शादी के बाद महिलाओं को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। घर-परिवार की छोटी-छोटी जिम्मेदारियां निभाना, ससुराल में परिवार के सदस्यों का ख्याल रखना, रिश्ते निभाना, पति के साथ रिश्ते मजबूत बनाना, ये सभी चीजें अपने आप में काफी अहमियत रखती हैं। कई बार देखने में आता है कि इन-लॉज के साथ रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है। घर-परिवार में ऐसा होना बहुत स्वाभाविक सी बात है, लेकिन लंबे दौर में संबंधों को बेहतर बनाने के लिए बहुत जरूरी है कि आप अपने ससुराल वालों को साथ रिश्तों में गर्मजोशी हो। हालांकि आज के समय में बढ़ती व्यवस्तता और ऑफिस के कामकाज के साथ घर-परिवार में समय देना और परिवार को खुश रखना बहुत आसान काम नहीं है, लेकिन फिर भी अगर ससुराल वालों के साथ समझबूझ से रहा जाए तो इससे महिलाओं को कई तरह की सहूलियतें और मजबूती मिलती है। आइए जानें ससुराल वालों के साथ रहना कैसे है फायदेमंद-
स्नेह का बंधन
ससुराल में चाहें सास हों या ससुर, ननद हों या देवर, हर किसी को अच्छा लगता है कि उन्हें प्यार और सम्मान दिया जाए और उनकी छोटी-छोटी खुशियों का खयाल रखा जाए। अगर आप इस बारे में सजग रहती हैं तो आपको घर-परिवार में कभी अकेला महसूस नहीं होगा और परिवार भी आपकी जरूरतों का बखूबी खयाल रखेगा।
मिलता है समस्याओं का हल
शादी हो जाने के बाद सार्वजनिक जीवन से लेकर पर्सनल लाइफ तक कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई बाहर मुश्किलें ऐसी भी होती हैं, जिनका अकेले हल निकालना मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में अगर परिवार के सदस्यों से चर्चा की जाए तो बहुत आसानी से उनके हल निकल आते हैं। कई बार सास-ससुर अपने तजुर्बों से ऐसे सुझाव भी देते हैं, जिन्हें अपनाना बेहद आसान होता है और मुश्किल तुरंत आसान हो जाती है। मसलन बच्चे की परवरिश की बात हो या पड़ोसियों से डील करने का तरीका, इस बारे में परिवार के लोगों से सुझाव लेकर उन पर अमल किया जा सकता है।
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मनोबल रहता है मजबूत
अक्सर चैलेंजेस का सामना करते हुए महिलाएं तनाव में आ जाती हैं या परेशान होने लगती हैं, लेकिन ससुराल के सदस्यों के साथ रहते हुए( रिश्ते मजबूत बनाने के टिप्स ) अपनी बातें शेयर करने का मौका मिलता है। परिवार के सदस्यों के साथ रहते हुए महिलाएं घर के सभी छोटे-बड़े सदस्य के साथ आत्मीयता का बंधन जोड़ती हैं। इससे वे मेंटली स्ट्रॉन्ग फील करती है और व्यक्तिगत रूप से भी मजबूत महसूस करती हैं। उनकी यह ताकत उन्हें आगे बढ़ने का हौसला भी देती है।
परंपरा और रीति-रिवाज से होता है साथ होने का अहसास
न्यूक्लियर फैमिली में होने पर भले ही महिलाएं अपनी तरह से रहने के लिए स्वतंत्र होती हैं। लेकिन परिवार की परंपराएं और रीति-रिवाजों का पालन करते हुए परिवार के साथ होने का अहसास होता है। साथ में त्योहार मनाना और रीति-रिवाजों का पालन करना पूरे परिवार को एकता के सूत्र में बांध देता है। बच्चे होने पर उन्हें भी घर-परिवार की परंपराएं पता चलती हैं, जिससे उनके लिए अपने कल्चर को समझना आसान हो जाता है।
बच्चे की होती है बेहतर परवरिश
न्यूक्लियर फैमिली में मां के लिए बच्चे की परवरिश ( पेरेंटिंग के 5 इफेक्टिव टिप्स )करना काफी ज्यादा चैलेंजिंग होता है। बच्चा नई-नई चीजें जानना और समझना चाहता है, वह घूमना चाहता है, चीजों को करके सीखना चाहता है, लेकिन इन सब चीजों के लिए न्यूक्लियर फैमिली में मां को बच्चे पर हर वक्त ध्यान देना पड़ता है। जबकि ससुराल में रहते हुए बच्चे को दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ, सभी का प्यार और लाढ़-दुलार मिलता है। बच्चा इन सबके साथ खेलता-कूदता है और ढेर सारी बातें करता है। बच्चे के साथ होने पर परिवार के सदस्य भी पॉजिटिवली एंगेज रहते हैं और घर में हंसी-खुशी का माहौल बना रहता है।
परिवार के लोग बच्चे के सवालों का संजीदगी से जवाब देते हैं, उसे अच्छे-बुरे की सीख देते हैं, अच्छा व्यवहार सिखाते हैं और सामाजिक होने में मदद करते हैं। इन सभी चीजों का बच्चों पर बहुत अच्छा असर होता है, जिससे मां को बच्चे की देखभाल के लिए बहुत परेशान होने की जरूरत महसूस नहीं होती।
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All Images Courtesy: Imagesbazaar
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