Ashtayam Sewa: क्या होती है अष्टयाम सेवा? जानें इसका महत्व और नियम

आज हम आपको अष्टयाम सेवा के महत्व और उसके नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं।   

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Ashtayam Sewa: हिन्दू धर्म में अष्टयाम सेवा का अत्यधिक महत्व है। यूं तो अष्टयाम सेवा किसी भी देवी-देवता की हो सकती है लेकिन कृष्ण पूजन में अष्टयाम सेवा का अधिक प्रचलन है। हमारे ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स का कहना है कि मां यशोदा कन्हैया को दिन के आठों प्रहर भोजन कराती थीं इसी कारण से कृष्ण पूजा में अष्टयाम सेवा का विधान स्थापित हो गया। तो चलिए जानते हैं अष्टयाम सेवा के महत्व और उससे जुड़े नियमों के बारे में।

क्या होती है अष्टयाम सेवा?

हिन्दू धर्म के अनुसार, दिन के 24 घंटे में आठ प्रहर होते हैं। इन्हीं आठों प्रहर में भगवान की सेवा की जाती है। अष्टयाम सेवा मुख्य रूप से श्री कृष्ण के बाल स्वरूप यानी कि लड्डू गोपाल की होती है। अष्टयाम सेवा के इन आठ प्रहरों का नाम कुछ इस प्रकार है- मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती और शयन।

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क्या है अष्टयाम सेवा का महत्व?

माना जाता है कि अष्टयाम सेवा करने से लड्डू गोपाल शीघ्र प्रसन्न होते हैं।अष्टयाम सेवा से व्यक्ति के रोग, दोष, दुख-संताप, पाप और व्याधियों का अंत होता है। अष्टयाम सेवा करने से दिन के आठ प्रहर व्यक्ति भक्ति में लीन रहता है जिससे उसके भीतर मौजूद नकारात्मकता स्वतः ही समाप्त होने लगती है।

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क्या है अष्टयाम सेवा की विधि?

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  • मंगला सेवा: यह सेवा दिन के शुरुआत में सबसे पहले होती है जिसमें भगवान को जगाया जाता है। उन्हें भोग लगाया जाता है और फिर आरती की जाती है।
  • श्रृंगार सेवा: इस सेवा में भगवान का जलाभिषेक किया जाता है और उन्हें पंचामृत से स्नान कराया जाता है। भगवान को नए वस्त्र पहना कर उनका श्रृंगार किया जाता है।
  • ग्वाल सेवा: इस सेवा में भगवान को खाने की कुछ चीजें पोटली में बांधकर दी जाती हैं, इस भाव के साथ कि प्रभु अपने भ्रमण पर जा रहे हैं और रास्ते में भूख लगने पर कुछ खा लेंगे।
  • राजभोग सेवा: इस सेवा को करने के पीछे का मंतव्य यह होता है कि भ्रमण से प्रभु लौट आए हैं और उन्हें अत्यधिक भूख लगी होगी तो ऐसे में उन्हें 56 भोग लगाए जाएं।
  • उत्थापन सेवा: इस इव के दौरान भगवान की आरती उतारी जाती है। इसके पीछे का भाव यह होता है कि भगवान पूरी सृष्टि में घूमें हैं और उनके सुंदर रूप को देख कहीं किसी की नजर उन्हें न लग जाए जिसे उतारने के लिए आरती की जाती है।
  • भोग और शयन सेवा: इस सेवा में भगवान को शाम को दूध का भोग लगाना (लड्डू गोपाल को भोग लगाने की विधि), रात्रि का भोजन और निद्रा शयन तीनों प्रहर के काम शामिल हैं।

क्या है अष्टयाम सेवा के नियम?

ashtayam seva ki vidhi

  • अष्टयाम सेवा करने के कुछ नियम भी हैं जिनका पालन आवश्यक माना जाता है।
  • अष्टयाम सेवा करते समय में सेवा के साथ साथ ईश्वर के प्रति प्रेम भाव होना चाहिए।
  • अष्टयाम सेवा करते समय शुद्धता का पूर्ण रूप से ध्यान रखना चाहिए।
  • अष्टयाम सेवा करते समय भगवान को बासी भोजन नहीं खिलाना चाहिए।
  • अष्टयाम सेवा आसन पर बैठकर ही करनी चाहिए।

तो ये था अष्टयाम सेवा का महत्व, विधि और नियम। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर जरूर शेयर करें और इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ। आपका इस बारे में क्या ख्याल है? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

Image Credit: Shutterstock, Herzindagi

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