अगर आप जरा भी शेर और शायरी का संज्ञान रखती हैं तो मिर्जा गालिब (मिर्ज़ा ग़ालिब) के बारे में आपने सुना ही होगा। दिल्ली में रहने वाले वो मशहूर शायर जिन्होंने अंग्रेजों और मुगलों के जमाने में अपना नाम रौशन किया था। मिर्जा गालिब 1797 से 1869 तक जिए जब हिंदुस्तान ने मुगलों का राज छोड़ ब्रिटिश राज देखा था।
आज हम बात करने जा रहे हैं मिर्जा हेग असदुल्ला खान की जिन्हें प्यार से आप मिर्जा गालिब के नाम से जानते हैं। आज भी दिल्ली की गली बल्लीमारां मिर्जा गालिब के लिए प्रसिद्ध है।
गालिब की शायरी को लेकर प्यार, इश्क और मोहब्बत की दास्तां लिखी जा सकती है। उनके कई शेर माहौल में मदहोशी घोल देते हैं और टूटे हुए दिल की दास्तां भी सुनाते हैं। गालिब की शायरी का दर्द कहीं ना कहीं उनके जीवन की कहानी था। आज हम उनके इसी दर्द को बयां करते हैं।
बचपन में उठ गया पिता का साया
गालिब के पिता 1803 में एक युद्ध में मारे गए। इसके बाद उसके मामा ने उसे पालने की कोशिश की लेकिन 1806 में हाथी से गिरकर उनकी मौत हो गई। मां के बारे में ज्यादा जिक्र नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनकी मृत्यु भी जल्दी हो गई थी। गालिब की मां कश्मीरी थीं।
बचपन की घटनाओं ने गालिब को एक बहुत ही संजीदा इंसान बना दिया। गालिब का भाई मिर्जा यूसुफ भी स्कित्जोफ्रेनिया नामक बीमारी का शिकार हो गया था और वो भी युवा अवस्था में ही चल बसा।
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13 साल की उम्र में शादी
1810 में महज 13 साल की उम्र में नवाब इलाही बक्श की बेटी उमराव बेगम गालिब की पत्नी बनी। गालिब को अपनी पत्नी से लगाव तो था, लेकिन उनका रिश्ता कभी मोहब्बत की दहलीज को पार नहीं कर पाया था। गालिब ने अपने शेर और खतों में लिखा था कि शादी दूसरी जेल की तरह है। पहली जेल जिंदगी ही है जिसका संघर्ष उसके साथ ही खत्म होता है।(क्या था मुगल दरबार)
गालिब और मुगल जान- वो मोहब्बत जो पूरी नहीं हुई
कुछ रिपोर्ट्स मानती हैं कि गालिब को मुगल जान नामक एक गाने वाली से काफी लगाव हो गया था। उस दौरान पुरुषों का नाचने-गाने वाली महिलाओं के पास जाना आम था और गलत नहीं समझा जाता था।
गालिब अपनी शादी से खुश नहीं थे और मुगल जान के पास जाते थे। पर मुगल जान पर जान छिड़कने वाले वो अकेले नहीं थे। उस समय का एक और शायद हातिम अली मेहर भी मुगल जान के लिए पलकें बिछाए हुए था। मुगल जान ने जब ये बात गालिब को बताई तो गालिब को गुस्सा नहीं आया और ना ही वो हातिम को अपना दुश्मन समझने लगे।(कौन था सबसे प्रभावशाली मुगल किन्नर)
गालिब और हातिम के बीच कोई बड़ी दरार बनती उससे पहले ही मुगल जान की मौत हो गई। उस वक्त हातिम और गालिब दोनों ही दुखी थे। गालिब ने एक खत के जरिए हातिम को बताया कि दोनों एक ही तरह का दुख महसूस कर रहे हैं।
'आशिकी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब,
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर होते तक' ... मिर्जा गालिब
गालिब का प्यार मुगल जान के लिए अनोखा था। वो प्यार तो करते थे, लेकिन ये भी जानते थे कि उसे पा नहीं सकते। मुगल जान गालिब के लिए एक कल्पना और पूरा ना हो सकने वाला ख्वाब दोनों थी।
मुगल जान के जाने के बाद गालिब की जिंदगी में एक और महिला के आने की बात कही जाती है, लेकिन rekhta.org के मुताबिक गालिब और उस महिला जिसे तुर्की बताया जाता है उसका प्यार भी ज्यादा नहीं चल पाया। वो एक इज्जतदार घराने से थी और समाज की बंदिशों और बदनामी के डर से उसने अपनी जिंदगी खत्म कर ली थी। इसके बाद गालिब दुखों के सागर में डूब गए थे और 'हाय हाय' नामक गजल लिखी थी।
ये गजल बताती है कि गालिब खुद उस महिला की कितनी इज्जत करते थे।
'दर्द से मेरे है तुझको बेकरारी हाय हाय,
क्या हुई जालिम तेरी गफलत शायरी हाय हाय'
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बच्चों की मौत का दुख रहा जिंदगी भर
गालिब की शादीशुदा जिंदगी की एक कमी उनकी संतानें भी थीं। गालिब की 7 संतानें हुईं, लेकिन उनमें से कोई भी कुछ महीनों से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाईं।
उनकी जिंदगी की ये सारी बातें उन्हें अकेला करती गईं और गालिब की शायरी निखरती गई। तो यूं था मिर्जा गालिब का प्यार जो कभी मुकम्मल नहीं हो पाया। क्या आपको इसके बारे में पता था? अपने जवाब हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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