करवा चौथ 2021: जानें करवा चौथ का त्योहार क्यों मनाया जाता है

आइए जानें करवा चौथ का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इससे जुड़ा इतिहास क्या है। 

 

karwa chauth celebration

करवा चौथ मुख्य रूप से सुहागिन स्त्रियों का त्योहार है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी सुहागिन स्त्री अपने पति के लिए व्रत उपवास करती है उसके पति को दीर्घायु के साथ आपसी सामंजस्य भी बनता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है और चन्द्रमा को अर्ध्य दिया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि करवाचौथ का व्रत रखने का चलन कब शुरू हुआ और करवा चौथ व्रत का इतिहास क्या है। आइए नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी से जानें कि करवा चौथ क्यों मनाया जाता है और इसका इतिहास क्या है।

कब शुरू हुई करवा चौथ व्रत की परंपरा

karva chauth

कई प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी। ऐसे में देवता ब्रह्मदेव के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे ह्रदय से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया। ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में सभी देवताओं की जीत हुई। इस विजय के बाद सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था और तभी से चांद के पूजन के साथ करवा चौथ व्रत का आरंभ हुआ।

महाभारत काल से जुड़ा है इतिहास

कहा जाता है कि महाभारत काल में द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा था। द्रौपदी द्वारा भी करवाचौथ का व्रत रखने की कहानी प्रचलित है। कहते हैं कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या लिए गए हुए थे तो बाकी चारों पांडवों को पीछे से अनेक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण (भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े कुछ सवाल )से मिलकर अपना दुख बताया और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा के लिए कोई उपाय पूछा। श्रीकृष्ण भगवान ने द्रोपदी को करवाचौथ व्रत रखने की सलाह दी थी, जिसे करने से अर्जुन भी सकुशल लौट आए और बाकी पांडवों के सम्मान की भी रक्षा हो सकी थी। तभी से इस व्रत को करने का चलन शुरू हुआ।

क्यों रखा जाता है करवा चौथ का व्रत

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करवा चौथ को निर्जला व्रत के रूप में भी जाना जाता है, करवा चौथ एक दिवसीय त्योहार है जहां विवाहित हिंदू महिलाएं अपने पति के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए उपवास रखती हैं। वे सूर्योदय के समय या एक रात्रि पहले से ही अपना उपवास शुरू कर देती हैं, जो पूरे दिन चंद्रोदय तक जारी रहता है। इस व्रत के दौरान महिलाएं कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं और भगवान शिव की पूजा करती हैं। महिलाएं चंद्रमा को देखने के बाद अपना उपवास तोड़ती हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं और उन्हें किसी भी कठिनाइयों से बचाने के लिए प्रार्थना करती हैं। यह भी माना जाता है कि यह त्योहार उनके वैवाहिक जीवन में शांति, खुशी और आनंद लाता है।

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क्या है इसकी कथा

एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं भोजन करूंगी। चूंकि भाइयों प्यारी थी इसलिए उन्होंने अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम चांद को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं। इस प्रकार उनकी बहन का व्रत टूट गया और उसके पति को बीमारी ने घेर लिया। साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया। इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर भगवान गणेश जीउस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। तभी से करवा चौथ व्रत का चलन शुरू हुआ।

इस प्रकार करवा चौथ का इतिहास बहुत पुराना है और इससे जुडी कई कथाएं प्रचलित हैं जिसमें पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखना मुख्य है।

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Image Credit: freepik and unsplash

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