यकीनन जब भी डबल ब्यूटी स्टैंडर्ड्स की बात की जाती है तो बहुत सारे लोग अपने दिमाग में बहुत सारी बातें रखते हैं। जहां भी बात ऐसा कोई टॉपिक सामनेआता है वहां लगता है कि हम तो जी बहुत लिब्रल हैं, लेकिन क्या वाकई हम बॉडी पॉजिटिवी को एक्सेप्ट कर चुके हैं। आज एक क्रीम का एडवर्टिज्मेंट भी कुछ ऐसा आता है कि हम खुद अपनी बॉडी के बारे में सोचने लग जाते हैं। एक लड़की को, एक महिला को यहां तक कि कई बार लड़कों को भी रोज़ न जाने कितनी चीज़ों को सुनना और समझना पड़ता है। रिश्तेदारों का मिलकर ये कहना कि 'तुम तो बहुत मोटी हो गई हो, या बहुत पतली हो गई हो, काली हो गई हो, बाल छोटे क्यों करवा लिए, ये कैसा रंग पहना हुआ है' जैसे ये सारे सवाल बहुत पूछे जाते हैं, क्या इसे हम बॉडी पॉजिटिविटी कहेंगे या फिर ब्यूटी के डबल स्टैंडर्ड्स?
हर जिंदगी के खास Shespeaks Dialogues सेशन में बॉडी पॉजिटिविटी और डब ब्यूटी स्टैंडर्ड्स पर बात की दो सशक्त महिलाओं ने जिन्हें समाज की बंदिशें नहीं रोक पाईं और न ही उन्होंने अपने इरादों को समाज के तानों या फेक ब्यूटी स्टैंडर्ड्स से कमजोर होने दिया। हमारे इस खास सेशन में डॉक्टर फाल्गुनी वसावड़ा शामिल हुईं जो सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर हैं, TedX स्पीकर हैं, डबल गोल्डमेडलिस्ट हैं, दो दशकों से एडवर्टाइजिंग पढ़ा रही हैं और एक बेमिसाल महिला हैं। हमारी दूसरी स्पेशल गेस्ट थीं प्लम्प इज प्रिटी ब्लॉग की नीलाक्षी सिंह जो प्लस साइज मॉडल हैं, कंटेंट क्रिएटर हैं, ब्लॉगर हैं, पर्ल अकादमी में 4 साल से पढ़ा रही हैं और बॉडी पॉजिटिविटी की मिला हैं।
सेशन की शुरुआत हुई एक खास सवाल से कि जो इन दोनों ही महिलाओं से पूछा गया और वो ये था कि, 'आपके हिसाब से खूबसूरती की परिभाषा क्या है?' इस सवाल का जवाब वाकई काबिले तारीफ था।
डॉक्टर फाल्गुनी ने अपने जवाब की शुरुआत में कहा कि, 'मुझे लगता है कि ब्यूटी वो है जो आप महसूस करते हैं। तो मैं हर किसी को खूबसूरत कहूंगी जो खुद को खूबसूरत महसूस करता है, अपने शरीर और अपने सफर को इज्जत देता है। खुद को पहचानना एक सुपरपावर है। आपको किसी और के जैसा लगने की जरूरत नहीं है।'
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इसी सवाल के जवाब में नीलाक्षी ने भी ये कहा कि, 'अगर आपमें बात करने की तमीज नहीं तो आप खूबसूरत नहीं हो सकते। आप खूबसूरत अपनी तरह से हो सकते हैं जैसे आप बोलते हैं, जैसे आप महसूस करते हैं।'
इस सेशन में कई सारे गंभीर विषयों पर बात की गई।
प्लस साइज लोगों के लिए कपड़ों की क्यों होती है दिक्कत?
हमारे देश में प्लस साइज लोगों के कपड़े XXL तक आकर खत्म होने लगते हैं और XXXL काफी मुश्किल से मिलता है। पर विदेशों में तो ये 5XL-6XL तक जाता है जहां उनके साइज के कपड़े भी रेडीमेड मिलते हैं। डॉक्टर फाल्गुनी का कहना था कि उन्हें ये जानकर आश्चर्य हुआ कि इतने बड़े साइज के कपड़े भी रेडीमेड मिलते हैं। नीलाक्षी का भी यही कहना था कि जिस देश में XXL से ऊपर कपड़े मिलने में समस्या होती है वहां पर ब्यूटी स्टैंडर्ड्स के बारे में बात करने के लिए काफी कुछ है। नीलाक्षी Vogue की मॉडल रह चुकी हैं और उन्हें भी ये लगता है कि भारत में ये गलत होता है।
प्लस साइज मॉडलिंग में मॉडल की पसंद भी मायने रखती है-
भारत में मॉडलिंग और खासतौर पर प्लस साइज मॉडल्स के लिए स्विम सूट आदि सेशन रखे जाते हैं, लेकिन नीलाक्षी ने अपना एक्सपीरियंस शेयर किया कि विदेशों में मॉडल्स की च्वॉइस भी मायने रखती है और उनसे भी पूछा जाता है कि वो किसमें कंफर्टेबल हैं। ये बहुत अच्छी बात है जो अक्सर लोग भूल जाते हैं।
मेन स्ट्रीम मीडिया और फिल्मों में ब्यूटी की परिभाषा ही गलत है-
हमारी चर्चा के बीच एक बहुत अहम मुद्दा सामने आया और वो ये था कि मेन स्ट्रीम मीडिया में टैलेंटेड एक्ट्रेस को भी उसके वजन, ब्यूटी और फिटनेस को लेकर परिभाषित किया जाता है और वो हिरोइन की सहेली या फिर कोई साइड कैरेक्टर का रोल दिया जाता है। कभी भी कोई सांवली लड़की A ग्रेड एक्ट्रेस के रोल में फिट नहीं बैठ पाती है।
नीलाक्षी का भी कहना था कि जब उनका वजन बढ़ना शुरू हुआ तो उन्हें ये अच्छा नहीं लगता था कि वो कैसी लग रही हैं। उन्होंने खाने के बाद उल्टी करना, नमक का पानी पीना और न जाने क्या-क्या करना शुरू कर दिया और उन्हें पता भी नहीं था कि उन्हें ईटिंग डिसऑर्डर हो रहा है। उन्हें लोग कहते थे कि खाना पीना बंद करो, कम खाओ, वगैराह ये सब मानसिक तौर पर बहुत परेशान करता था। मीडिया का जो रिप्रेजेंटेशन है जिस तरह लोग दिखते हैं उनपर भी कमेंट किया जाता है, आंखें खराब हैं तो चश्मा लगाने में भी दिक्कत है तो ये सब कुछ सही नहीं है।
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एडवर्टाइजिंग में महिला को बेइज्जत कर फिर प्रोडक्ट क्यों बेचा जाता है?
हमारे इस सेशन में एडवर्टाइजिंग के बारे में भी बात हुई जहां डॉक्टर फाल्गुनी वसावड़ा एडवर्टाइजिंग पढ़ाती हैं वहां उनका इस विषय में कहना था कि, 'यकीनन ये होता है और क्यों नहीं होगा क्योंकि ये आसान स्ट्रैटजी है और इससे उन्हें मुनाफा भी बहुत मिल रहा है। बहुत ही कम ऐसे ब्रांड्स होंगे जो इस तरह की एडवर्टाइजिंग नहीं करते।' यकीनन हमेशा से ही ऐसे एड्स देखे जा रहे हैं कि जो लड़की गोरी, पतली, लंबी होगी तो उसे सब कुछ अच्छा मिलेगा। प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए ये दिखाया जाता है कि किसी एक प्रोडक्ट से लड़की का रंग-रूप बदला और उसकी किसम्त बदल गई।
हमारा ये सेशन बहुत ही ज्यादा इंटरेक्टिव रहा और महिलाओं के सशक्तिकरण और डबल ब्यूटी स्टैंडर्ड्स पर लंबी चर्चा हुई। ये सेशन वाकई कई लोगों की आंखें खोल सकता है जिन्हें लगता है कि खूबसूरती की कोई तय परिभाषा है।
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