पहले जमाने में गाड़ी खरीदना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी, लेकिन आजकल लोग कार लोन लेकर कार खरीदने लगे हैं। जहां नई कार खरीदना काफी रोमांचक अनुभव होता है, वहीं कार के साथ-साथ कई जिम्मेदारियां भी जुड़कर आती हैं। जैसे-जैसे ज्यादा से ज्यादा कारें सड़कों पर उतर रही हैं, वायु प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। खासतौर पर बड़े शहरों में ट्रैफिक जाम के साथ-साथ प्रदूषण भी बड़ी समस्या बना हुआ है। ऐसे में जरूरी होता है कि आपके पास प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (PUC) जरूर हो, ताकि आप सुनिश्चित कर सकें कि आपकी कार से निकलने वाला धुआं निर्धारित सीमा से अधिक नहीं है। कई बार लोगों के मन में सवाल आता है कि जब नई कार खरीदते हैं, तो पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट कब और कैसे लेना चाहिए।
PUC सर्टिफिकेट एक ऑफिशियल डॉक्यूमेंट होता है, जो अलग-अलग केंद्रों द्वारा जारी किया जाता है। यह सर्टिफिकेट पुष्टि करता है कि आपकी कार निर्धारित सीमा से ज्यादा प्रदूषण नहीं छोड़ती है। इस सर्टिफिकेट का उद्देश्य वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करना है।
PUC सर्टिफिकेट में गाड़ी की पहचान संख्या(Vehicle Identification Number), रजिस्ट्रेशन नंबर और Emission Test के रिजल्ट शामिल होते हैं। सर्टिफिकेट दिखाता है कि गाड़ी सरकार द्वारा तय किए गए उत्सर्जन मानकों का पालन करती है या नहीं। उत्सर्जन परीक्षण यानी Emission Test में आपकी कार के इंजन की स्थिति, निकास प्रणाली और निकलने वाले प्रदूषकों की जांच की जाती है। अगर आपकी गाड़ी इस टेस्ट को पास कर लेती है, तो आपको सर्टिफिकेट मिल जाता है।
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जब आप नई कार खरीदते हैं, तो आपको तुरंत पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं होती है। भारतीय नियमों के अनुसार, नई कार को आमतौर पर पहले साल के लिए प्रदूषण प्रमाणपत्र लेने की जरूरत नहीं होती है। हालांकि, यह छूट इस बात पर आधारित होती है कि नई कार की स्थिति अच्छी हो और वह नैचुरली उत्सर्जन मानकों का पालन करती हो।
नई कार खरीदने के एक साल बाद, आपको कार रजिस्ट्रेशन की तारीख के 13वें महीने तक PUC सर्टिफिकेट प्राप्त करना होता है। अगर आप इसमें लापरवाही करती हैं, तो आपको जुर्माना भरना पड़ सकता है। जब आप 13वें महीने में PUC सर्टिफिकेट पा लेते हैं, तो हर 6 महीने में इसे रिन्यू कराना होता है। अगर आपके पास वैलिड PUC सर्टिफिकेट नहीं मिलता है, तो आपको जुर्माना भरना पड़ सकता है।
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