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Women's Day 2024: कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने की ऑल इंडिया विमेंस कॉन्फ्रेंस की स्थापना,जानें पूरी कहानी

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,सामाजिक कार्यकर्ता, कला प्रेमी, राजनीतिक और फेमिनिस्ट कमला देवी उपाध्याय चुनाव लड़ने वाली पहली महिला थी। जानिए कमला देवी के दिए गए योगदान के बारे में। <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2024-02-28, 17:57 IST

Kamaladevi Chattopadhyay: देश को ब्रिटिश शासन से आजाद कराने के लिए न केवल पुरुषों ने अहम भूमिका निभाई बल्कि महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया। 1920 का दशक वह समय था जब महिलाएं घरों का घर से निकालना मुश्किल हुआ करता था उस वक्त कमला देवी का रूझान राजनीतिक करियर की ओर था। साल 1923 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ने के लिए कमलादेवी लंदन से भारत  आ गई थी। कांग्रेस के सेवादल जुड़ कर कमाल देवी ने कजन्स की संस्था विमेंस कॉन्फ्रेंस के महासचिव पद की जिम्मेदारी संभाली। इस पहल से महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला।

कमला देवी का जीवन परिचय

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कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जन्म साल 1903 को एक सारस्वत परिवार में हुआ था। कमला देवी के पिता का नाम मैंगलोर थे जो जिला कलेक्टर थे। उनकी मां कर्नाटक के धनी परिवार से ताल्लुक रखती है। कमला देवी की शादी 14 साल की उम्र में कृष्णा राओ से कर दी गई थी। पहले पति के निधन के बाद कमलादेवी ने साल 1920 में महान कवयित्री सरोजिनी नायडू के भाई हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय से के थी। आपको बता दें कि कमला देवी ने दो मूक नाम की फिल्म में भी काम किया। (इस महिला की वजह से आया 'रेप कानून' में बदलाव)

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स्वतंत्रता आंदोलन में कमलादेवी वे निभाई भूमिका

कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने साल 1926 में मद्रास प्रांतीय विधान सभी की एक सीट से चुनाव लड़ा। लेकिन वह इस चुनाव को हार गई थी। साल 1936 में इन्हें कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था।

महिलाओं ने निभाई आंदोलन में सक्रिय भूमिका

Kamaladevi Chattopadhyay

कमलादेवी की वजह से महिलाओं ने नमक आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत जोड़ों यात्रा जैसे आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। साल 1930 में कमला देवी ने ऑल इंडिया विमेंस कॉन्फ्रेंस की स्थापना की। ऐसा कहा जाता है कि  महिलाओं का स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेना कमलादेवी की वजह से संभव हुआ था।

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इन पुरस्कार से किया गया सम्मानित

कमलादेवी उपाध्याय को साल 1955 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण और साल 1987 में पद्म विभूषण द्वारा सम्मानित किया गया। इसके अलावा इन्हें कई और पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

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