भगवान गणेश को पूजा देवों में सबसे पहले की जाती है। विघ्नहर्ता गणेश जी की आराधना करने पर पुण्य फल मिलता है। माना जाता है कि गणेश जी की कृपा हो तो हर मुश्किल टल जाती है और बड़े से बड़ा कार्य शांतिपूर्वक संपन्न हो जाता है। भारतीय पौराणिक कथाओं में भगवान गणेश को सद्बुद्धि देने वाला माना जाता है। पूरे देश में गणेश चतुर्थी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है और महाराष्ट्र में विशेष रूप से इसकी धूम मची रहती है। महाराष्ट्र में गणेश जी की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं महीनों पहले से तैयार की जाती हैं और बड़े-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं। मुंबई में यह कार्यक्रम 10 दिनों तक जोर-शोर से चलता है।
भगवान गणेश इसलिए कहलाते हैं बुद्धि के दाता
एक बार पार्वती और शिव जी के पास ज्ञान का फल था, जिसे उनकी संतानें कार्तिकेय और गणेश दोनों लेना चाहते थे। भगवान शिव ने उनके सामने एक चुनौती रखी। उन्होंने दोनों को दुनिया की तीन बार परिक्रमा करने और इसके बाद लौटकर आने को कहा। साथ ही ये भी बोला कि जो पहले लौटेगा, उसे यह फल मिलेगा। इस पर कार्तिकेय अपने मोर पर सवार होकर निकल पड़े, लेकिन गणेश जी वहीं अपने छोटे से चूहे पर सवार रहे।
गणेश जी ने अपने माता-पिता के तीन चक्कर लगाए और कहा कि पूरी दुनिया उनके चरणों में ही तो है। शिव और पार्वती उनके उत्तर से प्रसन्न हो गए और इस प्रकार गणेश जी को ज्ञान के फल की प्राप्ति हो गई।
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क्यों गणेश जी कहलाए 'एकदंत'?
एक बार गणेश जी भगवान शिव के द्वार की पहरेदारी कर रहे थे, तभी वहां संन्यासी परशुराम आ गए। जब गणेश जी ने उन्हें रोक लिया तो परशुराम नाराज हो गए। अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध परशुराम ने अपनी तलवार निकाली और गणेश जी से लड़ना शुरू कर दिया। गणेश जी ने परशुराम से युद्ध करते हुए अपना एक दंत गंवा दिया और इसके बाद वह एकदंत कहलाए।
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जब चंद्रमा को गणेश जी के क्रोध का सामना करना पड़ा
एक बार गणेश जी कुबेर देवता के घर पर थे और उनका पेट इतना ज्यादा भर गया था कि उनके लिए चलना भी मुश्किल हो रहा था। इस पर वह अचानक लुढ़क कर गिर गए। दंत कथा के अनुसार चंद्रमा यह सब देख रहे थे और उन्होंने हंसना और गणेश जी का मजाक बनाना शुरू कर दिया। इस पर गणेश जी क्रोधित हो गए। उन्होंने चद्रमा को श्राप दे दिया कि वह काला पड़ जाएगा और नजर आना ही बंद हो जाएगा। अपनी गलती का अहसास होने पर उन्होंने गणेश जी से क्षमा याचना की। इस पर गणेश जी ने कहा कि चंद्रमा 15 दिन में गायब होकर फिर से नजर आएंगे।
इस तरह शुरू हुई सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा
गणेश जी एक बार स्वर्गलोक के द्वार की रक्षा कर रहे थे और तब सभी लोग भगवान विष्णु की शादी में शामिल होने के लिए गए हुए थे। इस दौरान वहां नारद मुनि आए और उन्होंने गणेश जी से कहा कि उन्हें इसलिए न्योता नहीं दिया गया क्योंकि वह मोटे हैं और बहुत ज्यादा खाते हैं। इस पर गणेश जी नाराज हो गए और उन्होंने शादी होने वाली जगह पर अपनी चूहों की सेना भेज दी। चूहों ने बारात जाने वाले रास्ते को भीतर से खोद दिया, जिससे रथों के पहिए अटक गए। यहां पहियों को धरती से बाहर करने के लिए भगवान नहीं थे, इसीलिए पास जाते एक व्यक्ति से मदद मांगी गई। इस व्यक्ति ने गणेश जी का नाम लिया और पहिया जमीन से बाहर निकल गया। इस पर वहां खड़े भगवानों ने उस व्यक्ति से पूछा कि तुम गणेश जी की पूजा क्यों करते हो तो उसने कहा कि गणेश जी सभी विघ्नों को हर लेते हैं। इस पर सभी देवताओं को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने अपने व्यवहार के लिए गणेश जी से क्षमा मांग ली।
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