आज 1 जुलाई 2024 को हमारे देश में तीन नए क्रिमिनल लॉ लागू किए गए हैं। ब्रिटिश राज से ही जो हमारे देश में कानून लागू किए गए थे उन्हें बदलकर अब नए कानून बनाए गए हैं। इसमें महिलाओं के लिए भी बहुत कुछ है और अब देश भर में नए कानूनों के हिसाब से ही एफआईआर भी दर्ज की जा रही हैं। दिसंबर 2023 में ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इन तीनों लॉ को मंजूरी दी थी।
अब पहले तो आप 420 आंकड़े को ही धोखेबाजी से जोड़कर देखते थे, अब यह धारा भी बदलकर 318 हो गई है। भारतीय संविधान में बहुत कुछ बदला है। ये तीनों लॉ भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) नए भारत की पहचान बन सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अब कहीं से भी जीरो-एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है।
इन तीनों कानूनों के बारे में जानकारी लेने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट जूही अरोड़ा से बात की। जूही सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में प्रैक्टिस के साथ अपनी लॉ फर्म भी चलाती हैं। उन्होंने हमें तीनों क्रिमिनल लॉ के बारे में विस्तार से बताया।
एडवोकेट जूही के मुताबिक, यह एक बहुत अच्छी पहल है जिससे पुराने कानूनों को बदला गया है जो देश की न्याय प्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करेंगे। अब न्याय सही ढंग से सही समय पर मिल सकेगा।
भारतीय न्याय संहिता (BNS)
अभी तक हम इंडियन पीनल कोड 1860 (IPC) का उपयोग कर रहे थे अब भारतीय न्याय संहिता (BNS 2023) का उपयोग होगा। IPC में जहां 511 सेक्शन थे अब BNS में 358 सेक्शन ही हैं, लेकिन 31 नए अपराध इसमें एड किए गए हैं और IPC के पुराने 19 प्रावधान अब हटाए गए हैं। BNS में ये महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं-
- 33 गंभीर अपराधों में मैक्सिमम जेल सेंटेंस बढ़ाई गई है
- 83 अपराधों में फाइन की राशि बढ़ाई गई है जो अभी तक काफी कम थी
- 23 अपराधों में कम से कम सजा लागू करना भी जरूरी कर दिया गया है क्योंकि IPC के कुछ अपराधों में सजा भी नहीं मिलती थी
- कम्युनिटी सर्विस को बाल अपराधियों के लिए सजा का एक प्रावधान बनाया गया है
- आतंकवाद को लेकर नई परिभाषा लिखी गई है और कानून बनाया गया है
- मॉब लिंचिंग को भी अब अपराध बनाया गया है
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मैरिटल रेप के खिलाफ आया कानून और महिलाओं के लिए नई पहल
पहले IPC की धारा 375 में रेप का जिक्र किया गया था अब BNS में यह धारा 63 में है और एक्सेप्शन 2 के तौर पर मैरिटल रेप को भी जोड़ा गया है।
इसमें बस एक बदलाव है कि पहले जहां 15 साल की नाबालिग पत्नी भी संबंध बनाने के लिए मंजूरी दे सकती थी अब उस उम्र को बढ़ाकर 18 साल कर दिया गया है। रेप को लेकर इन नियमों में बदलाव हुआ है-
- शादी का वादा करके रिलेशन बनाना अपराध और सेक्शन 69 के तहत 10 साल तक की सजा का प्रावधान
- इस एक्ट में ट्रांसजेंडर्स का जिक्र तो है, लेकिन उनके लिए कुछ स्थापित नियम नहीं बनाए गए हैं।
गैंगरेप और नाबालिग से अपराध के मामले में कड़ी सजा
कुछ समय पहले यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम- POCSO एक्ट लागू किया गया था और नाबालिग से रेप के मामले में कैपिटल पनिशमेंट की सजा का प्रावधान बनाया गया था। अब यह आधिकारिक कानून बन चुका है। नाबालिग से रेप के मामले में कैपिटल पनिशमेंट दिया जा सकता है। गैंगरेप के मामले में 20 साल तक की सजा हो सकती है। सेक्शन 95 के तहत सेक्शुअल अपराधों में 10 साल तक की सजा हो सकती है।
सेक्शन 70(2) के तहत अगर 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ गैंगरेप होता है, तो अपराधियों को मौत की सजा होगी और अगर 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ कुछ ऐसा किया जाता है जिससे उसकी मौत हो जाए या फिर उसके साथ इतना गंभीर अपराध हो कि मानवता भी शर्मसार हो, तो ऐसे मामले में एक अपराधी है फिर भी कैपिटल पनिशमेंट दिया जा सकता है। रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केस में अब तक कैपिटल पनिशमेंट दिया जाता था।
मॉब लिंचिंग के तहत बनाए कानून
पिछले कई सालों में हुई घटनाओं के बाद अब मॉब लिंचिंग को अहम कानून बनाया गया है। किसी को भी दोषी पाए जाने पर उम्र कैद, सजाए मौत या फाइन लगाया जा सकता है।
एक्सीडेंट के तहत कानून
भारत में कई एक्सीडेंट्स होते हैं और हिट एंड रन केस का ताजा मामला तो पुणे में हमने देख ही लिया है। अब ऐसे मामलों में 10 साल तक की सजा का प्रावधान बना दिया गया है और गैर इरादतन हत्या के मामले में भी 5 साल तक की सजा हो सकती है। अगर किसी डॉक्टर या किसी व्यक्ति की लापरवाही से किसी व्यक्ति की मौत होती है, तो 'डेथ बाय नेग्लिजेंस' का केस बनेगा और यहां भी दो साल तक की सजा और फाइन लगाया जा सकता है।
राजद्रोह को किया गया निरस्त
यह अपने आप में एक बहुत अहम मुद्दा है कि सेडेशन (Sedition) का कानून जो इंडियन पीनल कोड (भारतीय दंड संहिता) में 124ए के तौर पर 1870 में जेम्स स्टीफन द्वारा जोड़ा गया था उसे अब 2024 में निरस्त किया गया है। मैं आपको बता दूं कि सेडेशन के कानून के तहत भी भाजपा पर आरोप लगते रहे हैं कि इस कानून का इस्तेमाल गलत हो रहा है। अब यह कानून ही हटा दिया गया है।
इस कानून का सीधा सा काम था कि जो भी सरकार या सुप्रीम पावर के खिलाफ बोले उसे जेल में डाल दो। कानूनी परिभाषा में कहें तो, "जो व्यक्ति शब्दों, मौखिक, लिखित, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व (सिनेमा, नाटक आदि), या किसी भी अन्य तरीके से स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमानना करता है या ऐसा प्रयास भी करता है, तो उसे उकसाने या भड़काने के मामले में आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा। इसमें सजा कम या ज्यादा हो सकती है और जुर्माना भी जोड़ा जा सकता है।"
आपको बता दूं कि यह कानून अब तक इस्तेमाल होता रहा है जैसे रिपोर्ट्स के अनुसार, 2021 में तीन कश्मीरी मुस्लिम लड़कियों को इस कानून के तहत 6 महीने के लिए जेल में डाल दिया था क्योंकि उन्होंने इंडिया-पाक मैच में पाकिस्तान को सपोर्ट किया था।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) में राजद्रोह जैसे अपराध की परिभाषा
भले ही अंग्रेजों द्वारा बनाया कानून निरस्त कर दिया गया है, लेकिन भारत को राजद्रोह जैसे मामलों से बचाने के लिए एक नया नियम लागू किया है। यह सेक्शन 152 BNS के अंतर्गत आता है। अब सरकार के खिलाफ कुछ भी नेगेटिव कहना और सरकार को लीगली कोई नियम बदलने या सरकार बदलने के लिए प्रेरित करना गलत नहीं होगा। हां, अभी भी अगर गैरकानूनी तरीकों से ऐसा किया जाएगा तो वह राजद्रोह ही होगा और ऐसे मामलों को नए BNS कानून के तहत सजा मिलेगी।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
अब कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर 1973 को बदलकर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) को लागू किया गया है। इस कानून के तहत ऑडियो-वीडियो और इलेक्ट्रॉनिक अपराधों को नई परिभाषा दी गई है। पहले जहां बेल, बेल बॉन्ड, इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन के तहत कुछ टर्म्स परिभाषित नहीं थीं उन्हें अब किया गया है।
इसके तहत भी मजिस्ट्रेट कम्युनिटी सर्विस दे सकता है और कोर्ट द्वारा अपराधी पर नजर भी रखी जा सकती है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के कई नियम रोजमर्रा की जिंदगी पर लागू होते हैं।
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भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)
इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 को रिप्लेस कर अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम या BSA को लागू किया गया है। पुराने एक्ट में ब्रिटिश सरकार से जुड़े शब्द जैसे - प्रोविंशियल एक्ट, पार्लियामेंट ऑफ यूनाइटेड किंगडम, लंडन गजेट, किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड, कॉमनवेल्थ, हर मेजेस्टी आदि को हटा दिया गया है।
अब आधिकारिक तरीके से दस्तावेजों, तस्वीरों के अलावा, इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस जैसे डिजिटल रिकॉर्ड्स, ईमेल, सर्वर लॉग, डॉक्युमेंट्स, लैपटॉप या स्मार्टफोन, मैसेज, वेबसाइट, क्लाउड, लोकेशनल एविडेंस, वॉइस मेल आदि बहुत कुछ साक्ष्य या एविडेंस के तौर पर जोड़ा गया है।
जिन तीनों कानूनों को लागू किया गया है उनमें अब विक्टिम सेंट्रिक अप्रोच दिया गया है। अब कानून पहले से ज्यादा बेहतर हो गए हैं। पुलिस कस्टडी को भी बढ़ाया गया है जिसमें 15 दिनों से बढ़ाकर 90 दिनों तक पुलिस रिमांड रखी जा सकती है। अब अपराधी के मौजूद ना होने पर भी कोर्ट में केस लड़ा जा सकता है, लेकिन यह कुछ स्थापित नियमों के तहत ही होगा।
ये कानून तो बहुत विस्तार में बनाए गए हैं, लेकिन अभी भी मौजूदा समय में कई ऐसे कानून हैं जिनमें बदलाव की जरूरत है। उदाहरण के तौर पर जेंडर को लेकर लड़ाई लड़ रहे कई लोग अब भी न्याय मिलने का इंतजार कर रहे हैं। अपराधी अभी भी खुले आम घूम रहे हैं और एक कोर्ट केस अभी भी सालों का समय लगा सकता है। फास्ट ट्रैक कोर्ट्स में भी बहुत सारे केस अब तक चल रहे हैं।
यह नई पहल एक नई उम्मीद लेकर आई है जिससे बहुत कुछ बदल सकता है। आपकी इस मामले में क्या राय है? हमें आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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