हर हर महादेव... महाशिवरात्रि पर हम अपने शास्त्रों और पुराणों से कुछ ऐसी कहानियां निकालकर लाते हैं। जिसे पढ़कर हम जान सके कि आखिर कैसे माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। साथ ही, कौन सा वो स्थान है जो आप भी उनके मिलन का साक्षी बना है। उत्तराखंड का एक ऐसी ही मंदिर है, जहां पर माता पार्वती ने भोले बाबा का इंतजार काफी समय तक किया था। ऐसा इसलिए क्योंकि वो उन्हें ही अपने पति के रूप में पाना चाहती थी। चलिए आपको बताते हैं उस मंदिर के बारे में साथ ही इससे जुड़ा कुछ खास इतिहास।
उत्तराखंड की देवभूमि हरिद्वार में एक ऐसा मंदिर है। जहां पर माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 3000 साल तक तपस्या की थी। ये कहानी हमारे प्राचीन काल से जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि जब माता पार्वती ने अपनी तपस्या की तो उन्होंने हरिद्वार के इस स्थान जिसे बिल्ला पर्वत भी कहते हैं इसे चुना। यहां पर उन्होंने बेलपत्र खाकर अपनी भूख को शांत किया। लेकिन जब जल की बात आई तो स्वयं परमपिता ब्रह्मा जी ने कमंडल से गंगा की जलधारा इस स्थान पर प्रकट की। इसलिए यहां पर एक गौरी कुंड भी मौजूद है। ऐसा कहा जाता है कि तपस्या के समय माता पार्वती इसी का जल पीकर अपनी प्यास को शांत करती थी।
इस मंदिर में एक स्थान ऐसा है जहां पर स्वयंभू शिवलिंग की पूजा की जाती है। ये शिवलिंग बेलपत्र पेड़ के नीचे मौजूद है। यहां पर ही भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या से खुश होकर दर्शन दिए थे। इसलिए सुबह और शाम इस शिवलिंग का श्रृंगार होता है। साथ ही, इसकी पूजा भी खास तरीके से की जाती है।
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इस मंदिर में जिस स्थान पर बैठकर माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए तपस्या की थी। वहां पर गौरी कुंड आज भी मौजूद है। इस कुंड का पानी ही भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस जल से स्नान करके ही भगवान शिव का श्रृंगार पूरा होता है। साथ ही, उस समय किसी को भी भगवान को देखने की अनुमति नहीं होती है।
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ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में जो भी भगवान शिव की पूजा आस्था से करता है, तो उसे मनचाहा फल मिलता है। साथ ही, विवाह से जुड़ी सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं। मैंने तो इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती के इस कुंड के दर्शन किए। आप भी चाहें तो महाशिवरात्रि के मौके पर दर्शन कर सकते हैं।
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