करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। करवा चौथ का व्रत कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को रखा जाता है। मान्यता के अनुसार भगवान शंकर जी ने माता पार्वती को करवा चौथ के व्रत का महत्व बताया था। आपको बता दें कि महाभारत में भी द्रौपदी ने अर्जुन के लिए व्रत रखा था।
इस बार करवा चौथ व्रत 13 अक्टूबर को मनाया जाएगा। करवा चौथ की पूजा विधी विधान से करी जाती है। इस पूजा में करवा का बहुत महत्व माना जाता है। आपको बता दें कि इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है। करवा में कई चीजें भरी जाती हैं। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि करवा चौथ में करवे में क्या भरा जाता है।
क्या होता है करवा चौथ व्रत का नियम?
करवा चौथ वाले दिन सूर्योदय के साथ ही इस व्रत की शुरुआत हो जाती है और चांद को देखने के बाद यह व्रत सही तरह से पूर्ण होता है। आपको बता दें कि करवा चौथ पर महिलाएं सुबह से निर्जला व्रत रखती हैं और चांद के दर्शन के बाद ही पूजा करके अपने व्रत को खोलती हैं। इस दिन व्रत को करने वाली महिलाओं को सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करना चाहिए।
इसके साथ ही शुद्ध मन के साथ करवा चौथ व्रत का संकल्प लेकर व्रत की शुरुआत करनी होती है।
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क्या होता है करवा?
करवा चौथ में इस्तेमाल किया जाने वाला करवा बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मिट्टी का बना हुआ होता है और साथ ही देश के अलग-अलग जगह पर इसकी बनावट अलग तरह से बनी हुई भी होती है। आपको बता दें कि मिट्टी को पंच तत्व का प्रतीक माना जाता है।
इसके साथ ही करवे को देवी का प्रतीक चिन्ह समझकर पूजा की जाती है। जिनके पास मिट्टी का बना हुआ करवा नहीं होता है वो लोग तांबे या स्टील के लोटे को करवे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। पूजा के दौरान दो करवे बनाएं जाते हैं। इसमें एक देवी मां का माना जाता है और दूसरा सुहागिन महिला का जो यह व्रत रखती है।
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पूजा में कैसे होता है प्रयोग?
आपको बता दें कि पूजा करते समय और करवा चौथ व्रत कथा सुनते समय दो करवा पूजा के स्थान पर रखने होते हैं। एक वो जिससे महिलाएं अर्घ्य देती हैं यानी जिसे उस महिला की सास ने दिया होता है और दूसरा करवा वो होता है जिसे करवा बदलने वाली प्रक्रिया करते वक्त महिला अपनी सास को करवा देती हैं। करना को सबसे पहले अच्छे से साफ करा जाता है फिर करवा में रक्षा सूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के मिश्रण से एक स्वस्तिक भी बनाया जाता है।
करवा में क्या भरा जाता है?
करवा रखने पहले जमीन पर पीला रंग मिलाकर मिट्टी से गौरी जी को बनाया जाता हैं। साथ ही उनकी गोद में गणेश जी बनाकर बिठाएं जाते हैं। गौरी जी पर चुनरी, बिंदी आदि सुहाग सामग्री से उनका श्रृंगार करना होता है।
आपको बता दें कि कुछ लोग करवा में गेहूं भरते हैं और उसके ढक्कन में शक्कर को भरते हैं।
इसके बाद करवा पर 13 रोली की बिंदी को रखकर हाथ में गेहूं या चावल के दाने लेकर करवा चौथ की कथा को सुना जाता है। आपको बता दें कि कथा को सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर महिलाएं अपनी सास के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं फिर उन्हें करवा देती हैं।
देश की कुछ जगहों पर एक करवा में जल तथा दूसरे करवा में दूध को भी भरा जाता है और फिर उसमें तांबे या चांदी का सिक्का डालते हैं। इसके बाद गौरी-गणेश की पूजा करी हैं। फिर महिलाएं अपने पति की दीर्घायु की कामना चांद को अर्घ देने के बाद करती हैं। इस व्रत का समापन करते वक्त करवा से जलपान करके महिलाएं व्रत तोड़ती है।
इस तरह से विवाहित महिलाएं अपने करवा चौथ व्रत को करती हैं।
तो यह थी गणेश पूजा से जुड़ी हुई जानकारी।
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