खुद को दिल से बच्ची मानती हैं दिव्या दत्ता, सेल्फ लर्निंग हैं इनका फंडा

हमने कई कहानियों में सुना है कि ‘लाइफ इज़ टू मूव ऑन’! मुझे अब यह समझ में आने लगा। मुझे लगता है जो आपसे प्यार करते हैं वो कहीं जाते नहीं है, हमेशा आपके साथ रहते हैं।   

  • Shikha Sharma
  • Her Zindagi Editorial
  • Updated - 2018-08-14, 19:06 IST
DIVYA DUTTA ON DEPRESSION main

डिप्रेशन से गुज़रना क्या होता है, यह वो ही जानता है जो इससे गुज़र रहा होता है लेकिन, इससे निकलने का रास्ता भी खुद ढूंढना पड़ता है। डिप्रेशन से गुज़रने और उससे निकलने की कुछ ऐसी ही बातें हमसे शेयर की हैं बॉलीवुड की बेहतरीन और नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली अभिनेत्री दिव्या दत्ता ने। दिव्या ने हमें बतया कि कैसे वो डिप्रेशन का शिकार हुई और कैसे उससे बाहर निकलीं। सेल्फ लर्निंग पर विस्वास करने वाली दिव्या की ये बातें आपको भी ज़रूर इंस्पायर करेंगी, आइए जानते हैं!

माँ के गुज़रने के बाद लगा ज़िन्दगी रुक गई है

DIVYA DUTTA ON DEPRESSION inside

दिव्या ने हमें बताया कि दो साल पहले जब उनकी माँ का देहांत हुआ तो वो पूरी तरह से हिल गई थीं, ''यह दो साल मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा लो पॉइंट था। मेरी माँ मेरा सबसे बड़ा सहारा थीं, उनके जाने के बाद मुझे लगा कि मेरी ज़िन्दगी रुक गई है, मुझे लगा मैं अब ज़िन्दगी को एक ऐ सिरे से देख रही हूँ जो इतने सालों तक मुझे नहीं दिखी। मुझे लगने लगा कि किसी चीज़ का कोई मतलब नहीं, कहीं कोई उम्मीद नहीं, कोई ख़ुशी नहीं... मैं डिप्रेशन में चली गई। मुझे याद हैं कि मैं अपनी माँ का मज़ाक उड़ाया करती थी कि आपके पास दवाइयों के कितने सारे डब्बे हैं लेकिन, अब मैं उनसे भी ज्यादा दवाइयां लेने लगी थी।''

जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है

DIVYA DUTTA ON DEPRESSION inside

दिव्या ने आगे कहा कि फिर मुझे धीरे-धीरे समझ में आया कि मैं अपने साथ यह क्या कर रही हूँ। हमने कई कहानियों में सुना है कि ‘लाइफ इज़ टू मूव ऑन’! मुझे अब यह समझ में आने लगा। मुझे लगता है जो आपसे प्यार करते हैं वो कहीं जाते नहीं है, हमेशा आपके साथ रहते हैं। गिरना, फिर गिर कर उठाना... ऐसे हालात ही आपको सिखाते हैं। सेल्फ लर्निंग बहुत ज़रूरी है, तो मैंने वही किया और खुद को वापस लेकर आई और कमाल की बात है कि उस टाइम मैं इतनी बिजी थी कि मुझे पता ही नहीं चला कि मुझे इतनी परेशानियां हैं। लेकिन, अब मैं खुश हूँ कि मैं फिर से पहली वाली दिव्या बन गई हूँ।

'दिल से मैं हूं बच्ची'

मैं दिल से बच्ची ही हूँ, कुछ समय के लिए अजीब सी हो गई थी मगर, अब मैं बिलकुल वैसी ही हूँ जैसे पहले थी। मैं कभी नहीं सोच पाती कि मैं बड़ी हो गई हूँ, या मैंने ज़िन्दगी में इतना अनुभव ले लिया है। मुझे लगता है कि अब भी मेरे अन्दर बचपना है। मेरे भतीजे और भांजी मुझे अपना दोस्त मानते हैं क्योंकि शायद मेरे बचपने से वो रिलेट करते हैं।

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