कार्तिक का महीना इस वर्ष 9 अक्टूबर से प्रारंभ हो चुका है। अब यह महीना कार्तिक पूर्णिमा तक रहेगा। इस महीने के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के दामोदर स्वरूप की पूजा की जाती है। आपको बता दें कि दाम रस्सी को कहा जाता है दर पेट को कहा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण अपने बालपन में शैतानी कर रहे थे तो उनकी मां यशोदा ने गुस्से में आकर उनके पेट पर रस्सी बांधी और ऊखल से रस्सी को कस दिया था। इसलिए श्रीकृष्ण का नाम दामोदर पड़ गया।
कार्तिक के महीने में भगवान श्रीकृष्ण की इस लीला के कारण इस माह में उनके दामोदर स्वरूप की पूजा होती है। आपके घर में यदि श्रीकृष्ण का दामोदर स्वरूप नहीं है तो आप घर में विराजमान लड्डू गोपाल की पूजा भी कर सकती हैं।
कार्तिक के महीने में लड्डू गोपाल की पूजा के कुछ नियम होते हैं, जो हमें पंडित विनोद सोनी जी बता रहे हैं। पंडित जी कहते हैं, 'सबसे पहली बात जो आपको लड्डू गोपाल की पूजा के वक्त ध्यान में रखनी चाहिए वह यह है कि आपको लड्डू गोपाल को सुबह उठाने और रात में सुलाने का समय इस महीने में बदल देना चाहिए। '
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आम दिनों में लड्डू गोपाल को ब्रह्म मुहूर्त में ही उठा दिया जाता है। हालांकि, भगवान का यह बाल स्वरूप है और यदि आप चाहें तो सूर्योदय के बाद भी लड्डू गोपाल को जगा सकती हैं। कार्तिक के महीने से सर्दियों का मौसम शुरू हो जाता है, इसलिए आपको इस मौसम में लड्डू गोपाल ( लड्डू गोपाल के पंचामृत स्नान का महत्व) को देर से ही जगाना चाहिए। ऐसे में देर से ही लड्डू गोपाल की आरती भी की जाती है।
लड्डू गोपाल को सर्दियों के मौसम में जल्दी ही सुला देना चाहिए। आपको रात की आरती 8 से 9 बजे के बीच कर लेनी चाहिए। दरअसल, सर्दियों के वक्त जैसे आप जल्दी घर में आ जाते हैं और विश्राम करते हैं। ठीक उसी प्रकार से लड्डू गोपाल को भी जल्दी विश्राम करने देना चाहिए।
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शाम की आरती आपको 5 बजें और रात की आरती आपको 8 बजे ही कर लेनी चाहिए। प्रसाद के तौर पर आप शाम और रात की आरती में गुड़ और बाजरे की रोटी या फिर गरम दूध, सरसों का साग और मक्के की रोटी का भोग लगा सकती हैं।
देखा जाए तो कार्तिक के महीने में केवल लड्डू गोपाल की आरती का समय और प्रसाद में चढ़ने वाली सामग्री ही बदलती है। आप इस विधि से केवल कार्तिक के महीने में ही नहीं बल्कि पूरे सर्दियों के मौसम लड्डू गोपाल की पूजा कर सकती हैं।
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