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क्या AI की वजह से जॉब मार्केट ठंडा पड़ सकता है?
ऐसी कई हेडलाइन्स गाहे-बगाहे आपकी नजर में आ ही जाती होंगी जहां मॉर्डन युग में तकनीक का इस्तेमाल दिखाया जाता है। यकीनन हम जिस युग में रह रहे हैं उसके बारे में शायद हमने पहले सोचा ही नहीं होगा। बचपन में जब 2024 या 2025 का ख्याल किया जाता था तब फ्लाइंग कार और एरोरेल के सपने देखा करते थे, लेकिन असलियत तो उन बचपन के सपनों से परे है। हमने तकनीकी रूप से विकास तो किया है, लेकिन क्या हमने तकनीक के हिसाब से विकास किया है?
हो सकता है मेरी बात अभी आपकी समझ में ना आई हो। दूसरे शब्दों में कहूं तो AI तकनीकी रूप से बहुत एडवांस हैं, लेकिन हम AI के हिसाब से एडवांस नहीं हैं। कम से कम भारत तो नहीं ही है। आप इंडिया की फोटोज अगर AI के जरिए देखने की कोशिश करेंगे, तो हमारी छवि अभी भी वही पुरानी आएगी। अब मदर्स डे का मौका था, तो हमने सोचा क्यों ना AI के जरिए मैं इंडियन मदर्स की कुछ तस्वीरें निकाल लूं। पर जो रियलिटी चेक मिला वह अलग ही था। दरअसल, हरजिंदगी की कैम्पेन "Maa Beyond Stereotypes" के तहत हम क्लासिक इंडियन मदर की उसी छवि को देखने की कोशिश कर रहे हैं जो स्टीरियोटाइप्स के आधार पर बनी है। समाज में तो यह कहा ही जाता है कि मां को त्याग की मूर्ति होना पड़ेगा, मां को अच्छा खाना बनाना ही पड़ेगा और भी बहुत कुछ, लेकिन यह सब कुछ AI ने भी सीखा हुआ है।
इंडियन मदर AI के हिसाब से वही 1960 के दशक में जी रही है जहां उसका काम घर संभालना और बच्चे पालना है। इतना ही नहीं, कुछ AI टूल्स तो इंडियन मदर को आजादी से पहले ही ले जा रहे हैं। इससे पहले कि कुछ और कहा जाए, एक बार आप उन तस्वीरों को देख लीजिए जो AI टूल्स से निकाली गई हैं।
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जब मैंने किसी एक टूल से पूछा 'How does an indian mother look like', तो इमेज कुछ ऐसी थी।
बूढ़ी और गरीब मां अपने बच्चों को हाथ में लिए दयनीय स्थिति में खड़ी है।
ऐसा ही एक्सपेरिमेंट दूसरे टूल के साथ किया और उसे कई प्रॉम्प्ट्स देने की कोशिश की जैसे-
अलग-अलग टूल्स में क्लासिक इंडियन मदर की इमेज भले ही अलग हो, लेकिन उसकी छवि कुछ-कुछ मिलती जुलती थी। यानी गहनों से लदी हुई, घर के काम करने वाली महिला, प्रॉम्प्ट 'Classic Indian Mother', तो इमेज कुछ ऐसी थी।
यही प्रॉम्प्ट दूसरे AI टूल में डालकर देखा और एक क्लासिक इंडियन मदर की इमेज खोजने की कोशिश की। उस वक्त Classic Indian Mother', प्रॉम्प्ट डालने पर इमेज कुछ ऐसी थी। यहां पर मां के तीन हाथ थे जो शायद इंडियन देवी से इंस्पायर्ड थे।
मुझे लगा की प्रॉम्प्ट थोड़ा बदलने की जरूरत है क्योंकि अभी तक इमेज जो बनकर आ रही थी उसमें इंडियन मदर बहुत ही दयनीय दिख रही थी। ऐसे में मैंने प्रॉम्प्ट किया 'Indian mother Working', तो इमेज कुछ ऐसी थी। यानी AI के हिसाब से इंडियन मां का काम सिर्फ खाना बनाना ही है।
अब लगा कि कुछ और बदलाव चाहिए और प्रॉम्प्ट को बदलकर 'Indian Mother Work' कर दिया, तब भी इमेज में कोई खास बदलाव नहीं आया।
अब बारी थी प्रॉम्प्ट को थोड़ा और स्मार्ट बनाने की मैंने 'Indian Mother At Office' प्रॉम्प्ट दिया तब कुछ ऐसी इमेज आई।
हद तो तब हो गई जब AI से एक इंडियन मदर की हॉबी पूछी गई। AI यहां पर कन्फ्यूज हो गया। उसके हिसाब से भारतीय मदर की कोई हॉबी हो ही नहीं सकती।
मुझे लगा कि शायद इमेज AI टूल्स इतने ज्यादा एडवांस नहीं हुए हैं, उनकी जगह कुछ अलग करना सही है। मैंने फाइनली चैट जीपीटी से पूछने की कोशिश की। उसके हिसाब से भी इंडियन मां की छवि कुछ अलग नहीं थी।
इतना ही नहीं, जब उससे इंडियन मां की क्वालिटीज पूछी गई तब पता चला कि भाई मां का सबसे पहला काम होता है खाना बनाना। इसके अलावा, इंडियन मदर के लिए त्याग करना जरूरी होता है। उसे निस्वार्थ प्यार करना होगा और भी तरह-तरह की क्वालिटीज बताई गई हैं।
कुल मिलाकर भारतीय मां की जो छवि AI ने बताई है उसके हिसाब से तो मां की अपनी कोई जिंदगी ही नहीं होती है। इतना ही नहीं आप गूगल पर भी इंडियन मदर की इमेज सर्च कर लीजिए नतीजा एक जैसा ही होगा।
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यह बात मजाक से परे हटकर सीरियस है क्योंकि हम मां के हर रूप को एक ही तराजू से तौलते हैं। यही मान्यता समाज में फैली हुई है। मां का मतलब है एक ऐसी महिला जो त्याग की मूर्ति हो। तभी शायद 'अनुपमा' को परफेक्ट इंडियन मदर समझा जाता है। खुद ही सोचिए कि एक महिला सुबह 4 बजे उठकर खाना बनाती है, घर के सारे काम करती है, घर में होने वाली हर चीज का ख्याल रखती है, पूजा-पाठ करती है, बच्चों की पसंद का सब कुछ बनाती है और फिर ऑफिस जाती है दिन भर काम करती है, वापस आकर दोबारा किचन में लग जाती है और जब बच्चे अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं तब भी वह उनके बारे में सोचती रहती है।
हमारा दिमाग इसी तरह से ग्रूम कर दिया गया है कि मां की बस इतनी ही अहमियत है। मदर्स डे पर मां के साथ स्टोरी डालकर हम खुश हो जाते हैं, लेकिन कभी यह सोचने की कोशिश नहीं करते कि 'सुपरमॉम' शब्द जिसे हमने वायरल कर दिया है वह मां पर कितना बोझ डाल सकता है। मां अपने काम छोड़कर सिर्फ बच्चों के इर्द-गिर्द घूमे और अगर वह अपने लिए कुछ भी करना चाहे, तो हम उसे गिल्टी फील करवाएं। समाज ने मां शब्द को कुछ ऐसा बना दिया है कि महिलाएं खुद यह सोचती हैं कि यह उनकी ड्यूटी ही है। बच्चों की बदतमीजी, उनका व्यवहार, उनका गुस्सा सब कुछ मां को बर्दाश्त करना ही है। मां को अपने बारे में सोचने का कोई हक नहीं और अगर गलती से मां ने अपनी कोई हॉबी रख ली या अपने बारे में सोचा, तो पूरा समाज उसे यह समझाने में लग जाता है कि वह कितनी खराब मां है।
बच्चा मां की जिंदगी का हिस्सा होता है, लेकिन उसे ही मां की पूरी जिंदगी मान लेना गलत है।
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मदर्स डे 2024: इसमदर्स डेको स्पेशल बनाने के लिए जाने आप क्या गिफ्ट कर सकते हैं और उनकी पसंदीदा मूवी, सॉन्ग के साथ कैसे करें एन्जॉय। Herzindagi के कैंपेन 'Maa Beyond Stereotypes' से जुड़ें और सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी सोच को बदलें।
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