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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, अडल्टरी कानून कमजोर करने पर खत्म हो जाएगी शादी की संस्था

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए अपने जवाब में कहा है कि एडल्टरी कानून को भारतीय संस्कृति को ध्यान में रखकर बनाया गया है और इसे कमजोर करने से शादी जैसी संस्था खत्म हो जाएगी।
Her Zindagi Editorial
Updated:- 2018-07-12, 17:10 IST

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अडल्टरी कानून के तहत फिलहाल कानूनी प्रावधान है, उससे शादी जैसी संस्था की सुरक्षित है। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से उस याचिका को खारिज करने की मांग की है, जिसमें धारा-497 के वैधता को चुनौती दी गई है। केंद्र ने कहा कि इस कानून को कमजोर करना शादी जैसी संस्था के लिए हानिकारक होगा। दरअसल एक याचिकाकर्ता की तरफ दाखिल की गई अर्जी में कहा गया है कि आईपीसी की धारा 497 के तहत अडल्टरी (विवाह से बाहर संबंध बनाना) के मामले में पुरुषों को दोषी पाए जाने पर सजा दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन महिलाओं को नहीं, ऐसे में यह कानून भेदभावपूर्ण है और इस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया जाए। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सामाजिक बदलाव के मद्देनजर, जेंडर इक्वॉलिटी और इस मामले में दिए गए पहले के कई फैसलों के फिर से मूल्यांकन की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने मामले को पांच जजों की संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया था और केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा था। 

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केंद्र ने की याचिका खारिज करने की मांग

केंद्र सरकार की तरफ से दाखिल हलफनामे में याचिका खारिज करने की मांग की गई है और कहा गया कि धारा-497 शादी जैसी संस्था को मजबूत बनाता बनाता है और उसे सुरक्षा देता है। इस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जबकि विधायिका ने इसे अपने विवेक का इस्तेमाल कर बनाया है ताकि शादी जैसी संस्था को सुरक्षित किया जा सके। ये कानून भारतीय सामाजिक संस्कृति को देखकर बनाया गया है। 

आईपीसी की धारा-497 के प्रावधान के तहत पुरुषों को अडल्टरी का दोषी माना जाता है जबकि महिला पीड़ित मानी गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता का कहना है कि महिलाओं को अलग तरीके से नहीं देखा जा सकता, क्योंकि आईपीसी की किसी भी धारा में लिंग के आधार पर विषमता देखने को नहीं मिलती।

महिलाओं के हक में है एडल्टरी कानून

वुमन राइट एक्टिविस्ट रंजना कुमारी का कहना है, 'भारत में पुरुष प्रधान समाज है, जिसमें महिलाएं अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर पातीं। भारतीय समाज में अहम फैसले पुरुषों के हिसाब से होते हैं। शादियां भी घर के पुरुषों और बड़े बुजुर्गों की मर्जी से होती हैं। लव मैरिजेज़ की संख्या देश में अभी भी कम है। जब महिलाएं अपनी मर्जी से शादी नहीं कर रही हैं तो एडल्टरी कानून के तहत उन्हें शादी से बाहर जाने के लिए दंडित करना तर्कसंगत नहीं है। हमारे देश में औरतों के द्वारा एडल्टरी की आशंका बहुत ज्यादा नहीं है, जबकि पुरुषों में यह संख्या कहीं ज्यादा है। अगर महिलाएं शादी से बाहर जाती हैं तो तलाक का प्रावधान है, पति महिला से अलग होने का विकल्प चुन सकते हैं। हम केंद्र सरकार के रुख का समर्थन करते हैं कि वे देश की महिलाओं की वास्तविक स्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट से इस कानून को कमजोर ना किए जाने की अपील कर रहे हैं।  

 

लॉ कमिशन देख रहा है मामला 

लॉ कमिशन इस मामले की जांच कर रहा है और उसकी फाइनल रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। इस कानून में अगर लैंगिक समानता के आधार पर अगर महिलाओं पर भी एडल्टरी का केस चलाया जाएगा तो शादी जैसी संस्था कमजोर होगी और रिश्तों में दूरियां बढ़ेंगी। इस बाबत मालीमथ कमिटी की रिपोर्ट आई थी जिसने कहा था कि इस कानून का मकसद है कि शादी जैसी संस्था को बचाना। इसके मद्देनजर इस अर्जी को खारिज करने की मांग उठ रही है। 

याचिकाकर्ता की मांग धारा 497 हो खत्म 

अडल्टरी से संबंधित कानूनी प्रावधान को गैर संवैधानिक करार दिए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था। अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी और शादीशुदा महिला के साथ उसकी सहमति से संबंधित बनाता है तो ऐसे संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ उक्त महिला का पति अडल्टरी का केस दर्ज करा सकता है, लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ मामला दर्ज करने का प्रावधान नहीं है। महिला और पुरुषों के लिए अलग प्रावधान को याचिकाकर्ता ने भेदभाव वाला करार दिया और उसे असंवैधानिक घोषित करने की मांग की। याचिकाकर्ता ने कहा है कि पहली नजर में धारा-497 संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है। अगर महिला और पुरुष दोनों आपसी रजामंदी से संबंध बनाते हैं तो महिला को उसके दायित्वों से कैसे छूट दी जा सकती है। याचिका में कहा गया है कि ये धारा पुरुष के खिलाफ भेदभाव वाला है। याचिका में कहा गया है कि ये संविधान की धारा-14 (समानता का अधिकार), 15 और 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करता है। 

 

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