आपने भारत की कई जेलों और वहां कैदियों के साथ किए जाने वाले बर्ताव के बारे में जरूर सुना होगा? भारत का सबसे खूबसूरत हिस्सा अंडमान एक समय पहले कुछ लोगों के जीवन का काला समय था। यह जगह अपनी सुंदरता के अलावा कई ऐतिहासिक चीजों का गवाह बन चुका है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां सेल्युलर जेल मौजूद है, जहां काला पानी की सजा दी जाती थी।
यह बात हम सभी जानते हैं कि भारत अंग्रेजों का गुलाम रहा है। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों पर इतने जुल्म ढाए थे, जिसके बारे में सुन आज भी लोगों की रूह कांप जाती है। आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों को फांसी दी गई। केवल इतना ही नहीं, सेनानियों को तोपों के हवाले कर दिया जाता था। यह वह दौर था जब अंग्रेजों के पास ‘सेल्युलर जेल’ थी। यह जेल कोई आम जेल नहीं थी।
यह जेल अंडमान के पोर्ट ब्लेयर में स्थित है। इस जेल को बनाने में करीब 10 साल लग गए थे। इस जेल की 7 ब्रांच थीं, जिसके बीच में एक टावर बना हुआ था। यह टावर इसलिए बनाया गया था ताकि कैदियों पर आसानी से नजर रखी जा सके। संभावित खतरे को भांपने के लिए इस टावर के ऊपर एक घंटा भी था।
इस जेल में हर कैदी के लिए अलग सेल बनाया गया था। यानी कैदी एक-दूसरे को देख नहीं पाते थे। ऐसे में अकेलापन कैदियों को बेहद सताता था। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि इस जेल में कितने लोगों को मारा
गया है और फांसी दी गई है, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। यही कारण है कि आज भी लोग कालापानी शब्द सुनकर कांप उठते हैं। (ये सेलेब्स खा चुके हैं जेल की हवा)
जहां यह सेल्युलर जेल बनाई गई थी, उसके चारों ओर केवल पानी ही पानी था। जहां तक नजर जाएगी, केवल समुद्र ही दिखेगा। इस जेल में कमरों के बजाय कोठरियां बनाई गई थीं। जो 15×8 फीट चौड़ी और 3 मीटर ऊंची थी।
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इस जेल में कैदियों को बेड़ियों से बांधा जाता था। कोल्हू से तेल पिरवाया जाता था। हर कैदी को कम से कम 30 पाउंड तेल निकालना होता था। अगर कैदी यह काम करने में असर्मथ हो जाते थे तो उन्हें मारा जाता था।
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यह बात साल 1930 की है जब इस जेल के एक कैदी महावीर सिंह ने इन अत्याचारों के खिलाफ लड़ने की सोची। उन्होंने भूख हड़ताल का सहारा लिया, लेकिन जेल में काम करने वाले कर्मचारियों ने उन्हें जबरदस्ती दूध पिला दिया, जिसके कारण उनकी मौत हो गई थी।
महावीर सिंह के शव को पत्थर से बांधकर समुद्र में फेंका गया था। यह भयावह मंजर के बारे में जानने के बाद जेल के बचे हुए कैदियों ने भी भूख हड़ताल करने का फैसला लिया। इसके बाद ही देश के पिता महात्मा गांधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस मामले में बात की।
आज इस जगह परगोविन्द वल्लभ पंत के नाम से अस्पताल मौजूद है। इस हॉस्पिटल को 1963 में स्थापित किया गया था।
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