चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व भक्तों के लिए शक्ति, साधना और श्रद्धा का दिव्य संगम होता है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना की जाती है, जिससे भक्तों को शक्ति, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इस शुभ अवसर पर श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करना अत्यंत मंगलकारी माना जाता है।
ऐसा विश्वास है कि जो भी व्यक्ति नवरात्रि के दौरान श्रद्धा और भक्ति से श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करता है, उसके जीवन से सभी प्रकार के कष्ट और नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।
श्री दुर्गा चालीसा में मां दुर्गा की महिमा, उनके पराक्रम और भक्तों पर उनकी कृपा का सुंदर वर्णन मिलता है। यह पाठ जीवन की कठिनाइयों को दूर कर मानसिक शांति प्रदान करता है तथा नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मकता में बदलने में सहायक होता है।
विशेष रूप से, चैत्र नवरात्रि के दौरान इस पाठ का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इसके नियमित पाठ से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है तथा मां दुर्गा की अपार कृपा प्राप्त होती है। यदि आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं, तो इस नवरात्रि में श्री दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य करें और माता रानी के आशीर्वाद से अपने जीवन को मंगलमय बनाएं।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुख हरनी॥ (1)
निराकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥ (2)
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥ (3)
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥ (4)
तुम संसार शक्ति लय कीना।
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पालन हेतु अन्न धन दीना॥ (5)
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अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥ (6)
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥ (7)
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥ (8)
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥ (9)
धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
प्रकट हुई फाड़कर खम्बा॥ (10)
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥ (11)
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥(12)
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥ (13)
मातंगी धूमावती माता।
भुवनेश्वरी बगला सुखदाता॥ (14)
श्री भैरव तारा जग तारिणि।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि॥ (15)
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥ (16)
कर में खप्पर खड्ग विराजे।
जाको देख काल डर भाजे॥ (17)
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥ (18)
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहूं लोक में डंका बाजत॥ (19)
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥ (20)
महिषासुर नृप अति अभिमानी
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥ (21)
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥ (22)
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥ (23)
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तव महिमा सब रहें अशोका॥ (24)
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजे नर नारी॥ (25)
प्रेम भक्ति से जो यश गावे।
दुख दारिद्रय निकट नहिं आवे॥ (26)
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताको छूटि जाई॥ (27)
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥ (28)
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥ (29)
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥ (30)
शक्ति रूप को मरम न पायो।
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शक्ति गई तब मन पछतायो॥ (31)
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥ (32)
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥ (33)
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरे दुख मेरो॥ (34)
आशा तृष्णा निपट सतावें।
मोह मदादिक सब विनशावें॥ (35)
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥ (36)
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला॥ (37)
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥ (38)
दुर्गा चालीसा जो नित गावै।
सब सुख भोग परम पद पावै॥ (39)
देविदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥ (40)
उम्मीद है दुर्गा चालीसा का यह भावार्थ आपको सरल लगा होगा और पसंद आया होगा। इसी तरह धर्म से जुड़े और भी आर्टिकल्स पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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