हिंदू धर्म में पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। पूजा के माध्यम से लोग ईश्वर के प्रति आदर सम्मान व्यक्त करते हैं और इसके फलस्वरूप उनकी मनोकामनाओं को पूर्ति होती है। लोग हर एक भगवान की पूजा दिन के अनुसार करते हैं और उनकी कृपा दृष्टि पाते हैं।
आमतौर पर लोग किसी भी ईश्वर की पूजा के बाद आरती जरूर करते हैं, जिससे पूजा का पूर्ण फल मिल सके। क्या आप जानती हैं पूजा और आरती के बीच अंतर होता है। लोग पूजा आह्वान, प्रार्थना, गीत और अनुष्ठानों के माध्यम से एक भगवान, एक आत्मा, या परमात्मा के एक अन्य पहलू के प्रति श्रद्धा दिखाने का प्रयास करते हैं।
किसी भी पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा परमात्मा के साथ आध्यात्मिक संबंध बनाना होता है। आइए ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया जी से जानें पूजा और आरती के बीच के संबंध के बारे में और इनके महत्व के बारे में।
क्या है भगवान की पूजा
पूजा का अर्थ है ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा। ऐसा माना जाता है कि पूजा की उत्पत्ति ही इसलिए हुई थी जिससे भगवान के प्रति सम्मान दिखाया जा सके। पूजा शब्द का उपयोग कई तरह से किया जाता है जिसमें फूलों, फलों, पत्तियों, चावल, मिठाई और पानी के साधारण दैनिक प्रसाद से लेकर घरों या मंदिरों में देवी-देवताओं की पूजा भी शामिल है।
हिन्दुओं में पूजा को अनिवार्य अनुष्ठान माना गया है और इसके बिना व्यक्ति को शांति नहीं मिलती है।
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पूजा का महत्व
पूजा हिंदू धर्म में दिव्य पूजा का सबसे लोकप्रिय रूप है। यह या तो व्यक्तियों द्वारा या समूहों में या तो प्रत्यक्ष रूप से एक उपासक द्वारा या अप्रत्यक्ष रूप से उपासक की ओर से एक पुजारी द्वारा किया जाता है। यह सभी हिंदू मंदिरों में भी सार्वभौमिक रूप से प्रचलित है।
पूजा से मन को शांति मिलती है और शरीर को कई बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह ईश्वर से जुड़ाव का एक तरीका है और भक्त और भगवान् के बीच एक अनोखा संबंध बनाने में मदद करता है।
क्या है भगवान की आरती
परंपरागत रूप से एक हिंदू घर में सुबह और शाम के समय आरती की जाती है। आरती में एक दीये में छोटी सी लौ प्रज्वलित की जाती है और उसे भगवान के चारों तरफ घुमाया जाता है जिससे मन प्रसन्न होता है और पूजा पूर्ण मानी जाती है।
आरती (आरती करने का सही तरीका) का अनुष्ठान ज्योति के प्रकाश से अंधकार को दूर कर देता है, धूपबत्ती से सुगंध आती है, आरती में घंटा बजाया जाता है, हाथों से ताली बजाई जाती है और एक विशेष आरती गाई जाती है। आरती हमें भगवान की महानता की याद दिलाती है, क्योंकि जिस ज्वाला को हम घुमाते हैं वह ब्रह्मांड का प्रतीक होती है।
पूजा के बाद आरती क्यों है जरूरी
किसी भी पूजा का समापन हमेशा आरती से किया जाता है जिससे पूजन का पूर्ण फल मिल सके। आरती इस बात का संकेत देती है कि पूजन समाप्त हो गया है और पूर्ण हो गया है। आरती के साथ हम अपनी और अपने साथ जुड़े लोगों की कुशलता की प्रार्थना करते हैं और ये भगवान् के प्रति निष्ठा दिखाने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है।
आरती को एक हिंदू अनुष्ठान माना जाता है जो एक भगवान के प्रति प्रेम दिखाने का एक आसान तरीका माना जाता है।
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आरती का महत्व
आरती व्यक्ति के आत्म बल को बढ़ाती है। परिवार के बीच एकता लाती है। यह मानसिक तनाव को दूर करती है और वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है। आरती के दौरान जब घी को प्रज्वलित किया जाता है तब वातावरण प्रकाशित होता है और सकारात्मक हो जाता है।
क्या है एक्सपर्ट की राय
ज्योतिषाचार्य डॉ आरती दहिया जी बताती हैं कि प्राचीन काल में हिन्दू आरती नहीं संध्यावाद करते थे। परन्तु फिर कुछ समय बाद पूजा का रूप विकसित हुआ। व्यक्ति की जिसमे श्रद्धा होती है वही करता है। पूजा किसी देवी-देवता की होती हैऔर आरती के कई प्रकार होते हैं जैसे मंगल आरती, पूजा आरती ,धूप आरती ,भोग आरती। पूजा के बाद आरती जरूरी होती है।
वास्तव में ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए पूजा और आरती दोनों ही अनुष्ठान जरूरी माने जाते हैं और दोनों को एक दुसरे से अलग बताया जाता है।
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