सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक संबंधों पर लगा प्रतिबंध हटा सकता है। अगर ऐसा होता है तो इसके भारतीय समाज पर दूरगामी प्रभाव होंगे। देश में समलैंगिकों के अधिकारों को लेकर होने वाले आंदोलन पिछले कुछ सालों में काफी ज्यादा बढ़े हैं। हालांकि पश्चिमी देशों में समलैंगिकों के संबंध में काफी तरक्की हो गई है, लेकिन भारत में अभी भी वयस्क समलैंगिक संबंधों पर प्रतिबंध है। समलैंगिकों के हक में फैसला आने पर इसका ना सिर्फ समलैंगिकों पर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि दूसरे कॉमनवेल्थ देशों में भी इसका असर होगा, जहां 150 सालों से विक्टोरियाई कानून प्रचलन में हैं।
पिछले हफ्ते ही समलैंगिगता को अपराध के तहत लाने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को रद्द करने की मांग पर पांच न्यायाधीशों की सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ की सुनवाई शुरू हुई थी। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच तय करेगी की समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में रखा जाए अथवा नहीं। सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीश चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, आरएफ नरीमन, ए एम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पांच सदस्यीय बैंच के सामने उपनिवेशीय समय के कानून की पेचिदगियों को खत्म करने का मौका है, साथ ही वे अपने फैसले के जरिए समलैंगिकों को स्वतंत्र रूप से जीने और सुरक्षित रहने के हक में भी फैसला सुना सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार की तरफ से भी स्पष्ट कर दिया गया है कि वे इस मामले को पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ रहे हैं और उनके फैसले का विरोध नहीं करेंगे। ऐसी स्थितियों में इस बात की पूरी उम्मीद की जा रही है कि समलैंगिकों के संबंधों को डीक्रिमिनलाइज कर दिया जाएगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई को स्थगित करने से इनकार कर दिया था।
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केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, 'मैं इस मुद्दे पर चर्चा करने की प्रक्रिया में हूं, धारा 377 कानून का सवाल है। तुषार मेहता ने कहा, 'यह मामला धारा 377 तक सीमित रहना चाहिए। इसका शादी और संभोग के मामलों पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।'
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि यह मामला केवल धारा 377 की वैधता से जुड़ा हुआ है। शादी या दूसरे नागरिक अधिकारों से इसका कोई लेना-देना नहीं है। वे अलग बहस का विषय हैं।
इससे पहले, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने धारा 377 को खत्म करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर कहा कि यह सामान्य बात नहीं है। हम इसका जश्न नहीं मना सकते। यह हिंदुत्व के खिलाफ है। अगर यह ठीक हो सकता है तो हमें मेडिकल रिसर्च में निवेश करना चाहिए।
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