उम्र के मोहताज नहीं होते सपने, ये कहावत वडोदरा की रहने वाली ऊषा लोदया पर बिल्कुल फिट बैठती है। ऊषा उन महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं जो अपनी पढ़ाई किसी वजह से बीच में छोड़ देती हैं। ऊषा डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन जब उनकी शादी 20 साल की उम्र में कर दी गई तो उनका सपना अधूरा ही रह गया। हालांकि उन्होंने अपने सपने को दिल में संजोय रखा था, ऐसे में लगभग 5 दशक बाद उन्होंने अपने सपने को आखिरकार पूरा कर लिया।
जिस उम्र में लोग रिटायर होते हैं उस उम्र में ऊषा लोदया ने अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाने का सपना पूरा किया है। गुजरात के वडोदरा में हरनी रोड की रहने वाली ऊषा ने 67 साल की उम्र में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की है। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में ऊषा ने बताया कि जब मैं जवान थी, तब मैंने यह तया किया था, हालांकि अब जाकर अपने सपने को पूरा कर पाई और ऐसा करने में मुझे 50 साल लग गए। मेडिकल के जरिए तो नहीं लेकिन डॉक्टरेट की डिग्री तो हासिल कर ही ली।
ऊषा लोदया ने महाराष्ट्र स्थित शत्रुंजय एकेडमी से जैन धर्म में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की। वह आगे भी धर्म की खोज जारी रखने और समुदाय के छात्रों को पढ़ाने का काम करेंगी। इंटरव्यू में ऊषा ने आगे बताया कि जब वह सातवीं में थीं, तब वह डॉक्टर बनना चाहती थीं। इसके बाद वह अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने में जुट गईं और इसके बाद उन्होंने मुंबई के झुनझुनवाला कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई शुरू कर थी, लेकिन फर्स्ट ईयर में ही उनकी शादी हो गई और इस वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ गई। उस वक्त उनकी उम्र 20 साल थी, और शादी के बाद वह मुंबई से वडोदरा शिफ्ट हो गईं। वह अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करना चाहती थीं, लेकिन घर परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त हो जाने की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाईं। हालांकि पढ़ाई पूरी करने की ललक हमेशा उनके दिल में रहती थी।
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ऊषा लोदया ने 9 साल पहले ही अपनी एकेडमिक की पढ़ाई पूरी की है। उन्होंने पहले महाराष्ट्र के जलगाँव में शत्रुंजय अकादमी से स्नातक की डिग्री पूरी की और फिर जैन धर्म में परास्नातक किया। 4 साल पहले ऊषा ने अपने गाइड डॉ जयदर्शिता श्रीजी महाराज के तहत पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया, जो मुंबई के एक कॉलेज में प्रोफेसर थे। पीएचडी पूरी करना काफी मुश्किल था क्योंकि इसके लिए उन्हें पढ़ाई करनी थी और इसके लिए उन्हें सबकुछ ऑनलाइन करना था। कभी-कभी एकेडमी जाने के लिए ऊषा लोदया को खुद ही यात्रा करनी पड़ती थी, लेकिन इस दौरान उनके बेटे और बेटी सपोर्ट बनकर खड़े रहे।
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ऊषा को पीएचडी की पढ़ाई पूरी करने के दौरान कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। इस बीच उनके पति का निधन हो गया, लेकिन ऊषा तब भी रूकी नहीं बल्कि एक या डेढ़ साल बाद उन्होंने फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की। पीएचडी की पढ़ाई में उन्हें रिसर्च करने और थीसिस लिखने में चार साल लग गए। ऊषा लॉकडाउन को इसका श्रेय देती है, जिसकी वजह से उन्हें थीसिस और रिसर्च के लिए पर्याप्त समय मिल पाया।
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