10 महीने पहले की बात हैं, जब मुंबई हाईकोर्ट ने एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को गर्भावस्था के 24वें हफ्ते में गर्भपात कराने की इजाजत दी थी। उस समय नियमानुसार केवल 20वें सप्ताह तक ही गर्भपात कराया जा सकता था और विशेष स्थिति में 20वें सप्ताह के बाद गर्भपात कराने के लिए पीड़िता को कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पड़ते थे।
इस केस में भी यही हुआ था। पीड़िता की उम्र मात्र 16 वर्ष थी और वह दसवीं कक्षा में पढ़ाई कर रही थी। उस वक्त कोर्ट ने इस आधार पर पीड़िता को 24वें हफ्ते में गर्भपात कराने की इजाजत दी थी ताकि उसका भविष्य खराब न हो और उसे किसी भी तरह की मानसिक और शारीरिक पीड़ा का सामना न करना पड़े।
इस केस के बाद से ही एमटीपी एक्ट में संशोधन की बातें चल रही थीं। जाहिर है, छोटी उम्र में या किन्हीं गलत कारणों से गर्भवती होने वाली महिलाओं के लिए यह एक बड़ी समस्या थी कि वह 20 वें सप्ताह के बाद अनचाहे गर्भ को अबॉर्ट नहीं करवा पाती थीं या फिर उन्हें इसके लिए अदालत की चौखट तक जाना पड़ता था। लेकिन 16 मार्च 2021 को राज्यसभा में एक नया बिल पास कर दिया गया। यह बिल था मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी बिल 2020। लोकसभा में इस बिल को पहले ही पास कर दिया गया था। अब इसे केंद्र सरकार की भी मंजूरी मिल गई है और अब यहएमटीपी एक्ट 2021 बन चुका है। नए एक्ट में अबॉर्शन की टाइम लिमिट को बढ़ा दिया गया है।
इस बिल के पास होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सीनियर लॉयर कमलेश जैन कहती हैं, 'दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए सरकार ने इसएक्टको पास करके एक अच्छा कदम उठाया है। इससे उनका भविष्य खराब होने से बच जाएगा और उन्हें एक अनचाही जिम्मेदारी का भोज उठाने से राहत मिल जाएगी।'
इसे जरूर पढ़े: टीनएजर्स के लिए क्यों जरूरी है खुद को पहचानना और अपोजिट सेक्स से अच्छा बर्ताव?
क्या है नए एक्ट के नियम
कमलेश जैन बताती हैं, ' यह एक्टआम महिलाओं के लिए नहीं है और न ही गर्भावस्था के सामान्य केस में इसे लागू किया जाएगा। यह केवल उन पीड़िताओं के लिए है, जो मां नहीं बनना चाहती हैं, मगर गर्भवती हो गई हैं। '
- नए एमटीपी एक्ट2021 में और भी कुछ खास बातों को हाइलाइट किया गया है -
- इस एक्टके तहत केवल स्पेशल कैटेगरी में आने वाली महिलाओं को ही कानूनी रूप से गर्भावस्था के 24वें सप्ताह में गर्भपात(गर्भपात की ओर इशारा करते हैं ये लक्षण) कराने की इजाजत दी जाएगी।
- पहले यह समय सीमा केवल 20 हफ्ते तक थी। इस दौरान 12 हफ्तों तक एक डॉक्टर की राय ली जाती थी और इसके बाद 2 डॉक्टरों की राय पर अबॉशर्न होता था।
- अब 20 हफ्तों तक केवल 1 डॉक्टर की राय की जरूरत होगी और उसके बाद से लेकर 24 वें सप्ताह तक 2 डॉक्टरों की राय की जरूरत होगी।

- यह एक्टजिन स्पेशल महिलाओं के लिए पास किया गया है, इसमें केवल रेप विक्टिम्स, परिवार में ही किसी करीबी द्वारा दुष्कर्म किए जाने से गर्भवती होने पर, महिला के विकलांग होने पर या उसे कोई गंभीर बीमारी होने की स्थिति में ही इस बिल के तहत अबॉर्शन किया जाएगा।
- साथ ही इस एक्टमें यह बात भी स्पष्ट कही गई है कि अबॉशर्न से मां की जान को कोई खतरा नहीं होगा तब ही डॉक्टर्स आगे कदम उठाएंगे।
- नए एक्ट में यह भी लिखा है कि जो भी महिला अबॉर्शन(अबॉर्शन के कानूनी प्रावधान ) कराएगी उससे जुड़ी जानकारी किसी को नहीं दी जाएगी और यदि कोई उस महिला की प्राइवेसी को भंग करने की कोशिश करेगा तो उसे 1 साल की कैद की सजा हो जाएगी।
आपको बता दें कि एमटीपी एक्ट वर्ष 1971 में बनाया गया था और केवल जम्मू कश्मीर को छोड़ कर पूरे देश में लागू किया गया था।
गर्भपात के बाद किन लोगों को डिप्रेशन ज्यादा होता है?
डॉक्टर रुकशेदा सैयदा (एमबीबीएस, डीपीएम, साइकिएट्रिस्ट) की एक्सपर्ट सलाह के अनुसार-
- वो महिलाएं जिन्हें नकारात्मक सोच और मानसिक तनाव ज्यादा हो सकता है उनमें शामिल हैं-
- भावनात्मक या मानसिक चिंताएं रखने वाली महिलाओं को।
- महिलाएं जिन्हें गर्भपात के लिए मजबूर किया गया हो।
- वो महिलाएं जो धार्मिक मान्यताओं के आधार पर गर्भपात को गलत मानती हैं।
- वो महिलाएं जो गर्भपात के विरुद्ध हों।
- वो महिलाएं जिन्हें जिनेटिक कमियां या फिर मानसिक बीमारियां होती हैं।
- वो महिलाएं जिन्हें डिप्रेशन और एंग्जाइटी की समस्या हो।
- वो महिलाएं जिन्हें पार्टनर का साथ नहीं मिलता है।
आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इसे शेयर और लाइक जरूर करें साथ ही इसी तरह के और भी आर्टिकल्स पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
Recommended Video
Image Credit: Freepik
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों