आज देश में ऐसी महिलाएं हैं, जो महिला सशक्तिकरण का जीता जागता उदाहरण हैं। कोई भी फील्ड हो, आज क्षेत्र में महिलाएं आगे हैं। बीते दिनों से चल रहे टोक्यो ओलंपिक को ही देखें, तो कई महिलाओं ने अपना परचम लहराया है। ऐसी कुछ महिलाएं आजादी के समय से देश का गौरव बढ़ा रही हैं। 1947 में डोमेस्टिक एयरलाइन उड़ाने वाली प्रेम माथुर, पहली भारतीय कमर्शियल पायलट बनी थीं। दुर्बा बनर्जी, 1956 में इंडियन एयरलाइन्स की पहली महिला पायलट बनीं और पद्मावती बंदोपाध्याय, साल 2002 में एयर वाइस मार्शल के पद पर पदोन्नत होने वाली पहली महिला ऑफिसर थीं। इन महिलाओं ने एक ऐसे करियर को चुना, जो पुरुषों के लिए ही अच्छा समझा जाता था।
आज जब हम इन सभी सफल महिलाओं का जिक्र कर रहे हैं, तो एविएशन में करियर बनाने वाली एक महिला को भुलाया नहीं जा सकता। हम बात कर रहे हैं एविएशन पायलट लाइसेंस पाने वाली और एयरक्राफ्ट उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला सरला ठकराल की। जानें सरला ठकराल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-
सरला ठकराल का जन्म साल 1914 में दिल्ली में हुआ था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एविएशन में अपना करियर बनाने की सोची। उस समय में जब उड़ना ही एक चमत्कार हुआ करता था, तब सरला ठकराल ने इतिहास रचा। इतिहास भी ऐसा कि सीना गर्व से चौड़ा हो जाए। सरला ठकराल को 1936 में पायलट का लाइसेंस मिला था। दिलचस्प बात यह है कि तब वह सिर्फ 21 साल की थीं।
सरला ठकराल की शादी बहुत ही कम उम्र में हो गई थी। वह जब 16 साल की थी, तब उनकी शादी पी.डी शर्मा से हुई। उनके पति के घर में कई लोग पायलट थे, बस इसी का समर्थन सरला को भी मिला। जब सरला ने पहला विमान उड़ाया तव शादीशुदा होने के साथ-साथ एक चार साल की बेटी की मां भी थीं। उनके सपने का समर्थन उनके पति और उनके ससुर ने किया था, जिसकी बदौलत वह आगे तक पहुंची थीं।
ऐसे समय में जब कॉकपिट में केवल पुरुष चेहरे ही देखे जा सकते थे, सरला आत्मविश्वास से भरे भारत का चेहरा थीं। इतना ही नहीं, वह साड़ी पहनकर उड़ान भरती थीं।
सरला के पति पी.डी. शर्मा भी एक पायलट थे और वह एयरमेल पायलट का लाइसेंस प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे, जो कराची और लाहौर के बीच उड़ान भरते थे। इसी तरह सरला ने भी 1000 घंटे से अधिक फ्लाइंग करके 'ए' लाइसेंस प्राप्त किया था। इस लाइसेंस से वह कमर्शियल प्लेन उड़ा सकती थीं।
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साल 1939 में एक प्लेन क्रैश हुआ, जिसमें सरला के पति की मृत्यु हो गई थी। वह मात्र 24 साल में विधवा हो गई थीं। कुछ समय बाद, उन्होंने कमर्शियल पायलट के लाइसेंस के लिए ट्रेन होना चाहा, इसके लिए उन्होंने आवेदन भी किया था, लेकिन तभी विश्व युद्ध -2 शुरू हो गया था और सारी सिविल ट्रेनिंग निलंबित कर दी गई थीं। अपने बच्चे के परवरिश के लिए उन्होंने यह सपना छोड़, लाहौर का मायो स्कूल ऑफ आर्ट्स जॉइन किया और फाइन आर्ट्स में डिप्लोमा किया। पार्टीशन के बाद वह दिल्ली आ गई थीं।
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सरला आर्य समाज की फॉलोअर थीं। जब वह दिल्ली आईं, तब यहां वह आर.पी. ठकराल से मिलीं, चूंकि आर्य समाज पुनर्विवाह को प्रोत्साहित करता है, तो उनके लिए आर.पी. ठकराल से शादी करना आसान हो गया था। साल 1948 में उन्होंने दूसरी शादी की।
उन्होंने अपने बाद के वर्षों में नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के लिए कॉस्टयूम ज्वेलरी मेकिंग, साड़ी डिजाइनिंग, पेंटिंग और डिज़ाइनिंग में सफलतापूर्वक काम किया। उनके कई ग्राहकों में एक नाम विजयलक्ष्मी पंडित का भी था। वह माती के नाम से पहचानी जाने लगीं और एक सफल पायलट बनने के बाद, एक सफल बिजनेस वुमन बनीं। साल 2008 में उनका निधन हो गया था।
बीते 8 अगस्त को उनके जन्मदिन पर गूगल ने उनके सम्मान में डूडल भी बनाया था। उम्मीद है भारत की पहली महिला पायलट के बारे में जानकर आपको अच्छा लगा होगा। ऐसे ही इंस्पिरेशनल स्टोरीज पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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