बचपन में स्कूल से घर लौटकर, सबसे पहले हम 'मां' को ही ढूंढते थे। वैसे, मेरी आदत में तो आज भी कोई खास बदलाव नहीं आया है। ऑफिस से घर आकर, सबसे पहले, मैं 'मां' को ही आवाज लगाती हूं। बेशक, हम 90 के दशक में पैदा हुए बच्चे, अब बड़े हो चुके हैं और बचपन बस हमारी यादों में रह गया है। लेकिन, सच बताउं जब मैं मां के पास आती हूं, तो लगता है उनके लिए, आज भी मैं बचपन वाली 'गुड़िया' ही हूं। खैर, वक्त के लिहाज से तो हम बचपन से काफी आगे निकल गए हैं और मां के साथ भी अब हमारा रिश्ता और ज्यादा गहरा और प्यारा हो गया है। क्योंकि, अब हम और ज्यादा अच्छे से मां के प्यार को समझने लगे हैं।
आज के बच्चों के लिए, मां और उनका रिश्ता, बेशक थोड़ा ज्यादा मॉर्डन और डिफरेंट है, लेकिम हम 90S किड्स के लिए ये थोड़ा अलग है। मदर्स डे बस आने ही वाला है। तो, चलिए, इस खास मौके पर, मेरा हाथ थामकर जरा यादों के फ्लैक बैक टाउन का एक चक्कर लगाइए। अगर आप भी मेरी तरह 90 के दशक में पैदा हुए हैं, तो यकीन मानिए यह आर्टिकल आपको यादों के गलियारों में ले जाएंगे। मां का साथ, बचपन में बिताए ये खूबसूरत पल, आपको इमोशनल कर देंगे।
स्कूल मे क्लास टीचर ने क्या कहा..किसी टीचर ने शाबासी दी या नहीं...गेम्स पीरियड में क्या हुआ...लंच किस-किसके साथ खाया और ब्रेस्ट फ्रेंड स्कूल आई थी या नहीं, क्या आप भी मेरी तरह, स्कूल से घर आकर, अपनी मां को ये सारी बातें बताया करते थे? वैसे, हम 90S किड्स के लिए आज भी कुछ खास बदला नहीं है। स्कूल की जगह, अब ऑफिस हो गया है, लेकिन मां से गॉसिप शेयर करना तो परमानेंट है।
किचेन में मम्मी के आगे-पीछे घूमते हुए, अपने फेवरेट खाने के बनने का इंतजार करना और दुनिया-जहां की सारी बातें कह देना, ये तो बचपन में हमारा फेवरेट पास टाइम हुआ करता था। आजकल के बच्चों के पास, मोबाइल फोन से लेकर न जाने क्या-क्या चीजें हैं, जिनमें वो उलझे रहते हैं। लेकिन, 90 के दशक में ये चीजें ज्यादा नहीं थीं और इसलिए, आज हमारे पास यादें ज्यादा हैं।
सुबह सिर पर हाथ फेरते हुए, मां का स्कूल जाने के लिए उठाना भी हर किसी को याद होगा। हम में कुछ बच्चे उस वक्त, स्कूल जाने में ना-नुकुर करते थे, तो कुछ सुबह की नींद को बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहते थे। लेकिन, मां कभी दुलार से तो कभी डांटकर, हमें रोज तय समय पर स्कूल भेजती ही थीं।
अरे...आज के ये पिज्जा, बर्गर, नूडल्स, मोमोज या फिर और कुछ भी...उतना टेस्टी नहीं हो सकता है, जितना टेस्टी, मेरी मां चीनी का पराठा बनाया करती हैं। 90 के उस वक्त में, फैंसी फूड आइटम्स का इतना चलन भी नहीं था और ऐसे में मां के हाथ का चीनी वाला पराठा, पेट ही नहीं, मन भी खुश कर देता था।
दोपहर के वक्त जब हम स्कूल से आकर खाना खा लेते थे... मां हमें बाहर तेज धूप में खेलने जाने से रोका करती थीं और फिर बड़े प्यार से अपने पास सुला लिया करती थीं। मतलब नींद तो थक-हारकर आज भी आती है। लेकिन, उस दोपहर वाली नींद की बात की कुछ और थी।
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