प्राचीन काल से ही जप करना या मंत्रों का जाप करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। इसके लिए माला विभिन्न चीजों की जैसे रुद्राक्ष, मोती व तुलसी की मुख्य रूप से उपयोगी मानी जाती है। जाप करना शास्त्रों में भी विशेष रूप से लाभदायक बताया गया है।
शास्त्रों के अनुसार बिना माला के संख्याहीन जाप निष्फल होता है। माला आमतौर पर 108 मोतियों से बनी होती है। दरअसल ये केवल एक संख्या मात्र नहीं है बल्कि इसका विशेष उपयोग भी है।
ऐसी मान्यता है की यदि कोई व्यक्ति जाप के समय किसी भी मंत्र का उच्चारण 108 बार करता है, तो ये उसके जीवन में सुख समृद्धि का कारक बनता है। वहीं बिना गिने हुए किसी भी संख्या में किया गया जाप मान्य नहीं होता है। लेकिन अक्सर हमारे मन में ये सवाल उठता है कि मंत्रों का जाप आखिर 108 बार ही क्यों किया जाता है और माला में इसी संख्या में मोती क्यों होते हैं। आइए इस लेख में इसके कारणों के बारे में नारद संचार के ज्योतिष अनिल जैन जी से विस्तार से जानें।
108 नंबर होता है शुभ
माला में 108 दानों का विशेष महत्व होता है। योग और ज्योतिष के अनुसार इस नंबर को बहुत ही शुभ माना जाता है और कोई भी पूजा 108 बार मंत्रोच्चारण के बिना अधूरी ही मानी जाती है। मन्त्रों का जाप वेदों से प्राप्त हुआ है और इसका संबंध हमारी संस्कृति से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि सभी मंत्र संस्कृत भाषा से निकले हुए हैं।
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108 संख्या का उद्गम
दरअसल सभी भाषाओं का जन्म संस्कृत भाषा से हुआ है और इस नंबर को बेहद शुभ माना जाता है। संस्कृत भाषा में 54 अक्षर होते हैं और प्रत्येक अक्षर के दो हिस्से होते हैं स्त्री और पुरुष के रूप में। इन्हें शिव(भगवान शिव के मंत्र)और शक्ति के रूप में भी देखा जा सकता है।
इसलिए इसे शुभ माना जाता है क्योंकि यदि 54 संख्या को 2 से गुणा किया जाए तो ये संख्या 54 x 2 =108 बनती है। यही वजह है कि किसी भी मंत्र का उच्चारण इस शुभ संख्या के साथ करना फलदायी माना जाता है।
क्या हैं वैज्ञानिक कारण
अगर बात 108 बार मंत्रोच्चारण की हो तो ऐसा माना जाता है कि हमारी सांसों की संख्या 24 घंटे में 21 हजार 6 सौ है। हर व्यक्ति इतनी ही बार सांसें लेता है। यदि हम नियमित दिनचर्या की बात करें तो दिनभर के 12 घंटे नियमित दिनचर्या में निकल जाते हैं, वहीं बचे हुए 12 घंटों में ही हम ईश्वर का ध्यान लगा सकते हैं।
इसलिए यदि 21,600 का आधा किया जाता है तो ये संख्या 10,800 बनती है। जब बात मंत्रोच्चारण की हो तो एक बार में 10, 800 बार मंत्रोच्चारण संभव नहीं है, इसी वजह से इस संख्या से दो शून्य हटाकर मंत्रोच्चारण करने का विधान है।
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व्यक्ति की 108 इच्छाएं होती हैं
यदि व्यक्ति की इच्छाओं की बात करें तो उनकी संख्या 108 ही होती है और सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास से 108 गुना ज्यादा है। इसके अलावा ज्योतिष में इस संख्या का विशेष महत्व है। हमारा राशि चक्र 12 राशियों में विभाजित है। हिन्दू धर्म में 9 ग्रह होते हैं। यदि आप 12 को 9 से गुणा करेंगे तो 108 संख्या ही आती है।
सूर्य की कलाओं से है संबंध
सूर्य पूरे वर्ष में 21,600 कलाएं बदलता है और सूर्य के चक्र को दो भागों में बांटा गया है, उत्तरायण और दक्षियायन। इस प्रकार यदि सूर्य (सूर्य के 12 मंत्रों का जाप) की कलाओं को दो भागों में बांटा जाता है तब भी 10, 800 की संख्या बनती है। इसलिए यदि इसमें से भी दो शून्य हटा दें तो ये 108 की संख्या ही बनती है। इसी वजह से इस नंबर को शुभ मानकर मन्त्रों का जाप इसी संख्या में करने की सलाह दी जाती है।
वास्तव में बहुत ही शुभ संख्या होने की वजह से ही मन्त्रों का उच्चारण 108 बार करना फलदायी माना जाता है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
Image Credit: freepik.com
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