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शनिदेव ने भगवान शिव पर क्यों डाली थी अपनी वक्र दृष्टि

आज हम आपको उस पौराणिक दिलचस्प कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जब शनिदेव की वक्र दृष्टि की चपेट में स्वयं भगवान शिव आ गए थे। 
Editorial
Updated:- 2023-01-06, 12:34 IST

Bhagwan Shiv and Shani Dev: हिन्दू धर्म में कई ऐसी पौराणिक कथाएं हैं जिनके बार में जानना बेहद रोचक हो सकता है। इन्हीं में से एक है शनिदेव और भगवान शिव की कथा।

हमारे ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि कैसे एक बार स्वयं महादेव शनिदेव की वक्र दृष्टि के चपेट में आ गए थे और उसके बाद जो हुआ वो हैरान कर देने वाला किस्सा था।

  • दरअसल, हुआ ये था कि एक बार शनिदेव भगवान शिव (भगवान शिव की 5 नाग बेटियां) के दर्शन के लिए उनके निवास स्थान कैलाश पहुंचे। वहां शनिदेव ने भगवान शिव के दर्शन किये, उन्हें प्रणाम किया और उन्हें बताया कि अगले दिन शनिदेव की दृष्टि उनकी राशि पर पड़ने वाली है।

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  • हालांकि, भगवान शिव जन्म, मरण, राशि, कुंडली आदि से परे हैं लेकिन यह उनकी ही एक लीला थी जिसके पीछे का उद्देश्य बेहद रहस्यमयी और संसार के हित में था। संसार को एक दिव्य संदेश देने के लिए ही ये प्रकरण रचा गया था।

bhagwan shiv

  • बहराल कथा पर पुनः लौटते हुए बता दें कि जब शनिदेव ने महादेव के सामने यह बात कही तो भगवान शिव ने शनिदेव से पूछा कि वह उनकी राशि में कितने समय के लिए रहेंगे और उनकी वक्र दृष्टि का प्रभाव कैसा होगा।
  • शनिदेव ने उन्हें विस्तार से अपनी वक्र दृष्टि के समय और प्रभाव के बारे में बताया। तब महादेव ने शनिदेव की दृष्टि से बचने के लिए एक युक्ति लगाई और अगले दिन शनिदेव के कैलाश पहुंचने से पहले ही वह पृथ्वी लोक पर आ गए।

lord shani

  • पृथ्वी लोक पर शनि देव उन्हें खोजते हुए न आ जाएं इसलिए भगवान शिव ने हाथी का रूप धर लिया और वक्र दृष्टि के समय तक प्रथ्वी पर उसी रूप में छिपे रहे। वक्र दृष्टि का समय पूर्ण हुआ तो भगवान शिव कैलाश की ओर लौट चले।
  • जैसे ही भगवान शिव कैलाश पर आए उन्हें वहां शनिदेव पूर्व से ही उपस्थित मिले। भगवान शिव ने शनिदेव को देखते ही उनकी दृष्टि से बचने की बात कह डाली। उन्होंने बोला कि शनिदेव (शनिदेव को क्यों चढ़ाया जाता है सरसों का तेल) में तो आपकी दृष्टि से आसानी से बच गया।

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  • तब शनिदेव ने महादेव को बताया कि उनकी दृष्टि के प्रभाव से ही महादेव को देव योनी से पशु योनी में हाथी के रूप में परिवर्तित होना पड़ा और कैलाश छोड़ धरती पर छुपना पड़ा। यह सुन भगवान शिव मुस्कुराए और शनिदेव को आशीर्वाद दिया।

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  • इस लीला को रचने के पीछे का उद्देश्य यह था कि शनिदेव की दृष्टि से कोई नहीं बच सकता है, भगवान भी नहीं और दूसरा यह कि अपने कर्म से या अपने दायित्व से कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए।

तो इस कारण से शनि देव ने भगवान शिव पर डाली थी अपनी वक्र दृष्टि। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर जरूर शेयर करें और इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ। आपका इस बारे में क्या ख्याल है? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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