Chhath Puja Facts in Hindi: बिहार का प्रमुख त्योहार छठ महापर्व 17 नवंबर से शुरू हो गया है। हर साल यह त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि को समाप्त होता है। यह महापर्व छठी मैया और सूर्य देव को समर्पित है। इस पर्व में व्रत करने वाले लोग 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं। इस छठ व्रत को सभी व्रतों में कठिन माना गया है। बेटे और परिवार की खुशहाली एवं समृद्धि के लिए इस व्रत को घर की महिला रखती है। इस पर्व और व्रत को लेकर यह भी मान्यता है कि जो कोई भी सच्चे मन से छठी मैया के व्रत को करता है उसकी सभी मनोकामनाएं भगवान सूर्य देव और छठी मैया पूरा करते हैं। बहुत से लोग इस व्रत और पर्व से अनजान हैं, इसलिए आज हम छठ महापर्व से जुड़ी 10 बातें आपको बताएंगे।
छठ महापर्व चार दिनों का होता है, जिसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है और दूसरे दिन खरना के भोजन में रसियाव रोटी ग्रहण करने के साथ व्रत शुरू होता है। भोर अर्घ्य के बाद छठ व्रत का पारण होता है।
चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में सूर्य देव, उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा, सूर्य देव की बहन छठी मैया की पूजा होती है। मान्यता है कि सूर्य भगवान को अर्घ्य देने और उनकी पूजा करने से मनुष्य का मान सम्मान बढ़ता है और जीवन में तरक्की मिलती है।
शास्त्रों के अनुसार छठी मैया को संतानों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। संसार की रचना के वक्त प्रकृति को 6 भाग में बांटा गया था, जिसके छठवें अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना गया और इसी छठे अंश को ही छठी मैया के रूप में पूजा गया। छठी मैया को ब्रह्म देव की मानस पुत्री भी कहा जाता है।
शास्त्रों में सूर्योदय के सूर्य के पूजन का विधान बताया गया है, लेकिन छठ पूजा में डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य को लेकर यह मान्यता है कि जो डूब गया है उसका उदय होना निश्चित है।
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महाभारत में माता कुंती के पुत्र को सूर्य पुत्र कहा गया है साथ ही माता कुंती को सूर्य उपासना के बाद ही शक्तिशाली पुत्र कर्ण की प्राप्ति हुई थी। सूर्य पुत्र होने के कारण कर्ण अपने पिता भगवान सूर्य की उपासना करते थे। पौराणिक कथा के अनुसार कर्ण रोजाना पानी में खड़े होकर सुर्य को अर्घ्य दिया करते थे। कर्ण की श्रद्धा भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें महान योद्धा होने का आशीर्वाद दिया था।
व्रत के पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है, इस दिन नमक का सेवन वर्जित रहता है। नहाय खाय के लिए बनने वाले कद्दू भातको नहा धो कर शुद्ध एवं नए कपड़े पहन कर लौकी की सब्जी और चावल को नए चूल्हे में बनाकर पूजन के बाद खाया जाता है।
छठ के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है, इस दिन सूर्य के डूबने के बाद दूध, गुड़ और चावल से रसियाव और रोटी बनाया जाता है। रसियाव और रोटी का भोग लगाकर पूजा किया जाता है और इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती व्रत रखना प्रारंभ करते हैं।
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शास्त्रों में छठ पूजा के दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, इस अर्घ्य के दौरान सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं। मान्यता है कि प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। छठ के दिन प्रसाद के लिए ठेकुआ बनाया जाता है और अर्घ्य के दौरान सूप में छठी मैया के प्रिय फल और सब्जी को रखकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।
छठ के दूसरे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। भोर में उगते वक्त सूर्य देव अपनी पत्नी उषा के साथ होते हैं। उषा को अर्घ्य देने को लेकर मान्यता है कि परिवार की खुशहाली बनी रहती है और वंश वृद्धि का वरदान मिलता है। उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ का पूजन व्रत संपन्न होता है।
छठ पूजा के पारण में व्रत खोलने के लिए पूजा में चढ़ाया हुआ प्रसाद जैसे ठेकुआ और फल खाया जाता है। फिर कच्चा दूध पीकर व्रत खोला जाता है। प्रसाद खाकर ही पारण किया जाता है और इससे ही व्रत को संपन्न माना जाता है।
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Image Credit: shutterstocks
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