कहते हैं कि समाज की वास्तविक वास्तुकार महिलाएं ही हैं। ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने अपनी सूझ-बूझ व क्षमता के आधार पर समाज को एक नया स्वरूप दिया है। इन्हीं में से एक महिला थीं जस्टिस लीला सेठ। एक ऐसी महिला जिन्हें दिल्ली हाई कोर्ट की पहली महिला जज होने का गौरव प्राप्त है। उन्हांने अपने कार्यकाल में कई ऐसे फैसले लिए, जिसने देश व समाज को एक नई दिशा दी। उन्होंने निर्भया बलात्कार के मामले के बाद बलात्कार विरोधी कानून को सख्त बनाने में अपनी अहम् भूमिका दर्ज कराई थी।
इतना ही नहीं, वह 1997 से 2000 तक भारत के 15वें विधि आयोग की सदस्य थीं और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के लिए जिम्मेदार थीं। यह उनके फैसलों का ही प्रभाव था, जिसने संयुक्त परिवार की संपत्ति में बेटियों को समान अधिकार दिया था। तो चलिए आज इस लेख में हम दिल्ली हाई कोर्ट की पहली महिला जज लीला सेठ के जीवन के बारे में करीब से बता रहे हैं-
जस्टिस लीला सेठ का प्रारंभिक जीवन
लीला सेठ का जन्म 20 अक्टूबर 1930 को लखनऊ में हुआ था, जो अपने परिवार में दो बेटों के बाद पहली बेटी थीं। उनके पिता ने इंपीरियल रेलवे सेवा में काम किया था और जब वह मात्र 11 वर्ष की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। पिता की मृत्यु के बाद, परिवार आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहा था, लेकिन फिर भी लीला की मां ने उन्हें शिक्षा दिलवाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। शादी के बाद उन्होने कानून की पढ़ाई शुरू की। 1958 में, लीला सेठ ने लंदन बार परीक्षा लिखी और 27 साल की उम्र में इसमें टॉप किया। ऐसा करने वाली वह पहली महिला बनीं।
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जस्टिस लीला सेठ का पारिवारिक जीवन
जस्टिस लीला सेठ ने महज 20 साल की उम्र में शादी की थी। उनके एक साथ तीन बच्चे थे - विक्रम सेठ, शांतम सेठ और आराधना सेठ। विक्रम सेठ एक प्रशंसित कवि और लेखक बन गए, जबकि शांतम सेठ एक बौद्ध शिक्षक हैं। वहीं, आराधना एक फिल्म निर्माता हैं। जस्टिस लीला सेठ की मृत्यु 86 वर्ष की आयु में 5 मई 2017 की रात नोएडा में उनके आवास पर कार्डियो-रेस्पिरेटरी अटैक से पीड़ित होने के कारण हो गई। मृत्यु के बाद उनकी इच्छा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया क्योंकि उन्होंने अपनी आंखें व शरीर के अन्य अंग ट्रांसप्लांट और मेडिकल रिसर्च के लिए दान कर दिए थे।(जाने CPR तकनीक के बारे में)
जस्टिस लीला सेठ की उपलब्धियां
- लीला सेठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय में पहली महिला न्यायाधीश के रूप में कार्य किया।
- वह 5 अगस्त 1991 को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस बनने वाली पहली महिला बनीं।
- वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीनियर काउंसिल के रूप में नामित होने वाली पहली महिला भी थीं।
- वह भारत के 15वें विधि आयोग की सदस्य भी थीं, जिसने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं।
जस्टिस लीला से द्वारा लिए गए महत्वपूर्ण फैसले
अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस लीला सेठ ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए, जिसे समाज की दशा और दिशा दोनों ही बदलकर रख दी। वह पूर्व सीजेआई जेएस वर्मा के साथ एक समिति का हिस्सा थीं, जिसका गठन निर्भया मामले के बाद बलात्कार विरोधी कानून बनाने के लिए किया गया था। वह 1997 से 2000 तक भारत के 15वें विधि आयोग की सदस्य थीं, और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के लिए जिम्मेदार थीं, जिसने संयुक्त परिवार की संपत्ति में बेटियों को समान अधिकार दिया था।
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भले ही जस्टिस लीला सेठ आज हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा लिए गए निर्णय यकीनन हमेशा याद रखे जाएंगे। वह अपने द्वारा लिए गए फैसलों के कारण हर भारतवासी के दिल में हमेशा ही जिंदा रहेंगी। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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