दहेज एक ऐसी कुरीति है, जिसके कारण कोई न कोई महिला प्रताड़ित होती है। स्टैटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट की ओर से दी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 भारत में दहेज हत्या के मामले लगभग सात हजार दर्ज किए गए थे। यह एक समामजिक समस्या है, जिसका निदान तभी संभव है, जब इसके विरुद्ध कड़ा कदम उठाया जाएगा।
हालांकि दहेज से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला लिया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दहेज हत्या के एक मामले में एक व्यक्ति और उसके पिता की सजा को बहाल करते हुए कहा, 'घर बनाने के लिए पैसे की मांग करना 'दहेज की मांग' है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के तहत अपराध है।' आखिर यह फैसला सुप्रीम कोर्ट को क्यों लेना पड़ा, आइए विस्तार से जानें।
क्या था मामला?
दरअसल मध्य प्रदेश की एक महिला ने दहेज उत्पीड़न से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी। बात यह थी कि महिला के ससुराल वाले घर बनाने के लिए पैसे का दबाव बना रहे थे। महिला का परिवार पैसे देने में असमर्थ था, इसी कारण परेशान होकर उसने आत्महत्या कर ली थी। इस मामले में निचली अदालत ने महिला के पति और ससुर को आईपीसी की धारा 304बी, 306 और 498ए के तहत दोषी ठहराया था। ऐसा पाया गया था कि आरोपी मृतक महिला से घर के निर्माण के लिए लगातार पैसे की मांग कर रहे थे और दबाव बना रहे थे। महिला का परिवार पैसे नहीं दे पा रहा था।
हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए दिया गया यह फैसला
निचली अदालत के बाद दोषी पति और ससुर ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह कहते हुए दोषसिद्धि और सजा के फैसले को खारिज कर दिया था कि मृतक ने खुद ही अपने परिवार से घर के निर्माण के लिए पैसे देने के लिए कहा था। हाई कोर्ट ने पाया कि आरोपियों के खिलाफ 304 बी के तहत अपराध साबित नहीं हुआ था, क्योंकि मृतक महिला से कथित तौर पर घर बनाने के लिए पैसे की मांग की गई थी, जिसे दहेज की मांग के रूप में महिला की मौत के उक्त कारण से नहीं जोड़ा जा सकता। सु्प्रीम कोर्ट की बेंच ने निचली अदालत के फैसले को सही माना है और हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपियों को दोषी ठहराकर सजा की बहाली कर दी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अभियोजन द्वारा रिकॉर्ड में लाए गए सबूतों को ध्यान में रखते हुए, उसे यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि ट्रायल कोर्ट का विश्लेषण सही था और प्रतिवादी धारा 304-बी और 498-ए आईपीसी के तहत दोषी ठहराए जाने के योग्य थे। इसके साथ ही चूंकि दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, उसे सुप्रीम कोर्ट ने 7 साल तक कर दिया, जो कि इस अपराध के लिए निर्धारित न्यूनतम सजा है (मैरिटल रेप को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का फैसला सवालों के घेरे में क्यों है?)।
इसे भी पढ़ें :हमें जवाब चाहिए MLA महोदय: ‘रेप’ पर कब तक करते रहेंगे 'Joke'?
दहेज को व्यापक अर्थ में वर्णित करना चाहिए
चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा 'दहेज' शब्द को एक व्यापक अर्थ के रूप में वर्णित किया जाना चाहिए, ताकि इसमें एक महिला से की गई किसी भी मांग को शामिल किया जा सके, चाहे संपत्ति के संबंध में हो या किसी भी तरह की मूल्यवान चीज के संबंध में।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद हमने सुप्रीम कोर्ट की ही सीनियर एडवोकेट कमलेश जैन से बात की, तो उन्होंने बताया, 'धारा 304 बी को भारतीय दंड संहिता, 1860 आईपीसी में जोड़ा गया था। इस जजमेंट के आने से पहले भी यही स्थिति थी और कोई अंतर नहीं था। किसी भी तरीके से चाहे वो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट पैसा मांगना हो, दहेज ही माना जाता है। ससुराल पक्ष का किसी भी तरह से पैसा मांगना गलत है और अपराध है।' दहेज जैसी कुरीतियों से जहां आज भी हमारा देश लड़ रहा है, वहां सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तारीफ के काबिल है, लेकिन अब भी इसके प्रति हमें कुछ जरूरी कदम उठाने बाकी हैं, ताकि फिर कोई महिला दहेज की सूली न चढ़े।
इसे भी पढ़ें :आखिर क्या है 'बुली बाई', हमारे देश में इतना आसान क्यों है महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार?
विधायिका के इरादे को विफल करने वाली व्याख्या न करें
हाईकोर्ट के फैसले पर असहमति जताते हुए पीठ ने कहा, विधायिका के इरादे को विफल करने वाली कानून के किसी प्रावधान की व्याख्या को इस पक्ष में छोड़ दिया जाना चाहिए कि वह सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए कानून के माध्यम से हासिल की जाने वाली वस्तु को बढ़ावा न दे। धारा-304 बी के प्रावधान समाज में एक निवारक के रूप में कार्य करने व जघन्य अपराध पर अंकुश लगाने के लिए हैं। पीठ ने आगे कहा, 'हमारे समाज में गहरी पैठ बना चुकी इस बुराई को मिटाने के कार्य को पूरा करने के लिए सही दिशा में एक पुश की आवश्यकता है। (अबॉर्शन को लेकर पास हुए नए एक्ट से जुड़ी खास बातें जानें)'
दहेज के ऊपर आया सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला काबिल-ए-तारीफ है। आप इस बारे में क्या सोचते हैं, हमें जरूर बताएं। यह लेख पसंद आया तो इसे लाइक और शेयर करें। ऐसे अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
Recommended Video
Image Credit: google searches
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों