मुगलों के समय का राजसी ठाठ-बाट महिलाओं को विशेष रूप से अपील करता है। अगर आप मुगल काल की शानो-शौकत का करीब से दीदार करना चाहती हैं तो आपको दिल्ली के इन महलों और हवेलियों में घूमने जरूर जाना चाहिए। इन ऐतिहासिक भवनों की खास बात ये है कि बाहर से बंद और अंदर से खुले हुए हैं। इनमें बड़े-बड़े कमरे, खूबसूरत मेहराब, जालीदार झरोखे और हवेली के बीचोंबीच एक बड़ा चौक देखकर आप आसानी से मुगल कालीन समय की कल्पना कर सकती हैं। इनमें से कुछ भवनों में शादी के मौकों पर बारात के लिए मेजबानी भी दी जाती है।
अगर आपकी इतिहास में रुचि है तो आपको इन भवनों में कम से कम एक बार घूमने जरूर जाना चाहिए। इनकी छतों को विशेष तरीके से बनाया गया है ताकि गर्मियों में इनमें ठंडक बनी रहे। यहां जाने पर आपको तहखाने भी देखने चाहिए, जिनके बारे में कई तरह के किस्से-कहानियां प्रचलित हैं। तो आइए जानते हैं अपने समय में चर्चित रहे इन महलों और हवेलियों के बारे में-
जहाज महल
लोदी काल में बनी इस भवन का नाम 'जहाज महल' पड़ने की पीछे एक दिलचस्प कहानी है। महरौली के ‘हौज-ए-शम्सी’ (पानी के टैंक) के किनारे ही स्थित है जहाज महल। बारिश के दिनों में हौज-ए-शम्सी के पानी में जब यह महल देखा जाता है तो ऐसा लगता है कि जैसे झील में कोई जहाज चल रहा हो। इस महल में बलुआ पत्थर के खंबों पर बने डिजाइन, छत पर अलग-अलग रंगों की टाइल्स और छतरियां देखकर आपको किसी और ही दुनिया में होने का अहसास होगा। यहां पर हर साल प्रसिद्ध ‘फूलवालों की सैर’ उत्सव का आयोजन भी होता है, जिसमें हिंदु और मुस्लिम दोनों ही बड़े श्रद्धाभाव से सम्मलित होते हैं। इस मौके पर यहां ख्वाजा बख्तियार काकी की दरगाह और इसके पास ही स्थित योगमाया मंदिर में फूल चढ़ाए जाते हैं। यह विशेष पर्व 19वीं सदी में शुरु हुआ था, जब मुमताज महल अपनी इच्छा पूरी होने पर यहां की दरगाह में चादर चढ़ाने के लिए आई थीं।
जफर महल
यह इमारत मुगलों के आखिरी महलों में से एक है। ‘जफर महल’ को मुगल शासक अकबर शाह द्वितीय ने 19वीं सदी की शुरुआत में बनवाया था और यह महरौली में बनी सूफी संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह के नज़दीक स्थित है। इसे बनवाए जाने के कुछ समय बाद ही आखिरी मुगल शासक बहादुरशाह जफर ने इसे दोबारा बनवाया था, जिनका नाम भी इस महल के नाम के साथ जुड़ा है। महल के अहाते में संगमरमर की बनी भव्य मोती मस्जिद है और इसमें कई शाही कब्रें भी हैं। इनमें शाह आलम और शाह आलम द्वितीय जैसे मुगल शासकों की कब्र भी शामिल हैं।
जीनत महल
चांदनी चौक की पुरानी गलियों में फतेहपुरी मस्जिद से कुछ ही दूरी पर स्थित है जीनत महल, जिसकी देखरेख पर लंबे वक्त तक ध्यान नहीं दिया गया। इतिहास बताता है कि यह महल को बहादुर शाह जफर ने खास तौर ने अपनी रानी जीनत महल के लिये बनवाया था। इसमें जटिल जालीदार काम आज भी देखा जा सकता है। कहा जाता है कि जब जीनत हुस्न की मलिका थीं और जब वह महल के भीतर दाखिल होती थीं, तब उनका स्वागत शहनाई की धुनों से किया जाता था। बहादुर शाह अपनी पत्नी जीनत से सबसे ज्यादा प्यार करते थे, लेकिन जीनत की मौत के बाद उन्होंने यहां आना छोड़ दिया था। अगर आप भूत-प्रेतों के बारे में सुनकर रोमांचित होती हैं, तो आपको यहां का तहखाना भी देखना चाहिए। अंग्रेजों के समय में इस तहखाने में कई लाशों को दफना दिया गया था, जिसकी वजह से लोग मानते हैं कि यहां रूहों का साया है और रात में सिसकियों की आवाजें सुनाई देती हैं।
इस महल में कई बार निर्माण किया गया इसीलिए इसे देखकर यह स्पष्ट नहीं होता कि यह कहां से शुरू होता है और कहां खत्म। वैसे माना जाता है कि लोहे की छड़ वाले गेट से शुरू होकर यह महल 100 मीटर लंबा और कई सौ मीटर अंदर तक फैला है। अगर आप मेट्रो से आ रही हैं तो लाल किले के लाल कुआं से रिक्शा के जरिए यहां पहुंच सकती हैं।
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चुन्नामल की हवेली
यह चांदनी चौक की सबसे जानी-मानी इमारतों में से एक है, इसे लाला चुन्नामल ने बनवाया था। चुन्नामल ब्रिटिश भारत के पहले म्यूनिसिपल कमिश्नर हुआ करते थे और वह शहर में अपनी गाड़ी और फोन रखने वाले व्यक्ति हुआ करते थे। उस समय में चुन्नामल की तनख्वाह 1 लाख रुपये प्रति महीना हुआ करती थी। शायद यही वजह थी कि उन्होंने 128 कमरों वाली यह आलीशान हवेली बनवाई थी, जिसमें फैंसी कार्पेट, शैंडिलियर्स, पेंटिंग और Cooke & Kelvey की घड़ियां रखी जाती थीं। यह हवेली बाहर से भले ही धूल-मिट्टी और राख से भरी हुई नजर आती है, जो यहां के प्रदूषण और रख-रखाव में कमी की वजह से है, लेकिन भीतर से हवेली की शानो-शौकत देखते ही बनती है।
मिर्जा गालिब की हवेली
चांदनी चौक के बल्लीमारान में गली कासिम जन में स्थित यह हवेली विशेष रूप से चर्चित है क्योंकि यहां कभी भारत के सबसे प्रसिद्ध शायर मिर्जा गालिब रहा करते थे। गालिब शब्दों के जादूगर थे और 19वीं सदी में मुगल सल्तनत का पतन उनकी कविताओं में बखूबी नजर आता है। मिर्जा गालिब को सांसारिक सुखों की चाहत नहीं थी और इसीलिए उनके शब्दों में गजब की कशिश है, जो हर इंसान के दिल को छू लेती है। हवेली में नजर आने वाली चीजों से मिर्जा गालिब की जीवनशैली और उनकी शख्सीयत के बारे में काफी कुछ जानने को मिलता है। इसमें बीच में एक खुला चौक है, जिसके चारों तरफ कमरे बने हुए हैं और सभी कमरों के दरवाजे चौक में खुलते हैं। 1990 तक यह इमारत काफी खराब हालत में थी। लेकिन, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की सक्रियता के बाद इसके रेनोवेशन का काम तेजी से हुआ, जिससे इसकी शान को फिर से स्थापित कर दिया गया। गालिब की इस हवेली में आप कभी भी घूमने जा सकती हैं।
तो सोच क्या रहीं हैं, फटाफट इन इमारतों को घूमने के लिए प्लान कर लीजिए। इन जगहों पर घूमते हुए आपको ना सिर्फ मुगल काल की जीवनशैली की बहुत सारी चीजें स्पष्ट होंगी, बल्कि आप देश के समृद्ध इतिहास के बारे में जानकर गौरवान्वित भी महसूस करेंगी।
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