हिन्दू धर्म में हर एक व्रत और त्योहार का विशेष महत्व है। हर व्रत किसी देवी देवता को समर्पित होता है और उस दिन उनका पूजन अत्यंत फलदायी होता है। ऐसे ही व्रत त्योहारों में से एक है हरतालिका तीज का त्यौहार। ये त्यौहार सुहागिन स्त्रियों के लिए और अच्छे पति की कामना रखने वाली कुंवारियों के लिए मुख्य रूप से फलदायी माना जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य और अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
इस व्रत में महिलाएं माता पार्वती से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं। वहीं कुंवारी कन्याएं भी हरतालिका तीज का व्रत अच्छे पति की कामना हेतु रखती हैं। हरतालिका तीज में महिलाएं 16 श्रृंगार करके माता पार्वती और भगवान शिव का पूरे मनोयोग से पूजन करती हैं और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। आइए नई दिल्ली के पंडित एस्ट्रोलॉजी और वास्तु विशेषज्ञ, प्रशांत मिश्रा जी से जानें इस साल कब मनाया जाएगा हरतालिका तीज का त्योहार, पूजा का शुभ मुहूर्त और इसका क्या महत्व है।
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ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूरे श्रद्धा भाव से निर्जला व्रत रखने से अच्छे पर की प्राप्ति तो होती है और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है। इस व्रत को करने से अटल सुहाग का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत मुख्य रूप से सुहागिनों का त्यौहार माना जाता है और इसमें माता गौरा को सोलह श्रृंगार चढ़ाने का विधान है। यही नहीं ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिव और पार्वती माता का साथ में पूजन करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
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हरतालिका तीज दो शब्दों से मिलकर बना है हरत और आलिका, हरत का अर्थ होता है अपहरण और आलिका अर्थात सहेली, इस व्रत की एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार पार्वती जी की सखियां उनका अपहरण करके जंगल में ले गईं थी। ताकि पार्वती जी के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध न कर दें। अपनी सखियों की सलाह से पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की आराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनाकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था। तभी से इस व्रत को सुहागिन स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए और कुंवारियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं।
यहां बताए तरीके से हरतालिका तीज के त्योहार में पूजन और व्रत करना विशेष रूप से फलदायी होता है और इस व्रत का विशेष महत्त्व है।
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