चाहें घर हो या वर्कफ्रंट, भारतीय महिलाएं दोनों जगह काफी प्रोग्रेस कर रही हैं। खासतौर पर वर्कफ्रंट पर भारतीय महिलाओं ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। लेकिन देश की महिलाओं के लिए स्थितियां अच्छी रहें और वे आगे भी प्रगति की दिशा में कदम आगे बढ़ाएं, इसके लिए बेहद जरूरी है कि उनके संरक्षण के लिए बेहतर कानून बनाए जाएं और लचर कानूनों में सुधार कर उन्हें समय के अनुकूल बनाया जाए। इस लिहाज से साल 2018-2019 बहुत अहम साबित हुआ। इस दौरान महिलाओं को सिक्योरिटी देने के लिहाज से कई कदम उठाए गए और कई मौजूदा कानूनों में संशोधन किए गए। इस तरह के बदलावों से निश्चित रूप से भारतीय महिलाओं की स्थिति मजबूत होगी और कानूनी तौर पर संरक्षण हासिल करने में भी उन्हें मदद मिलेगी। आज विश्व भर में International Day For The Elimination Of Violence Against Women मनाया जा रहा है।आइए इस अवसर पर जानते हैं कि भारतीय महिलाओं के प्रति हिंसा को रोकने के लिए कौन-कौन से अहम कानूनी कदम उठाए गए।
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में दहेज उत्पीड़न के मामले में अपने पहले के फैसले में अहम बदलाव करते हुए पति और उसके परिवार की गिरफ्तारी का रास्ता साफ कर दिया। इसके तहत शिकायतों के निपटारे के लिए परिवार कल्याण कमेटी की रिपोर्ट की जरूरत नहीं होगी। नए प्रावधान के जरिए मामले में आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी पर लगी रोक सुप्रीम कोर्ट ने हटा दी। शीर्ष अदालत के अनुसार ऐसा पीड़ित महिला की सेफ्टी के लिए करना जरूरी था। कोर्ट ने आरोपियों के लिए कानूनी प्रावधान के बारे में कहा कि वे अग्रिम जमानत का विकल्प अपना सकते हैं। अदालत ने इस कानूनी संशोधन के जरिए पुलिस को दहेज उत्पीड़न के मामले में सीधे कार्रवाई करने का रास्ता साफ कर दिया। अब पुलिस मामलों की गंभीरता को देखते हुए सीआरपीसी की धारा 41 के तहत काम करेगी, जिसमें आरोपी के खिलाफ पर्याप्त आधार होने पर ही गिरफ्तारी का प्रावधान है।
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महिलाएं फिजिकल रिलेशन्स बनाना चाहती हैं या नहीं, यह पूरी तरह से उनकी इच्छा पर निर्भर करता है। व्यक्तिगत तौर पर वे इसके लिए पूरी तरह से स्वतंत्र हैं, लेकिन शादी के बाद महिलाओं को अपने पति और ससुराल वालों के साथ रिश्ता निभाने का दबाव होता है। चाहें परिवार में रिश्ते सामान्य हों या फिर किसी तरह का मनमुटाव, किसी भी स्थिति में महिलाओं पर उनके पति फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए दबाव नहीं डाल सकते। इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की थी, जिसका हमने अपने आर्टिकल में जिक्र किया था। इसमें कहा गया था कि ‘शादी का यह मतलब नहीं है कि कोई महिला अपने पति के साथ फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए हमेशा तैयार रहे।‘ इस मामले में हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि शादी जैसे रिश्ते में पुरुष और महिला दोनों को शारीरिक संबंध के लिए 'ना' कहने का अधिकार है। महिलाओं को उनकी शादी-शुदा जिंदगी के निजी लम्हों में हासिल इस अधिकार से निश्चित रूप से समाज में उनकी स्थिति मजबूत होगी।
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मुस्लिम महिलाओं में ट्रिपल तलाक की शिकार बनी कितनी ही महिलाओं के मामले हमारे सामने हैं। कई मामलों में बिल्कुल गैर-जरूरी चीजों को लेकर तीन तलाक दिए जाने के मामले सामने आए। तीन तलाक के कारण मुस्लिम महिलाओं में अपने साथ होने वाली ज्यादती को लेकर काफी रोष था और इसे लेकर उन्होंने लंबे समय तक आवाज भी उठाई थी। इसी के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्रीय कैबिनेट ने ट्रिपल तलाक को अपराध करार देने वाला अध्यादेश पारित कर दिया। इस अध्यादेश के आने से मुस्लिम महिलाओं की कानूनी स्थिति मजबूत होगी और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। इससे मुस्लिम समुदाय में ट्रिपल तलाक का दुरुपयोग रुकेगा और छोटी-छोटी बातों पर तलाक के मामलों में भी कमी आएगी।
समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखे जाने की वजह से लंबे वक्त तक देश की महिलाएं असुरक्षित महसूस करती रहीं और इसी वजह से वे अपनी बातों को खुलकर एक्सप्रेस नहीं कर सकती थीं। समलैंगिक आम भारतीयों नागरिकों की तरह अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकें, इसे लेकर कई एनजीओ और सामाजिक संस्थाओं की तरफ से काफी लंबे समय तक आवाजें उठाई जाती रहीं। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में समलैंगिकों के संबंधों को अपराध करार देने वाले कानून को आंशिक रूप से खत्म कर दिया। इससे समलैंगिक महिलाओं की समाज में स्थिति मजबूत होगी और वे खुलकर अपने हक के लिए आवाज उठा सकेंगी। इस संबंध में धारा 377 में हुए संशोधन पर महिलाओं ने खुशी जाहिर की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अंग्रेजों के समय से चले आ रहे एडल्टरी कानून IPC 497 ( 158 साल पुराना कानून ) पर लंबी सुनवाई के बाद आखिरकर इसे रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जो भी व्यवस्था किसी महिला की गरिमा कम करती है या फिर उसके साथ भेदभाव करती है, वह संविधान के कोप का पात्र बनती है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे प्रावधान, जिनमें महिलाओं के साथ गैरसमानता की बात कही गई है, वे असंवैंधानिक हैं। शीर्ष अदालत ने Adultery Law को एकपक्षीय और मनमाना बताया था।
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