दिल्ली की कल्चरल राजधानी मानी जाने वाली जगह दिल्ली हाट-आईएनए में वेदांत कल्चर फेस्टिवल का आयोजन किया गया है। यह कल्चर फेस्टिवल भारत की कलाकृति से लोगों का मन मोह रही है। 9 फरवरी से 14 फरवरी तक कला, शिल्प और सांस्कृतिक विविधता का यह उत्सव लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह कल्चर फेस्टिवल वेदांता और अनिल अग्रवाल फाउंडेशन ने आयोजित किया है। इस फेस्टिवल में आई रूमा देवी ने ‘हर जिन्दगी’ से खास बातचीत में ये बातें शेयर की।
रूमा देवी की कहानी मजबूत और दृढ़ संकल्प से बनी एक ऐसी प्रेरणादायक गाथा है, जो हर किसी को सपने देखने और उन्हें पूरा करने की हिम्मत देती है। राजस्थान के बाड़मेर जिले में जन्मीं रूमा ने बचपन में ही मां का साया खो दिया। पिता ने दूसरी शादी कर ली फिर रूमा देवी अपनी दादी के साथ रहीं और उनसे सिलाई-कढ़ाई सीखी। आर्थिक परेशानियों की वजह से आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाने वाली रूमा देवी ने कम उम्र में ही घर का सारा काम सीख लिया। महज 17 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। ससुराल में आर्थिक परेशानियां कम न थीं।
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लेकिन रूमा देवी इन चुनौतियों के सामने झुकने वाली नहीं थीं। उन्हें पारंपरिक कढ़ाई और सिलाई का हुनर था। उन्होंने गांव की 10 महिलाओं को साथ मिलाकर स्वयं सहायता समूह बनाया। हर महिला से 100 रुपये के योगदान से उन्होंने कुशन और बैग बनाने का काम शुरू किया। उनकी सफलता की धमक ग्रामीण विकास संस्थान तक पहुंची और 2010 में वे इसकी अध्यक्ष बन गईं।
साल 2015 में राजस्थान हेरिटेज वीक में उनका पहला फैशन शो हुआ। आज रूमा देवी ‘ग्रामीण विकास चेतना संस्थान’ की अध्यक्ष रहते हुए 35,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को रोजगार और प्रशिक्षण देती हैं। उन्होंने पारंपरिक कढ़ाई और कपड़ों को एक नया रूप दिया है। उनकी बनाई डिजाइन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है।
फैशन डिज़ाइनर रूमा देवी के लीडरशिप में राजस्थानी महिलाएं अब तक जर्मनी, कोलंबो, लंदन, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे देशों के फैशन शो में भी भाग ले चुकी हैं। साथ ही, कई डिजाइनर कपड़ों की डिजाइन की और अपने प्रोजेक्ट का विस्तार किया, जहां इन प्रदर्शनों की सूची में साड़ी, कुर्ता और दुपट्टा शामिल कर के डिजाइनर ड्रेस तैयार किया। वहीं, अब इस संगठन के प्रोडक्ट्स की मांग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी है। आज रूमा देवी के साथ 22,000 से भी ज्यादा महिला कारीगर जुड़ी हुई हैं।
रूमा देवी को कई सम्मानों से नवाजा गया है, जिनमें नारी शक्ति पुरस्कार (2018) और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में छात्रों को व्याख्यान देने का विशेष आमंत्रण भी शामिल है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सपने पूरे करने की कोई उम्र, शिक्षा या परिस्थितियां नहीं होती हैं। दृढ़ संकल्प और मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। रूमा देवी आज हजारों महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं और उनकी कहानी यह साबित करती है कि रेगिस्तान की रेत से भी खूबसूरत फूल खिल सकते हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने हालिया राजस्थान दौरे पर जैसलमेर में रूमा देवी की देश व विदेश में देश का सम्मान बढ़ाने के लिए विशेष सराहना की थी।
रूमा देवी की कहानी हमें यह भी सोचने के लिए प्रेरित करती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कम साधनों में भी बहुत कुछ किया जा सकता है। रूमा देवी की सफलता से सीख लेकर हम और अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनकी प्रतिभा को निखारने में मदद कर सकते हैं।
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Image credit: ruma devi/ Vedanta Culture Festival
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