मंदिर या घर पर शिवलिंग के साथ त्रिशूल क्यों नहीं रखा जाता है?

भगवान शिव के विभिन्न रूप का वर्णन आपने सुना होगा और शिव पुराण में पढ़ा भी होगा। अब ऐसे में क्या आपने कभी भी शिवलिंग के साथ त्रिशूल को देखा है। नहीं ना... आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
why trishul should not kept with shivling

आपमें से कई लोग शिवालय या शिव मंदिर जाते हैं। वहां आप शिवलिंग की पूजा भी विधिवत रूप से करते होंगे। आपने शिवलिंग पर कलश से जल टपकते देखा होगा। शिवलिंग के ऊपर नागछत्र देखा होगा और शिवलिंग के साथ माता पार्वती, कार्तिकेय, अशोकसुंदरी और भगवान गणेश की प्रतिमा भी देखी होगी। लेकिन क्या आपने कभी यह देखा है कि शिवलिंग के साथ त्रिशूल देखा है? आपको भगवान शिव की प्रतिमा के साथ त्रिशूल जरूर मिल जाएगा, लेकिन शिवलिंग के त्रिशूल के साथ नहीं देखने को मिलेगा। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं कि आखिर क्यों मंदिर या घर पर शिवलिंग के साथ त्रिशूल क्यों नहीं रखा जाता है।

शिवलिंग के साथ त्रिशूल क्यों नहीं रखा जाता है?

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रिशूल और शिवलिंग दोनों ही भगवान शिव के प्रतीक हैं, लेकिन उनकी ऊर्जा और महत्व अलग-अलग हैं। त्रिशूल को विनाश और शक्ति का प्रतीक माना जाता है, जबकि शिवलिंग को सृजन और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है। इसलिए, इन दोनों को एक साथ रखने से ऊर्जा का टकराव हो सकता है। आपको बता दें, त्रिशूल को भगवान शिव का अस्त्र माना जाता है, जबकि शिवलिंग उनकी पूजा का प्रतीक है। इसलिए, इन दोनों को एक साथ नहीं रखा जाता है।
शिवलिंग भगवान शिव के निराकार रूप का प्रतीक है। यह ब्रह्मांड के ऊर्जा और प्रकृति के मिलन का प्रतिनिधित्व करता है। त्रिशूल भगवान शिव के तीन पहलुओं - निर्माता, पालक और विध्वंसक का प्रतीक है। यह उनके शक्ति और नियंत्रण का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए शिवलिंग के साथ कभी भी त्रिशूल नहीं रखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि त्रिशूल को भगवान शिव के भौतिक रूप के साथ जोड़ा जाता है, जबकि शिवलिंग उनके आध्यात्मिक और निराकार स्वरूप का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव की प्रतिमा

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भगवान शिव की प्रतिमा के साथ त्रिशूल का होना उनके तीन प्रमुख गुणों सत्य, ज्ञान, और वैराग्य का प्रतीक है। त्रिशूल का यह रूप शिव के पूरे अस्तित्व के प्रतीक के रूप में कार्य करता है। त्रिशूल का प्रत्येक बिंदु तीन प्रमुख पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है । जैसे कि ब्रह्मा यानी कि सृजन, भगवान विष्णु यान कि पालनकर्ता, और महेश यानी कि संहार करने वाले। अब, शिवलिंग की बात करें, तो यह शिव के निराकार रूप का प्रतीक है। शिवलिंग में त्रिशूल का नहीं होना यह व्यक्त करता है कि शिवलिंग निराकार रूप में होते हैं, जिनमें कोई विशेष रूप या आकार नहीं होता। शिवलिंग की पूजा आत्मा के साथ शिव के एकात्मता का अनुभव कराना है, जो पारंपरिक मूर्तियों से परे है। शिवलिंग में कोई विशेष रूप या प्रतीक जैसे कि त्रिशूल नहीं होता क्योंकि इसका स्वरूप ब्रह्म के निराकार रूप को दर्शाता है, जो सब कुछ में व्याप्त है और सर्वव्यापी है।

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Image Credit- HerZindagi

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