भी महीने की अष्टमी तिथि को हुई है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाएगा।  
  • नवमी का श्राद्ध - 25 सितंबर, बृहस्पतिवार, जिन पूर्वजों की मृत्यु किसी भी महीने की नवमी तिथि को हुई है उनका श्राद्ध इस दिन किया जाता है। वहीं नवमी तिथि के दिन ही सभी पूर्वज महिलाओं का श्राद्ध भी किया जाता है। मान्यता है कि पितृ पक्ष की नवमी के दिन पूर्वज महिलाओं का श्राद्ध करके उनकी विदाई कर दी जाती है और समृद्धि का आशीर्वाद लिया जाता है।
  • दशमी का श्राद्ध - 26 सितंबर, शुक्रवार, जिन पूर्वजों की मृत्यु किसी भी महीने की दशमी तिथि को हुई है उनके श्राद्ध के लिए यह तिथि निर्धारित है।
  • एकादशी का श्राद्ध - 27 सितंबर,शनिवार, यदि आपके कोई पूर्वज हैं जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की एकादशी तिथि को हुई है उनके श्राद्ध की यही तिथि शुभ होगी।
  • द्वादशी का श्राद्ध - 29 सितंबर, रविवार, अगर आपके पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने की द्वादशी तिथि को हुई है तो उनके श्राद्ध के लिए यही तिथि उचित है।
  • त्रयोदशी का श्राद्ध - 30 सितंबर,  सोमवार, अगर आपके पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने की त्रयोदशी तिथि को हुई है तो उनके श्राद्ध के लिए यही तिथि उचित है।
  • चतुर्दशी का श्राद्ध - 1 अक्टूबर, मंगलवार, अगर आपके पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने की चतुर्दशी तिथि को हुई है तो उनके श्राद्ध के लिए यही तिथि उचित है।
  • सर्वपितृ अमावस्या - 2 अक्टूबर, बुधवार, अगर आपके पूर्वज की मृत्यु किसी भी महीने की अमावस्या तिथि को हुई है तो उनका श्राद्ध इसी दिन करना शुभ होगा। इसके साथ ही, इस दिन उन सभी पितरों का श्राद्ध भी किया जाता है जिनकी मृत्यु की सही तिथि ज्ञात न हो। मान्यता है कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी पितरों का श्राद्ध करके उनकी विदाई की जाती है और घर की शांति की कामना की जाती है।

पितृ पक्ष का महत्व

पितृ पक्ष हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र समय माना जाता है। इस दौरान पूर्वज धरती पर किसी न किसी रूप में आते हैं और अपने वंशजों से अन्न और जल ग्रहण करते हैं। यह 16 दिनों का समय भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक चलता है, जिसे महालय अमावस्या या सर्व पितृ अमावस्या कहा जाता है। इस दौरान लोग अपने दिवंगत पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण, और पिंड दान जैसे अनुष्ठान करते हैं।

पितृ पक्ष का मुख्य उद्देश्य अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करना और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करना होता है। मान्यता है कि यदि इस दौरान सही विधि से तर्पण कार्य किया जाता है तो उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वो प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।

यदि आपके घर में किसी भी वजह से पितृ दोष है तो इस दौरान सही विधि से श्राद्ध कर्म करना चाहिए, जिससे पितृ दोष दूर हो सकते हैं। यह समय उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो अपने जीवन में कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, क्योंकि पितरों का आशीर्वाद उन्हें इन कष्टों से मुक्ति दिला सकता है।

पितृ पक्ष में तर्पण की विधि

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यदि आप पितृ पक्ष के दौरान सही विधि से पितरों के निमित्त तर्पण करते हैं तो जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहती है। यदि आप घर पर तर्पण कार्य करते हैं तो इसकी सही विधि यहां जानें-

  • तर्पण करने से पहले स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अपने मन को शुद्ध और शांत रखें।
  • कुश या कोई शुद्ध वस्त्र बिछाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें। ऐसा माना जाता है कि दक्षिण दिशा की तरफ हमारे पूर्वजों का वास होता है और ये यम की दिशा भी मानी जाती है।
  • तर्पण के लिए जल, काले तिल, सफेद चावल, जनेऊ और कुशा धारण करना आवश्यक माना जाता है।
  • तर्पण करते समय हाथ में जल, काले तिल और चावल लेकर पितरों का स्मरण करें और 'ॐ पितृ देवतायै नम:' मंत्र का जाप करें।
  • हाथ के अंगूठे और तर्जनी अंगुली के बीच से जल प्रवाहित करें और तीन बार पितरों को अर्पित करें।
  • अंत में पितरों से आशीर्वाद की कामना करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।

पितृ पक्ष में पिंडदान की विधि

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पितरों के लिए पिंडदान करने के लिए सबसे उपयुक्त समय श्राद्ध या पितृ पक्ष को माना जाता है। इस समय पर विशेष रूप से पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है। तर्पण यदि सही विधि से किया जाता है तो इसके शुभ फल मिलते हैं। आइए जानें इसकी विधि के बारे में-

  • यदि आप घर में तर्पण कार्य कर रहे हैं तो एक बर्तन में ताजा पानी लें। उबले हुए चावल या जौ का आटा लें और इसमें तिल, गाय का घी और चीनी मिलाएं।
  • इसको पिंड का आकार दें और इस पर पुष्प अर्पित करें। अपने पूर्वजों का नाम लें और उनका ध्यान करते हुए उनके निमित्त पिंडदान करें।
  • पूजन समाप्त होने के बाद इस पिंड को जल में प्रवाहित कर दें या किसी पवित्र स्थान पर जैसे पीपल के पेड़ के नीचे रख दें।
  • पिंड दान करने के बाद पंचबलि कर्म करें और ब्राह्मण को भोज कराएं।

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पितृ पक्ष में दान का महत्व

पितृ पक्ष का समय हमारे पूर्वजों को याद करने और उनकी शांति के लिए प्रार्थना करने का समय माना जाता है। इस दौरान हम कई उपायों से उनके लिए शांति की कामना करते हैं। इन्हीं उपायों में से एक है दान करना।

मान्यता है कि यदि आप इस दौरान दान-पुण्य करते हैं तो पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिलता है। यही नहीं इस उपाय से आपके घर के पितृ दोष भी दूर होते हैं।

इस अवधि में किया गया दान न केवल पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करता है, बल्कि परिवार में सुख और समृद्धि लाने में भी सहायक होता है।

इसे पितृ दोष को दूर करने का एक प्रभावी उपाय माना जाता है, जिससे जीवन में आने वाली कठिनाइयों को कम किया जा सकता है।

पितृ पक्ष में दान के माध्यम से हम अपने कर्मों का फल प्राप्त करते हैं, जो हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इस अवधि में दान करना एक पवित्र कर्म माना जाता है जो व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन को समृद्ध बनाने का तरीका है। इस समय हम अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं, जिससे हमारे जीवन में खुशहाली बनी रहती है।

पितृ पक्ष के बारे में लोग गूगल पर क्या सर्च कर रहे हैं

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पितृ पक्ष के लिए गूगल पर कई सवाल पूछे जा रहे हैं। जिसमें सबसे ज्यादा इसकी तिथि के बारे में जानने की इच्छा दिखाई गई है। इसके साथ ही लोग पितृ पक्ष के सभी रिवाजों, तर्पण और श्राद्ध की सही विधि के बारे में भी जानना चाह रहे हैं। वहीं अगर हम बात करें कि कौन से राज्य में सबसे ज्यादा लोग पितृ पक्ष के बारे में गूगल से सवाल कर रहे हैं तो वो उत्तर प्रदेश है। 

यदि आप यहां बताए तरीकों से पितरों का श्राद्ध और तर्पण करते हैं तो पूरे साल समृद्धि बनी रहती है और पितृ दोषों से मुक्ति मिलती है। 

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FAQ
पिंडदान कितनी बार करना चाहिए?
पिंडदान तीन बार किया जाता है, उसके बाद चावल या जौ के आटे के बने तीन पिंडों को मिलाकर एक पिंड तैयार किया जाता है। 
क्या पितृ पक्ष में घर में पूजा करनी चाहिए?
पितृ पक्ष में घर में पूजा जरने की मनाही नहीं है और आप पितरों के श्राद्ध कर्म के साथ पूजा-पाठ भी विधि-विधान से कर सकते हैं। 
पत्नी का पिंडदान कौन करता है?
पत्नी के लिए पिंडदान पति कर सकता है और पति की गैरमौजूदगी में महिला का ज्येष्ठ पुत्र पिंडदान कर सकता है। 
मृत्यु के कितने दिन बाद पिंड दान करना चाहिए?
मृत्यु के समय से लेकर 10 दिनों तक पिंडदान किया जाता है। उसके बाद हर साल पितृ पक्ष के समय पिंडदान करने का विधान है।
पितृ पक्ष में क्या नहीं करना चाहिए?
पितृ पक्ष में कई काम जैसे मांस-मदिरा का सेवन, बाल काटना, नाखून काटना, नई चीजों की खरीदारी करना और नए घर में प्रवेश करने जैसी चीजों की मनाही होती है। 
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