रेप तो रेप है, भले ही पति ने किया हो... गुजरात हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप पर कही यह बात सबको सुननी चाहिए!

रेप...यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दा है जिस पर किसी भी तरह की टिप्पणी करना इंसानियत का अभाव दर्शाता है। ऐसे में मैरिटेल रेप को अक्सर दीवारों के पीछे छिपा दिया जाता है। पति ने ऐसा किया, तो वो रेप थोड़ी न है? महिला भी खुद को यही समझाती है। अब गुजरात हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप पर जो बात कही है, वो आपको जरूर सुननी चाहिए।

 
gujarat high court emphasized on need to break silence over gender violence

"रेप तो रेप है, भले ही पति ने किया हो..." यह कहकर गुजरात हाई कोर्ट ने देश की महिलाओं के भीतर कहीं न कहीं उस उम्मीद को जगाया है, जिसकी लॉ बुझने की कगार पर थी।

एक मामले की सुनवाई के दौरान गुजरात हाई कोर्ट के जस्टिस दिव्येश जोशी ने मैरिटल रेप के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि पीड़िता के पति द्वारा किया गया रेप भी रेप है और कई देशों ने इस तरह के कृत्य को अपराध घोषित कर दिया है।

उन्होंने आगे यह भी कहा कि भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पर इस चुप्पी को तोड़ने की बहुत ज्यादा जरूरत है। हमारा डेटा जो बताता है, उस आंकड़े से कहीं ज्यादा भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं होती हैं।

जस्टिस दिव्येश जोशी ने 8 दिसंबर को यह सुनवाई की थी जिसमें कहा गया कि किसी महिला के साथ यौन उत्पीड़न या बलात्कार करने वाला पुरुष आईपीसी की धारा 376 के तहत सजा का हकदार है।

क्या था मामला?

दरअसल, एक महिला ने कोर्ट में अपनी बहू के साथ क्रूरता करने और उसे आपराधिक धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद जमानत याचिक दायर की थी। आरोप था कि महिला के बेटे ने बहू के साथ बलात्कार किया और फिर उसके वीडियोज बनाकर अपने पिता को दिखाए। ऐसा उन लोगों ने इसलिए किया ताकि वे पोर्नोग्राफी साइट्स पर वीडियोज को शेयर करके पैसा कमा सकें।

परिवार को पैसों की बहुत जरूरत थी और वे अपने बिजनेस पार्टनर्स को पैसे देकर अपना होटल बिकने से रोक सकें।

यह सारी बात सास को भी पता थी और उन्हीं के सामने यह सारी घटना हुई। इतना ही नहीं, बहू ने ससुर पर भी आरोप लगाया था कि उन्होंने भी उसके साथ छेड़छाड़ की थी।

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इस मामले में सास ने जमानत याचिका दायर की थी, जिसे खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि उन्हें अपने बेटे और पति की इस करतूत के बारे में पता था। इतना ही नहीं, इसमें उनकी भी बराबरी की हिस्सेदारी थी। इसे रोकने के बजाय उन्होंने अपने पति और बेटे का साथ दिया, जो कि शर्मनाक है।

आपको बता दें कि पीड़ित महिला के पति, ससुर और सास को राजकोट के साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में यौन अपराध से जुड़ी धाराओं जैसे- धारा 354 (A) (यौन दुर्व्यवहार), धारा 376 (रेप), धारा 376 (D), धारा 498 (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता), धरा 506 (आपराधिक धमकी), 509 (यौन उत्पीड़न) आदि के तहत गिरफ्तार किया गया था (महिला सशक्तिकरण के लिए भारतीय कानून)।

gujarat high court on violence against women

कोर्ट ने कहा, "महिलाओं के प्रति उत्पीड़न मामूली अपराध नहीं"

कोर्ट ने कहा कि हमारा यह सामाजिक रवैया आमतौर पर पीछा करना, छेड़छाड़, मौखिक और शारीरिक हमले और उत्पीड़न को एक "मामूली" से अपराध की तरह देखता है। यह "अफसोस की बात है" कि इन अपराधों को मामूली और सामान्य ही नहीं बनाया गया, बल्कि सिनेमा जैसी लोकप्रिय माध्यम के जरिये इनका प्रचार और प्रसार किया जाता है।

कोर्ट ने कहा, "यह नजरिया जो यौन अपराधों को "लड़के हैं, लड़के तो लड़के ही रहेंगे" के चश्मे से देखता है और उनकी हरकतों को नजरअंदाज करता है, वो यौन अपराध झेलने वाली महिलाओं पर एक स्थायी और गलत प्रभाव डालता है।"

इसे आगे बढ़ाते हुए बेंच ने कहा, "अधिकांश मामलों में (महिला के साथ बलात्कार के मामलों में), सामान्य प्रैक्टिस है कि अगर आदमी पति है और वो बिल्कुल वैसे ही व्यवहार करता है, जैसा किसी दूसरे आदमी द्वारा ने किया है, तो उसे छूट दे दी जाती है। मेरे विचार में, इसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। एक आदमी, एक आदमी है। बलात्कार, बलात्कार है। चाहे वो उस आदमी ने किया हो, जो पति है और उस महिला के साथ किया हो, जो पत्नी है।"

हमारा संविधान एक महिला को आदमी के बराबर का दर्जा दिया है। साथ ही, शादी को दो बराबर के लोगों के बीच की एसोसिएशन मानता है।

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जेंडर वॉयलेंस को अक्सर अनदेखा किया जाता है और इसे संस्कृति के नाम की चुप्पी से बांध दिया जाता है। आदमी और औरत के बीच असमान शक्ति समीकरण ही महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक कारक बनता है। इस असामनता को सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों, आर्थिक निर्भरता, गरीबी और शराब के उपयोग से ही बढ़ावा मिलता है।

भारत में, अपराधी अक्सर महिला के जानकार होते हैं। ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करने पर महिला को बड़ी सामाजिक और आर्थिक कीमत चुकानी पड़ती है। परिवार पर आर्थिक रूप से निर्भर होने और सामाजिक बहिष्कार के डर से महिलाएं, किसी तरह की यौन हिंसा और दुर्व्यवहार की शिकायत करने से डरती या दूर भागती हैं। हमने जो डेटा देखे हैं, भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की असल घटनाएं, उस आंकड़े से कहीं ज्यादा हैं।

कोर्ट ने कहा, "महिलाओं को यह चुप्पी तोड़ने की जरूरत है। ऐसा करने के लिए शायद महिलाओं से ज्यादा यह पुरुषों का कर्तव्य बनता है और उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है, ताकि महिलाओं के खिलाफ ऐसी हिंसाओं को रोका जा सके।"

इस सुनवाई में कोर्ट ने बताया कि मैरिटल रेप 50 अमेरिकन स्टेट्स, तीन ऑस्ट्रेलियन स्टेट्स, न्यूजीलैंड, कनाडा, इजरायल, फ्रांस, स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, सोवियत संघ, पोलैंड और पूर्ववर्ती चेकोस्लोवाकिया और कई देशों में इसे गैरकानूनी माना गया है।

यहां तक कि यूनाइटेड किंगडम में भी पतियों को दी जाने वाली छूट को खत्म कर दिया है (भारत में हर एक घंटे में होते हैं इतने रेप)।

दुनिया के 185 देशों में से 77 देशों में ऐसे कानून हैं जो स्पष्ट रूप से मैरिटल रेप को अपराध मानते हैं, जबकि 34 देश ऐसे हैं जो स्पष्ट रूप से मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हैं। ऐसे मामलों में उन आदमियों को छूट दे दी जाती है, जो अपनी पत्नियों के साथ बलात्कार करते हैं। यह अफसोस की बात है कि भारत उन 34 देशों में से एक है, जिसने इसे अपराध की श्रेणी से बाहर किया हुआ है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी ऐसा माना जाता है कि पति यदि अपनी पति के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है, तो वह गलत नहीं है। आपका इस बारे में क्या विचार है और गुजरात कोर्ट के इस फैसले के बारे में आपकी क्या राय है, हमें कमेंट करके जरूर बताएं। अगर यह लेख पसंद आया, तो इसे लाइक और शेयर करें। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।

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