सेक्शुअल हैरेसमेंट की बातें करना क्या गलत है? हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए दुनिया भर के कानून बने हैं, लेकिन सच्चाई क्या है इसके बारे में तो आप जानती ही होंगी। एक तरह से देखा जाए, तो कानून और पॉलिसी सब कुछ कहने और सुनने के लिए तो अच्छे होते हैं, लेकिन अगर ये सिर्फ किताबी बातों तक ही रह जाएं, तो फिर इनके होने का मतलब क्या होगा? भारत में विक्टिम ब्लेमिंग का भी ट्रेंड है जहां अगर किसी के साथ कुछ हो रहा है, तो उसकी ही गलती मानी जाएगी।
पर विक्टिम ब्लेमिंग कम हो उसके लिए यह जरूरी है कि सामाजिक तौर पर जागरूकता आए और ज्यादा से ज्यादा इसके बारे में बात शुरू हो। कॉलेज, ऑफिस, स्कूल और ऐसे ही संस्थानों पर अगर बात ही नहीं शुरू होगी, तो भला कैसे लोग पॉलिसी और उसके उपायों के बारे में जानेंगे? भारत में हर रोज, हर घंटे और हर क्षण किसी ना किसी महिला के साथ कोई ना कोई घटना हो ही रही है। ऐसे में यह जरूरी है कि सेक्शुअल हैरेसमेंट क्या है और इससे कैसे बचाव करना है इसके बारे में सबको जानकारी हो।
सेक्शुअल हैरेसमेंट के बारे में समझने के लिए यह जरूरी है कि उसके बारे में बात हो और खुलकर इस तथ्य को स्वीकारा जाए कि सेक्शुअल हैरेसमेंट होता हमारे आस-पास ही है और हम ही उसे रोक सकते हैं।
प्रिवेंशन ऑफ सेक्शुअल हैरेसमेंट एक्ट (POSH) के लिए काम करने वाली संस्था NoMeansNo की POSH कॉन्क्लेव के दौरान दिल्ली पुलिस, यूएन वुमेन और दिल्ली कमीशन फॉर वुमन की तरफ से भी लोग आए थे। इस दौरान सभी एक्सपर्ट्स ने इस मामले को लेकर चर्चा की।
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घरों में सबसे ज्यादा बात तभी हो सकती है जब हर व्यक्ति एक साथ बैठा हो। शायद सिर्फ खाने की टेबल ही एक ऐसी जगह है जहां हम फोन रखकर एक दूसरे से बात कर सकते हैं। यूएन वुमन की वर्ल्ड इकोनॉमिक्स एम्पावरमेंट कंट्री प्रोग्राम मैनेजर मिस सुहेला खान का कहना था, "इस तरह की बातों की शुरुआत हमारी डिनर टेबल पर होनी चाहिए। सेक्शुअल हैरेसमेंट जैसा टॉपिक अगर डिनर टेबल पर डिस्कस किया जाएगा, तो यह बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है।" उनके मुताबिक, इस तरह का टॉपिक परिवार में खुलकर डिस्कस होना चाहिए इससे सभी अपनी जिंदगी में इस मुद्दे को लेकर सहज होने का मौका मिलेगा।
डिनर टेबल सही जगह हो सकती है बच्चों और वयस्कों को सेक्शुअल हैरेसमेंट की गंभीरता समझाने और उसके प्रति झिझक मिटाने के लिए।
दिल्ली पुलिस के Special Police Unit for Women and Children (महिला एवं बाल संरक्षण यूनिट- SPUWAC), के स्पेशल कमिश्नर ऑफ पुलिस, आईपीएस अजय चौधरी भी इस कॉन्क्लेव का हिस्सा थे। उनका कहना था, "इस बात पर बहुत ध्यान दिया जाता है कि लड़कियों को कैसे पाला जाए, लेकिन हम बहुत कम इस बारे में सोचते हैं कि लड़कों को पालने का तरीका कैसा होना चाहिए।" उनका मानना है कि माता-पिता को लड़कियों और लड़कों दोनों की परवरिश पर ध्यान देना चाहिए।
माता-पिता को बेटों के मन में एक सही सोच डालनी चाहिए। फिजूल की मैस्कुलेनिटी से भरी बातों से बेटों के मन में प्यार, दया, आदर के भाव नहीं आएंगे। बेटों को शुरुआत से ही यह समझाना चाहिए कि दूसरों की इच्छा का सम्मान क्या होता है और जेंडर बेस्ड वॉयलेंस कितनी खतरनाक हो सकती है उसके बारे में सब कुछ सिखाने की कोशिश करनी चाहिए। लड़कों को भी सशक्त करने की जरूरत है ताकि वो सदियों से चले आ रहे रूढ़िवादी नियमों और कायदों के खिलाफ खुलकर आवाज उठा सकें।
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आईपीएस अजय चौधरी ने इस बारे में भी बात की। उनका मानना है कि जेंडर सेंसिटिविटी तभी आएगी जब हम शुरुआत से ही इसके बारे में लोगों को सिखाएंगे। दिल्ली पुलिस ऐसे कई प्रोग्राम्स को ऑर्गेनाइज कर रही है और कई एनजीओ के साथ मिलकर काम कर रही है जिससे समाज में इस मुद्दे को लेकर जागरूकता बढ़ सके। उन्होंने आगे बताया कि कैसे इस तरह की ट्रेनिंग और प्रोग्राम्स स्कूल में किए जा सकते हैं जिससे इस मुद्दे के बारे में बच्चों को समझाया जा सके। अगर शुरुआत से ही बच्चे समझदार होंगे तो जेंडर के आधार पर होने वाले क्राइम रेट में बहुत बदलाव होगा।
सेक्शुअल हैरेसमेंट को लेकर बात करना इसलिए भी जरूरी है ताकि खुद अपने अंदर की झिझक कम हो पाए। ऐसा कितनी बार हुआ है कि ऐसे किसी मुद्दे के बारे में बात करने से आपने खुद को रोका हो या फिर परिवार के कुछ सदस्यों के सामने बात करने से कतराई होंगी? समाज में इस मुद्दे को लेकर झिझक कम करने के पहले यह जरूरी है कि हम खुद के अंदर भी यह बदलाव लाएं। इसे लेकर सहजता तभी होगी जब धीरे-धीरे हम इसके बारे में बात करेंगे।
यह जरूरी है कि आप खुद पितृसत्तात्मक मुद्दों पर आवाज उठाएं और खुद को जागरूक करें।
सेक्शुअल हैरेसमेंट के मुद्दे और उसकी बातचीत को लेकर आपका क्या एक्सपीरियंस है? हमें आर्टिकल के नीचे कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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